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देश का पहला ऐसा गांव, जहा तबीयत खराब हो जाए तो समझो मौत पक्की, क्योंकि…

सरकार के विकास कार्यो में उठ रहा बड़ा सवाल, लालटेन की रोशनी से अभी भी कट रही है ग्रामीणों की जीवन

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देश का पहला ऐसा गांव, जहा तबीयत खराब हो जाए तो समझो मौत पक्की, क्योंकि...

देश का पहला ऐसा गांव, जहा तबीयत खराब हो जाए तो समझो मौत पक्की, क्योंकि...

रायपुर। आजादी के 72 वर्ष बीत जाने के बावजूद एक ऐसा गांव छत्तीसगढ़ में हैं जो सरकारी दावों की पोल खोलने में सक्षम है। एक तरफ जहा केंद्र और राज्य सरकार जनता के हित के लिए तमाम नारों के साथ जोशीले भाषण देते नजऱ आते हैं वही जमीनी स्तर की सच्चाई कुछ और ही बया कर रही हैं। दरअसल आज भी छत्तीसगढ़ के राजधानी से लगभग 40 किलोमीटर की दूरी तिल्दा से लगा एक ऐसा गांव है जहा लोग आज भी लालटेन युग में जीने को मजबूर हैं।

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सड़क विहीन गांव में लोगों की जिंदगी में लालटेन ही रोशनी का सहारा बना हुआ हैं। मालूम हो कि तिल्दा ब्लाक की ग्राम परसदा आज भी सौतेले पन का शिकार हो रहा है। आपको बता दें इस गांव की आबादी करीब आठ सौ है, लेकिन इस गांव के लोगों को मूलभूत सुविधाएं नहीं मिल रही है। आलम ऐसा है कि नक्शे में कोई सड़क दर्शाई गई है।

नहर से घिरा हुआ है गांव
गांव एक ओर से नहर से घिरा हुआ है। नहर पर पुल और गांव में पक्की सड़क नहीं रहने के कारण लोगों को आवागमन में काफी असुविधा होती है। बारिश के मौसम में करीब 6 किलोमीटर की दूरी तय कर लोगों को अपनी रोजमर्रा की जरूरतों के लिए ग्राम मानपुर तुलसी जाना पड़ता है। जबकि सीधे ग्राम पहुंचने की दूरी महज तीन किलोमीटर ही है।

झोला छाप डाक्टर के भरोसे चलता है गांव
सरकार ने गरीब परिवारों के लिए कई स्वास्थ्य सुविधाएं लागू कराया है लेकिन इस गांव में स्वास्थ्य केंद्र ही अभी तक बन नहीं पाएं हैं। स्वास्थ्य केंद्र नहीं होने के कारण लोगों का इलाज झोला छाप डॉक्टरों के भरोसे चलता है। सड़क के अभाव में दरवाजे तक चार पहिया वाहन तो दूर दुपहिया वाहन भी नहीं पहुंच पाता। यदि इलाज में गंभीर समस्या हो तो 108 या 102 महतारी एक्सप्रेस पहुंचने के लिए गांव में सड़क ही नहीं है।

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बारिश के दिनों में बच्चे नहीं पहुंच पाते स्कूल
बारिश के दिनों में बच्चों को स्कूल जाने के लिए काफी जद्दोजहद करना पड़ता है। सायकल तो दूर बच्चों को जूते-चप्पल हाथ में लेकर पैदल स्कूल जाना पड़ता है। कई बच्चे समय पर स्कूल नही पहुंच पाते तो कई स्कूल जाते ही नहीं। गांव की सैकडों बालिकाएं केवल सड़क के नाम से अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ दिया है । सिर्फ पढ़ाई ही नही लोगों के रोजमर्रा की जरूरतों के लिए पास के गांव मानपुर तुलसी पर निर्भर रहना पड़ता है ।

लोग बोले- आजादी की क्या बात करें
आज तक पटवारी या कोई आला अधिकारी यह नहीं बता पाए की ग्राम परसदा जाने के लिए सड़क ही नहीं है। गांव के लोगों ने बताया कि आजादी की क्या बात करें, पंचायती राज व्यवस्था लागू होने के 17 बसंत बीत जाने के बाद भी टापूनुमा इस गांव का विकास संभव नहीं हो पाया। चुनाव आते ही नेताओं के द्वारा लम्बे-चौड़े वादे किए जातें हैं लेकिन चुनाव जीतने के बाद लौटकर देखना भी कोई नेता मुनासिब नही समझते ।

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गांव में रहकर घुट रहें हैं अरमान
पत्रिका की टीम को ग्राम मानपुर तुलसी से परसदा पहुचनें में हमारी टीम को 6 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ी जिसमें उबड़ - खाबड़ कीचड़ के रास्तों से होते हुए गांव पहुंचने में 35 मिनट का समय लग गया। गाँव वालों का कहना है कि इतना ही नहीं, बेटा हो या बेटी, उनकी शादी अच्छे परिवार में नही हो पाती है, जिसके चलते हम लोगों के अरमान इस गाँव में रहकर घुट कर रह जाते हैं।

बीच रास्ते में टूटटी है लोगों की जान
गंभीर रूप से बीमार लोगों का इलाज सही समय पर नहीं हो पाता। साधनहीन होने के कारण किसी तरह बीमार को पड़ोस गांव ले जाना पड़ता है। ऐसी स्थिति में कभी- कभी गंभीर बीमार रोगी इलाज के अभाव में रास्ते में ही दम तोड़ देते हैं। ग्रामीणों ने बताया गांव में पक्की सड़क की मांग की बात को छोड़ो यह तो पता चले की हमारें गांव आने-जाने के लिए सड़क कौन सी है।

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