टिकट के लिए भागदौड़ से लेकर अन्य दावेदारों को पटखनी देने का खेल भी चल रहा है। अविभाजित मध्यप्रदेश में भी दुर्ग पूरे प्रदेश की राजनीति का केन्द्र रहा है। अलग राज्य और अब संभाग बनने के बाद भौगोलिक सीमाओं के साथ राजनैतिक समीकरण भी बदला है।
इन बदलावों के बाद भी सबसे अहम यह है कि राज्य विभाजन के बाद बंटवारे में मिली जोगी सरकार को छोड़ दें तो प्रदेश की सत्ता की राह इसी संभाग से खुलता रहा है। मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में भी चाहे भाजपा की चौथी बार ताजपोशी हो या कांग्रेस की सरकार बनें,भूमिका दुर्ग संभाग की अहम भूमिका रहेगी।
दुर्ग संभाग में पांच जिले और 20 विधानसभा क्षेत्र हैं। जिसमें 11 सीट पर भाजपा और 8 सीट पर कांग्रेस का कब्जा है। एक सीट कांग्रेस विधायक के जोगी कांग्रेस में शामिल होने के कारण एक सीट जोगी कांग्रेस के खाते में आ गया है।
यह संभाग पहले कांग्रेस का गढ़ रहा है। जहां भाजपा ने जबर्दस्त सेंध लगाई है।
अब तक प्रदेश में कोई तीसरी ताकत न होने के कारण भाजपा और कांग्रेस में ही मुकाबला होता रहा है। इस बार जोगी कांग्रेस के मैदान में उतरने के कारण संभाग के कुछ सीटों पर समीकरण बदल सकते हैं। ऐसे में आने वाले विधानसभा के चुनाव में तमाम दलों की नजर दुर्ग संभाग के विधानसभा सीटों पर रहेगी। यहां परिणाम काफी महत्वपूर्ण होंगे।
भाजपा : अंदरूनी गुटबाजी के कारण बालोद जिले में मिली थी हार
संभाग के राजनांदगांव जिले के डोंगरगांव विधानसभा सीट से उप चुनाव जीतकर वर्ष 2003 में सीएम डॉ. रमन सिंह ने जोगी सरकार के बाद पहली बार प्रदेश की कमान संभाली। इसके बाद से वे राजनांदगांव के विधायक के रूप में लगातार तीसरी बार सीएम की कुर्सी संभाल रहे हैं।
चौथी बार भी उनकी दावेदारी स्वाभाविक है, लेकिन उनके केंद्र में प्रमोशन और सांसद बेटे अभिषेक सिंह को प्रदेश की राजनीति में स्थापित करने की तैयारी की चर्चा भी होती रहती है। ऐसे में नए नेतृत्व को लेकर महत्वकांक्षा भी खुलकर सामने आती रही है। गृह क्षेत्र कवर्धा और राजनांदगांव में सीएम डॉ. रमन सिंह सर्वमान्य नेता है।
संभाग का बालोद एकमात्र जिला है जहां पिछले चुनाव में भाजपा का सूपड़ा साफ हो गया था। जिले की तीनों सीट पर कांग्रेस की जीत हुई थी। इस बार भाजपा यहां की सीटें जीतने के लिए एड़ीचोटी का जोर लगा रही है लेकिन यहां पार्टी की अंदरूनी गुटबाजी पार्टी के लिए चिंता का विषय है। हालाकि प्रदेश की राजनीति में अपने कद का लोहा मनवाने वाला भाजपा का कोई नेता यहां नहीं है।
इसके विपरीत दुर्ग, भिलाई और बेमेतरा में भाजपा के दिग्गज नेताओं के बीच खींचतान और दखलंदाजी सर्वविदित है। राजनीतिक प्रभाव को लेकर मंत्री प्रेम प्रकाश पांडेय और भाजपा की राष्ट्रीय सचिव व सांसद सरोज पांडेय के बीच प्रतिद्वंदिता रही है। दोनों अपने समर्थकों को टिकट दिलवाने के लिए जोर लगाते रहे हैं।
इस बार भी टिकट को लेकर दोनों नेताओं के बीच जोरआजमाइस होगी। दोनों दिग्गजों के बीच टकराव का क्या असर पड़ेगा यह चुनाव के बाद सामने होगा। कवर्धा और राजनांदगांव में डॉ. रमनसिंह के एकतरफा प्रभाव के कारण इस दोनों जिलों में गुटबाजी का खास असर नहीं होगा।
साजा में पहली बार भाजपा की जीत
साजा कांग्रेस के दिग्गज रविंद्र चौबे का गढ़ रहा है। चालीस साल तक उनके पारिवार का दबदबा रहा है। पिछली बार भाजपा ने चौबे के गढ़ में फतह हासिल की थी, लेकिन इस बार यहां भाजपा में अंदरूनी कलह काफी बढ़ गई है।
कांग्रेस : दिग्गज नेताओं के बीच होती रही है वर्चस्व की लड़ाई
