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आपने मछलियों को पानी से बाहर आकर पेड़ों पर चढ़ते देखा है, अगर नहीं तो देखिए इस Video में

मछली जल की रानी है, जीवन इसका पानी है...बाहर निकालो मर जाती है। ये पंक्तियाँ हम सभी बचपन से सुनते आ रहे है लेकिन लोरी दलपतसागर जलाशय की केऊ मछली के लिए बिलकुल नहीं बनी है।Climbing perch fish

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Climbing perch fish

आपने मछलियों को पानी से बाहर आकर पेड़ों पर चढ़ते देखा है, अगर नहीं तो देखिए इस Video में

अजय श्रीवास्तव@रायपुर. मछली जल की रानी है, जीवन इसका पानी है...बाहर निकालो मर जाती है। ये पंक्तियाँ हम सभी बचपन से सुनते आ रहे है लेकिन लोरी दलपतसागर जलाशय की केऊ मछली के लिए बिलकुल नहीं बनी है। यहां पाई जाने वाली केऊ की यह प्रजाति स्वत: ही पानी से बाहर आती है व समतल जमीन पर से रेंगती हुई छह से आठ फुट की दूरी फर्लांग कर जलाशय के दूसरे डबरी की ओर जाती नजर आ रही हैं। बारिश की फुहार के साथ ही एक दो नहीं बल्कि सैकड़ों की संख्या में इन मछलियों की ऐसी गतिविधि को देखने प्राणी विज्ञानी व मछुआरे दम साधे खड़े रहते हैं।

मछली की यह रेंगने की प्रक्रिया को देखने पर एक नजर में ऐसा लगता है कि जैसे वह उछलकूद मचा रही है। कई बार तो इनकी गतिविधि इतनी तेजी से होती है कि ये दो फुट ऊंचे जलीय पौधों के ऊपर तक फिसलते हुए चढ़ जाती हैं। प्राणी विज्ञानी डॉ. सुशील दत्ता ने बताया कि पानी से बाहर लंबे समय तक रह पाने के लिए इस मछली में गलफ ड़े के साथ साथ भूलभुलैया की तरह आकार के श्वसन अंग भी सहायक होते हैं।

स्थानीय बोली में इसे केऊ कहते हैं। इसका मांस बेहद स्वादिष्ट माना जाता है और इसकी मांग भी बहुत है। दो दिन पहले हुई बारिश में मछली पकडऩे वाले सारी रात इस मछली को पकड़ते रहे, क्योंकि यह हजारों की संख्या में दलपत सागर से निकलकर मेड़ को पार करके खेत अथवा समतल जमीन की ओर पहुंचती रहीं।

जलाशय के तट पर आकर ये मछलियां तेजी से उछलकर जमीन पर आ जाती हैं, इसके बाद पूरे शरीर को उछालते हुए ये दूसरे छोर पर के पानी से भरे गढ्डों की ओर बढ़ जाती हैं। पूरे सफर में पांच से छह मिनट तक यह सूखी जमीन पर थिरकती रहती हैं। बताया गया कि इसके गलफड़े के ढक्कन के स्वतंत्र किनारे पर बहुत सारे कांटे लगे होते हैं जिसकी सहायता से यह अटक अटक कर छोटी झाडिय़ों में भी चढ़ जाती है।

केऊ मछली को प्राणी विज्ञान में क्लाइंबिंग पर्च एनाबास टेस्टू डीनीयस के नाम से पहचाना जाता है। क्लाइंबिंग नाम इसकी उछल- कूद को देखते हुए रखा गया है।

डॉ. सुशील दत्ता, जूलाजी विभागाध्यक्ष, पीजी कालेज

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