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ग्रामीणों में दहशत का माहौल, ठंड में हाथियों के डर से छत पर तंबू लगाकर रहने को मजबूर हुए लोग

हाथियों से बचने के लिए बिना वन विभाग के किसी मदद के खुद उपाय कर रहे हैं। जब भी ग्रामीणों को सूचना मिलती है कि हाथियों का झुंड फिर से आ धमका है तो शाम होते ही कई ग्रामीण अपने परिवार के साथ सामुदायिक भवनों के छत या फिर ऐसे मकान जो पक्के हैं उनके ऊपर चढ़ जाते हैं, लेकिन ठंड के मौसम में छत के ऊपर बुजुर्ग और बच्चे किस तरह रात गुजार रहे हाेंगे इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।

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कोरबा. शाम छह बजे के बाद ठंड में लोग घरों से निकलने से परहेज कर रहे हैं, लेकिन एक ऐसा गांव है जहां ग्रामीण घड़ी में छह बजते ही बच्चों व बुजुर्गों के साथ सामुदायिक भवन के छत पर चले जाते हैं। दरअसल हाथियों का इतना उत्पात बढ़ गया है कि सामुदायिक भवन के भीतर रहने से ग्रामीण कतरा रहे हैं। कड़कड़ाती ठंड में ग्रामीण छत पर लगाए तंबू में रात बिताने को मजबूर हैं।

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कटघोरा वनमंडल के जल्के क्षेत्र के ग्राम तनेरा में हाथियों का झुंड बीते डेढ़ साल से उत्पात मचा रहा है। जटगा और पसान रेंज के सीमावर्ती इस वनांचल गांव के आसपास हाथी सप्ताह में तीन से चार दिन कभी तो 15 दिन तक डटे रहते हैं। कई बार मकानों को तोड़ने के साथ-साथ ग्रामीणों पर हाथी हमला कर चुके हैं। अब तो स्थिति ये है कि हाथियों से बचने के लिए बिना वन विभाग के किसी मदद के खुद उपाय कर रहे हैं। जब भी ग्रामीणों को सूचना मिलती है कि हाथियों का झुंड फिर से आ धमका है तो शाम होते ही कई ग्रामीण अपने परिवार के साथ सामुदायिक भवनों के छत या फिर ऐसे मकान जो पक्के हैं उनके ऊपर चढ़ जाते हैं, लेकिन ठंड के मौसम में छत के ऊपर बुजुर्ग और बच्चे किस तरह रात गुजार रहे हाेंगे इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।
पिछले साल भी ठंड के समय में ग्रामीणाें को इसी समस्या से गुजरना पड़ा था। तब वन विभाग ने दावा किया था कि जल्द ही पक्का भवन बनाया जाएगा। जहां लोगों को सुरक्षित रखा जा सकेगा। सालभर बाद भी भवन का पता नहीं है।

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कटकर रखा है धान किसानों की चिंता बढ़ी चट न कर दें हाथी
हर साल धान कटाई होने के बाद हाथियाें का इस क्षेत्र में उत्पात और बढ़ जाता है। दरअसल किसान जगह-जगह धान काटकर संग्रहण कर रखे होते हैं। जहां हाथियों का झुंड पहुंचकर नुकसान पहुंचाता है। किसानों और हाथियों के बीच मानवद्वंद की यह भी एक बड़ी वजह है।

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कॉरिडोर में शामिल नहीं, इसलिए नहीं बन रहे राहत कैंप
यह क्षेत्र फिलहाल लेमरू ऐलीफेंट कॉरिडोर के दायरे में शामिल नहीं है। इसलिए राहत कैंप या फिर पेट्रोलिंग कैंप का निर्माण नहीं हो रहा है। ग्रामीणों की मांग है कि जिन गांव में इस तरह की समस्या ज्यादा है वहां कैंप का निर्माण किया जाना चाहिए। जिसकी ऊंचाई अधिक हो। जहां रात भर ग्रामीण परिवार के साथ सुरक्षित रह सके।