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आदिम युग की तरह नाला-झिरिया के पानी से बुझा रहे हैं हमारे आदिवासी अपनी प्यास

कहीं नाले का, तो कहीं झिरिया के पानी से प्यास बुझ रही। इसके लिए भी दो किलोमीटर का सफर करना पड़ता है।

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आदिम युग की तरह नाला-झिरिया के पानी से बुझा रहे हैं हमारे आदिवासी अपनी प्यास

रायपुर. कहीं नाले का, तो कहीं झिरिया के पानी से प्यास बुझ रही। इसके लिए भी दो किलोमीटर का सफर करना पड़ता है। यह किसी एक गांव की दशा नहीं, बल्कि पंडरिया विधानसभा के वनांचल स्थित कई गांवों की हकीकत है।कबीरधाम को जिला बने 20 साल हो गया है। इसके बावजूद आज भी यहां ऐसे गांव हैं, जहां पर पीने के लिए पानी की समुचित व्यवस्था नहीं है।

इसकी हकीकत जिला मुख्यालय से 60 किमी दूर पंडरिया विधानसभा के वनांचल स्थित गांवों में दिखाई देती है। ग्राम पंचायत कांदावानी के आश्रित गांव बाहपानी सहित भल्लिनदादर, रुख्मीदादर, धुरसी, ढेपरापानी, ठेंगाटोला, कान्हाखेरो, बांसाटोला और छीरपानी का पगडंडियों के रास्ते दौरा किया। यहां के कई ग्रामीणों से मुलाकात हुई। और उनके हालात जाने। इससे शासन-प्रशासन की कई हकीकत सामने आईं।

ग्रामीण समरू बेगा, सुंदरी बाई, सोन कुंवर, मंगली बाई, रामलाल, समिया बाई, मैनी बाई ने गांव के हालात के बारे में बताए कि मतदान करने और सरकार चुनने के लिए कई किलोमीटर दूर जाते हैं। इसका कोई फल नहीं मिलता है। आज भी हम लोग झिरिया और नाले के पानी से अपनी प्यास बुझाते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि पानी की कमी के चलते वे हफ्तों नहा तक नहीं पाते हैं।

शासन-प्रशासन, सरकार और मंत्री बोलते फिरते हैं कि जिले के गांव-गांव का विकास हुआ है, तो उन्हें वनांचल के इन गांवों में जाकर देखना चाहिए कि विकास कहां है? जिन ग्रामीणों को आज भी आदिम युग की तरह झिरिया से पानी पीना पड़ रहा है, वहां पर विकास की बातें करना बेमानी लगती है। यहां विकास के नाम पर केवल हैण्डपंप हैं, जिसके हलक दिसंबर के बाद सूख जाते हैं। इसके बाद पूरी गर्मी यही स्थिति रहती है। यहां के ग्रामीण बूंद-बूंद पानी बचाकर जैसे-तैसे जीवन काट रहे हैं।

पत्रिका टीम ग्राम सेंदूरखार पहुंचा। यहां पर भी पानी की समस्या विद्यमान है। ग्रामीणो ने बताया कि पानी की समस्या को दूर करने के लिए मोटर पम्प लगाया गया। बिजली नहीं होने के कारण इसे डीजल से चलाया जाता है, लेकिन तीन सप्ताह से यह भी बंद है। कारण बताया जाता है कि डीजल की व्यवस्था नहीं की जा रही है। इसके चलते गांव में तीन जगह पानी टंकी है जिसकी सप्लाई बंद है। ग्रामीण अब झिरिया से पानी लाते हैं।

छीरपानी से एक किलोमीटर दूर झिरिया से पानी भरते हुए बैगिन मंगली बाई से बताया कि हमारे गांव में न तो बिजली है और न ही पानी। पानी के लिए झिरिया है उसे से पानी भरते हैं। गर्मी के दिनों में बहुत परेशानी होती है। झिरिया भी सूख जाता है तो दूसरी जगह जाते हैं पानी लाने के लिए। ग्राम अमीदा, छिंदीडीह, सारपानी, सेंदूरखार, मराडबरा, अजवाइनबाह, सरहापथरा, जामुन टोला, नागाडबरा, पीपरटोला, लिहाटोला, देवानपटपर, भेलकी, भाकुर, सेजाडीह, ढोलढोली बसूलालूट, चाटा, रहीदाढ, साईटोला, बांगर, टेड़ापानी, बिरुलडीह, कुंडापानी ऐसे गांव हैं जहां पर ठंड का मौसम निकलते ही हैण्डपंप से पानी निकलना बंद हो जाता है।