
CG Film:@ ताबीर हुसैन। नए दौर में सच्चे प्यार के मायने बदल गए हों, लेकिन आज भी कई ऐतिहासिक विरासतें हैं जो प्रेम की अमर गाथा के रूप में इतिहास के पन्नों दर्ज हैं।'हीर-रांझा' और 'लैला-मंजनू' जैसी कई लोकगाथाएं छत्तीसगढ़ में भी हैं।
कुछ साल पहले प्रेम चंद्राकर ने प्रसिद्ध लोककथा लोरिक चंदा पर फिल्म बनाई। राजा खान ने भी बस्तर के आदिवासी प्रेमी युगल पर झिटकू-मिटकी बनाई। अब वे गरियाबंद जिले की लोकगाथा कचना-धुरवा पर फिल्म बनाने जा रहे हैं। उन्होंने बताया, कचना धुरवा फिल्म मैं इसी साल शूट करूंगा। प्रेम चंद्राकर ने भी कुछ लोक गाथाओं की जानकारी दी जो छत्तीसगढ़ में प्रचलित हैं।
लोरिक-चंदा: यह कहानी आरंग के रीवां गांव से जुड़ी है। इस कहानी में लोरिक और चंदा के बीच प्रेम होता है। इस प्रेम कहानी को लेकर कई रुकावटें आती हैं। लेकिन, आखिर में दोनों की प्रेम कहानी को लोगों ने स्वीकार कर लिया। लोरिक, लोरिकगढ़ का रहने वाला था और वह आस-पास के गांवों में मवेशी चराता था। लोरिक बांसुरी बजाता था और इससे मोहित होकर चंदा उससे मिलने आती थी।
Jhitku-Mitki Love Story: झिटकु-मिटकी: बस्तर के झिटकू मिटकी का अमर प्रेम, जिनकी याद में आधुनिक युग में लोग धातु कला बनाते हैं, यह कला अनमोल है और लोग इसे अपने घरों में स्थापित करते हैं। बस्तर के कलाकार झिटकू मिटकी की मूर्तियां बनाते हैं, जो दूर दूर तक मशहूर हैं। झिटूक मिटकी की याद में मेले लगते हैं, उन्हें राजा-रानी का दर्जा प्राप्त है। मिटकी के सात भाई थे। मिटकी उनकी बहन थी। जीते जी झिटकु-मिटकी एक(Chhattisgarhi Film) नहीं हो पाते, मरने के बाद उनका प्रेम अमर हो जाता है।
दसमत कैना: छत्तीसगढ़ की लोककथाओं में इस महिला का नाम बड़े गर्व से लिया जाता है। पिता के अहम पर प्रहार करने की सजा पर दसमत की शादी एक गरीब उड़िया मजदूर से होती है, लेकिन वह अपनी चतुराई से परिवार और पूरे उड़िया समुदाय की किस्मत बदल देती है। एक उड़िया राजा की दसमत से विवाह करना चाहता है और इसी वजह से उसके पति व उसके समुदाय के लाखों लोगों को मरवा देता है। राजा की इच्छा के कारण दसमत आत्महत्या करने के लिए मजबूर हो जाती है।
Chhattisgarh's love stories: कचना-धुरवा: राजिम-गरियाबंद के मुख्य मार्ग पर स्थित कचना-धुरवा देवालय गोंड़ राजाओं के देवता के रूप में सदियों से पूजनीय है। गरियाबंद जिले की फिजाओं में आज भी राजा धुरवा और कुमारी कचना की प्रेम कहानी गूंजती है। दोनों जीते जी तो एक नहीं हो सके, लेकिन मरने के बाद दोनों की कहानी अमर हो गई। आदिवासियों के आराध्य देव में कचना-धुरवा का नाम शुमार है। धार्मिक, सामाजिक या कोई भी मांगलिक कार्य हो, ऐसे मौकों पर लोग कचना-धुरवा का आशीर्वाद जरूर लेते हैं।
Updated on:
15 Feb 2025 05:07 pm
Published on:
15 Feb 2025 05:06 pm
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