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राजधानी में फिर लौटने लगे ब्लैक हुडेड और लाफिंग डॉव बर्ड

शहर के पर्यावरण संरक्षण व समृद्धि के लिए इन पक्षियों का बसेरा जरूरी

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सुमित यादव @ रिपोर्टर रायपुर. एक समय था जब घर के चारों ओर परिंदों का बसेरा होता था। सुबह उठते ही चिडि़यों की चहक से पूरा आंगन गूंज उठता था। रिहाइशी क्षेत्र बढऩे से पंक्षियों ने अपना बसेरा कहीं और बनाना शुरू कर दिया है। हालांकि शहर के बगीचों, उद्यानों, तालाबों, मैदानों में अनेक प्रकार की पंछियों का बसेरा देखा जा सकता है। जिसमे गौरैया, बया, डव, बुलबुल, कॉमन मैना, कौआ, तोता, रोबिन से पर्यावरण सुंदरता बढ़ती है। आज हम सिटी के एेसे बर्डमेन से रूबरू करा रहे हैं जो लम्बे समय से बर्ड सुरक्षा और प्रदेश में आए नए परिंदों की खोज में जुटे हंै। इसके साथ ही २० साल पहले जो पक्षी सिटी में नहीं दिखाई देते थे उनकी प्रजाति लौटने लगी है।


सुंदर आवाज मन को देती है सुकून

वाइल्ड लाइफ पक्षी प्रेमी अखिलेश भरोस बताते हैं कि जब सुन्दर पक्षी हमारे आस पास होते है तो इनकी सुन्दर आवाज, बनावट, रंग-बिरंगे रूप होते हैं। जब कभी हम मॉर्निंग वॉक पर निकलते है तो पक्षियों को उड़ते देखकर मन को बहुत सुखद अनुभूति होती है।

दूसरी जगहों में शिफ्ट हो रहे पक्षी

पक्षी विशेषज्ञ और छत्तीसगढ़ वाइल्ड लाइफ बोर्ड मेंबर एमके भरोस बताते है कि 20 साल पहले शहर में दिखाई देने वाली पक्षी अब आसपास की जगहों में शिफ्ट हो गए हंै जिसमें लार्क, वैगटेल्स, वेडर्स, वाटरहेन्स आदि पक्षी है। स्केली ब्रेस्टेड मुनिया, ब्लैक हेडेड कुकू शराइक, ब्लैक हुडेड और ब्लैक नेप्ड ओरियल, लाफिं ग डॉव, यूरेशियन कॉलरड डॉव अब शहर में नजर आते हैं।

ग्रे फ्रैंकोलिन और वाटलेंड लेपविंग

कुछेक स्थानों पर अच्छी बायोडायवर्सिटी होने के कारण कई प्रकार के पक्षियों की प्रजाति देखी जा सकती है। जिसमें राजकुमार कॉलेज, रविशंकर यूनिवर्सिटी, एनआइटी कैंपस, राजीव स्मृति वन ऊर्जा पार्क, डब्लूआरएस कॉलोनी, खारुन नदी, गांधी उद्यान, अनुपम गार्डन, साइंस कॉलेज परिसर व संस्कृति संचनालय व आदि स्थानों पर इंडियन कौसर, सैंडग्राउस, येलो वाटलेंड लेपविंग एवं ग्रे फ्रैंकोलिन भी आसपास में दिखाई पड़ती हंै।