कांग्रेस में भी गुटबाजी रही है, लेकिन लगातार पराजयों के दंश के कारण यह अब दायरे में सिमट गई है। संभाग में कांग्रेस के दिग्गज नेताओं को बीच वर्चस्व की लड़ाई होती रही है। इस बार भी यह कायम है। दुर्ग में पार्षद से लेकर मुख्यमंत्री और अब कांग्रेस में प्रशासकीय प्रबंधक की कमान संभाल रहे सांसद मोतीलाल वोरा का अपना वजूद है।
शीर्ष नेतृत्व के करीब होने के कारण टिकटों के बंटवारे में उनका सुझाव बेहद अहम होता है, ऐसे में अधिकतर दावेदारों का झुकाव उनकी ओर होता है। इस तरह उनके आसपास रहने वालों की बड़ी संख्या है। इससे अलग पीसीसी अध्यक्ष भूपेश बघेल का अपना अलग गुट है। दिवंगत नेता वासुदेव चंद्राकर के शिष्य भूपेश बघेल की अपनी अलग राजनीतिक शैली है, इसके कारण भी उनकी वोरा से गणित कम बैठती है।
प्रदेश में सरकार बनने की स्थिति में अब तक भूपेश को सीएम बनाए जाने की चर्चा हो रही थी, लेकिन एआइसीसी के कोषाध्यक्ष की बड़ी जिम्मेदारी से मुक्त किए जाने के बाद इस होड़ में वोरा का भी नाम जुड़ गया है। ऐसे में चुनाव में दोनों नेताओं के बीच अपना वर्चस्व बढ़ाने की होड़ लग सकती है। इस होड़ में सांसद व पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय अध्यक्ष ताम्रध्वज साहू की भूमिका भी अहम होगी।
संभाग में सीटे भाजपा की जरूर अधिक है पर वोटों को लिहाज से हारजीत का अंतर अधिक नहीं है। कांग्रेस इस गड्ढे को भरने के लिए एससी और एसटी वर्ग लुभाने में लगी है। यह वर्ग कांग्रेस का वोट बैंक रहा है, पर भाजपा ने इसमें अपनी मजबूत पैठ बना ली है। कांग्रेस को अपनी जीती हुई सीट के साथ खोए सीटों को हासिल करने की बड़ी चुनौती है, पर कांग्रेस के एक दिक्कत यह भी है कि उसके पास संभाग में भीड़ जुटाने वाला चेहरा नहीं है।
अहिवारा में कांग्रेस को हो रहा नुकसान
परिसीमन के बाद धमधा से अलग होकर अस्तित्व में आए अहिवारा विधानसभा में कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ रहा है। दो चुनाव में लगातार कांग्रेस को यहां हार का सामन करना पड़ा है। यहां कांग्रेस का संगठन भी कमजोर है।
यह होगा प्रभाव
फिलहाल पीसीसी अध्यक्ष भूपेश बघेल और सांसद ताम्रध्वज साहू के बीच पटरी अच्छी बैठ रही है। दोनों संभाग के सभी जिलों में कमान संभाल रहे हैं। वहीं वोरा ने अभी भाग दौड़ शुरू नहीं किया है। वोरा के सुपुत्र विधायक अरुण वोरा दुर्ग शहर के प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे हैं। पूर्वअनुभवों से देखे तो वोरा की रूचि अपने सुपुत्र की सीट पर ज्यादा होती है। इस बार भी ऐसा हुआतो भूपेश का मार्ग आसान होगा। इन तमाम स्थितियों के बाद भी संभाग के सीटों के चयन में वोरा की राय जरूर ली जाएगी।
दुर्ग
पाटन
भूपेश बघेल कांग्रेस
दुर्ग ग्रामीण
रमशीला साहू भाजपा
दुर्ग शहर
अरुण वोरा कांग्रेस
भिलाईनगर
प्रेमप्रकाश पांडेय भाजपा
वैशालीनगर
विद्यारतन भसीन भाजपा
अहिवारा
सांवलाराम डाहरे भाजपा
बालोद
संजारी बालोद
भैयाराम सिन्हा कांग्रेस
डौंडीलोहारा
अनिल भेडिय़ा कांग्रेस
गुंडरदेही
राजेन्द्रकुमार राय कांग्रेस (कांग्रेस से निलंबित)
बेमेतरा
साजा
लाभचंद बाफना भाजपा
बेमेतरा
अवधेश चंदेल भाजपा
नवागढ़
दयालदास बघेल भाजपा
कबीरधाम
पंडरिया
मोतीराम चंद्रवंशी भाजपा
कवर्धा
अशोक साहू भाजपा
राजनांदगांव
डोंगरगढ़
सरोजनी बंजारे भाजपा
राजनांदगांव
डॉ. रमन सिंह भाजपा
डोंगरगांव
दलेश्वर साहू कांग्रेस
खुज्जी
भोलाराम साहू कांग्रेस
मानपुरमोहला
तेजकुंवर नेताम कांग्रेस
खैरागढ
गिरिवर जंघेल कांग्रेस