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छत्तीसगढ़ चुनाव: कांग्रेस पर भारी विधायकों की उम्मीदवारी सत्ता से दूर मगर एंटी इनकम्बेंसी भरपूर

राज्य में अब तक हुए तीन विधानसभा चुनाव के नतीजे बताते हैं कि जब भी कांग्रेस ने अपने विधायकों पर बतौर उम्मीदवार भरोसा किया है उसे मुंह की खानी पड़ी है।

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Rajasthan Election - Bikaner Assembly Congress

Rajasthan Election - Bikaner Assembly Congress

आवेश तिवारी/रायपुर. छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के लिए अपने विधायकों को बतौर उम्मीदवार उतारना मुश्किल का सबब बन सकता है। राज्य में अब तक हुए तीन विधानसभा चुनाव के नतीजे बताते हैं कि जब भी कांग्रेस ने अपने विधायकों पर बतौर उम्मीदवार भरोसा किया है उसे मुंह की खानी पड़ी है। मतलब यह है कि सत्ता में न होते हुए भी कांग्रेस के विधायकों को एंटी इनकम्बेंसी का सामना करना पड़ता है।

गौरतलब है कि आगामी विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस द्वारा 18 सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा की गई है, जिनमे से केवल कांकेर विधानसभा से शंकर ध्रुवा का टिकट काटा गया है बाकि कवासी लखमा, देवती कर्मा समेत वर्तमान विधायकों को दोबारा टिकट दे दिए गए हैं। मुमकिन है अगले दो दिनों में कांग्रेस शेष उम्मीदवारों की घोषणा कर दें। लेकिन यह देखने लायक होगा कि कांग्रेस इन चुनावों में अपने कितने विधायकों को टिकट देती है? कितने विधायकों के टिकट काटे जाते हैं कितने फिर से मैदान में उतरते हैं। आश्चर्यजनक मगर सच है कि पिछले तीन विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने कुल मिलाकर केवल 6 विधायकों के टिकट काटे हैं।

2003 आधे से ज्यादा विधायकों को मिली हार
2003 में कांग्रेस पार्टी के 48 विधायक थे जिनमे से पार्टी ने 46 विधायकों को चुनाव मैदान में उतारा था यानि कि केवल दो विधायकों का ही टिकट काटा गया । नतीजा यह हुआ कि इनमे से महज 21 विधायक ही चुनाव जीत सके और बाकि 25 को मुंह की खानी पड़ी। अगर आंकड़ों को देखें तो पता चलता है कि 2003 के विधानसभा चुनाव में 45.7 फीसदी विधायक ही चुनाव में जीत हासिल कर सके। गौरतलब है कि उस वक्त अजीत जोगी मुख्यमंत्री हुआ करते थे और टिकट वितरण में उनका ही बोलबाला था।

2008 में आधों को मुंह की खानी पड़ी
2008 में रमन सरकार ने अपने कार्यकाल के पांच वर्ष पूरे कर लिए थे उस दौरान कांग्रेस पार्टी के महज 37 विधायक सदन में थे ।लेकिन जब टिकट वितरण की बारी आई तो कांग्रेस में अंतर्विरोध के डर से महज तीन विधायकों का ही टिकट काटा यानि कि 34 विधायक चुनाव मैदान में उतारे। दिलचस्प यह रहा कि इनमे से केवल 17 ही चुनाव में दोबारा विजयी हो सके और बाकि 17 को मुंह की खानी पड़ी ।यह वो दौर था जब कांग्रेस में गुटबाजी चरम पर पहुँच गई थी। ऐन टिकट वितरण के मौके पर एक बार फिर पूर्व सीएम अजीत जोगी की चल निकली थी और उन्होंने ज्यादा से ज्यादा अपने समर्थकों को ही टिकट दिलवाया था।

2013 में भी विधायकों को नहीं मिली खास सफलता
2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने अजीत जोगी को टिकट वितरण से पहले एकदम किनारे लगा दिया था। राहुल गांधी के दिशा निर्देश पर स्क्रीनिंग कमेटी ने सदस्यों के नाम फाइनल कर लिए थे लेकिन जब पार्टी को इस बात का संदेह हुआ कि टिकट वितरण के बाद पार्टी में भारी भीतरघात हो सकता है तो प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डॉ चरण दास महंत पूर्व सीएम अजीत जोगी के पास पहुँच गए।फिर जो हुआ सबके सामने था। पार्टी ने अपने 38 विधायकों में से 37 को टिकट दे दिया केवल एक विधायक ऐसा था जिसे दोबारा टिकट नहीं दिया गया। नतीजा यह निकला कि इनमे से 24 विधायक ही चुनाव दुबारा जीत सके शेष 13 चुनाव हार गए यानी तकऱीबन 35 फीसदी विधायकों को हार का सामना करना पड़ा।