25 दिसंबर 2025,

गुरुवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

Guru Purnima 2022: गुरुपूर्णिमा क्यों है ख़ास, जाने इसके पीछे का इतिहास

Guru Purnima 2022 धार्मिक मान्यता है कि गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु पूजन से जातक की कुंडली में गुरु दोष व पितृदोष समाप्त होता है। गुरु पूर्णिमा पर शिष्य अपने गुरु की पूजा कर आशीर्वाद लेते हैं। जानिये इससे जुडी कहानिया.....

2 min read
Google source verification
poornima.jpg

Guru Purnima 2022 रायपुर। गुरु पूजन सनातन काल से चली आ रही एक परंपरा है। गुरु को महत्व देने के लिए महाभारत के रचयिता वेदव्यास के जन्मोत्सव को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाए जाने की परंपरा शुरू हुई। शहर के अनेक मठ-मंदिरों में गुरु पूर्णिमा महोत्सव को मनाया जाएगा। सारे शिष्य अपने गुरु की और गुरु अपने गुरु की पूजा करके सम्मान देंगे। पौराणिक कथा के अनुसार भगवान श्रीराम ने अपने गुरु मुनि वशिष्ठ को पूजा, भगवान श्रीकृष्ण ने अपने गुरु संदीपनी ऋषि को पूजा और पांडवों ने गुरु द्रोणाचार्य को पूजा।

ऐतिहासिक काल की मान्यता
माना जाता है कि गौतम बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त करने के बाद इसी दिन अपना पहला उपदेश दिया था। गुरु पूर्णिमा भारत के साथ - साथ नेपाल और भूटान में भी मनाया जाता है। इस दिन, 2,500 से अधिक वर्ष पहले गौतम बुद्ध ने शिक्षक बन कर सारनाथ में अपने पांच सहयोगियों को अपना पहला उपदेश दिया था, जो बाद में उनके अनुयायी बन गए। एक बार जब उन्होंने ज्ञान प्राप्त कर लिया, तो बुद्ध ने सुनिश्चित किया कि मानवता भी इससे लाभान्वित हो।

पौराणिक कथाओं में उल्लेख
प्राचीन काल में महर्षि पराशर भ्रमण कर रहे थे, तो उनकी नजर एक महिला पर पड़ी जिसका नाम सत्यवती था। सत्यवती एक मछुआरे की पुत्री थी जो देखने में बेहद खूबसूरत थी। लेकिन मछुआरे के घर में जन्म लेने के कारण उनके शरीर से मछली की गंध आती रहती थी। इसी कारण उन्हें मतस्यगंधा भी कहा जाता था। पराशर ऋषि ने उसे देखकर व्याकुल हो गए। लेकिन पराशर ऋषि ने सत्यवती से संतान प्रदान करने की इच्छा प्रकट की। ये बात सुनकर सत्यवती काफी आश्चर्यचकित होते हुए बोली कि मैं इस तरह से अनैतिक संबंध कैसे बना सकती हूं। इस तरह से संतान का जन्म लेना व्यर्थ है। तब पराशर ऋषि ने कहा कि तुम्हारी कोख से जन्म लेने वाला बच्चा संसार के लिए महान काम करेगा।

ऐसे में सत्यवती मान गई लेकिन उसनें ऋषि के सामने तीन शर्त रखी। पहली शर्त के अनुसार संभोग क्रीडा करते समय कोई न देखें। दूसरी शर्त थी कि होने वाला बच्चा महान ज्ञानी होने के साथ मेरी कौमार्यता कभी भंग न हो और तीसरी शर्त की शरीर से आने वाली गंध फूलों की खूशबू में बदल जाएं। ऐसे में ऋषि पराशर ने तुरंत तथास्तु कह दिया। सत्यवती की कोख से महर्षि वेदव्यास ने जन्म लिया और उन्ही के जन्मदिन को गुरुपूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है।