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ऐसा पौधा कि गले लगाओ तो काफूर हो जाता है सारा का सारा …

गढ़चिरौली से लाकर शासकीय आयुर्वेद कॉलेज के हर्बल गार्डन में दुर्लभ पौधे किए जा रहे हैं संरक्षित'कॉर्डिया मैक्लेओडीÓ (दहिमन पलास) पर जल्द शुरू होगा शोध, पहले चूहों पर

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ऐसा पौधा कि गले लगाओ तो काफूर हो जाता है सारा का सारा ...

ऐसा पौधा कि गले लगाओ तो काफूर हो जाता है सारा का सारा ...

रायपुर.

वनस्पतियों की ताकत देखनी है तो छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर स्थित श्रीनारायण प्रसाद अवस्थी शासकीय आयुर्वेद कॉलेज के हर्बल गार्डन आएं। जहां हर बीमारी की दवा पेड़, पौधों, पत्तियों और कांदे के रूप में मौजूद है। इन्हीं में एक है 'कॉर्डिया मैक्लेओडीÓ (दहिमन पलास) नाम का पौधा। ढ़ाई साल पहले गढ़चिरौली के जंगल से इसे लाया गया था, जो आज पेड़ बन चुका है। दावा है कि शराब का नशा किए हुआ व्यक्ति इस पेड़ को गले से लगा ले, या फिर पेड़ की शाखा को व्यक्ति के ऊपर फेरा जाए तो नशा उतर जाता है। कॉलेज के द्रव्य गुण विभाग के व्याख्याता डॉ. राजेश सिंह ने 'पत्रिकाÓ को बताया कि इस पेड़ के महत्व पर शोध की तैयारी की जा रही है। चूहों पर शोध करवाया जाएगा। गौरतलब है कि हर्बल गार्डन को आयुर्वेद कॉलेज और वन विभाग मिलकर विकसित कर रहे हैं,जो 10 एकड़ में फैला हुआ है। इसका उ²ेश्य दुर्लभ हो रहे पेड़, पौधों और वनस्पतियों को संरक्षित करना है। यहां पर अलग-अलग पेड़-पौधों पर शोध किए जा रहे है।

कॉर्डिया मैक्लेओडी मध्य भारत में ही पाया जाता है-

यह पेड़ 10-12 फीट तक बड़ा होता है। पलास के पत्ते की तरह इसके पत्ते होते हैं, इसलिए इसे दहिमन पलास कहते हैं। यह छत्तीसगढ़, ओडिसा और मध्यप्रदेश के कुछ क्षेत्रों में पाया जाता है।


आयुर्वेदिक पौधा- 1
नाम- दहिमन पलास

वैज्ञानिक नाम- कॉर्डिया मैक्लेओडी
कितनी संख्या- आयुर्वेद कॉलेज में सिर्फ एक

खासियत- कॉलेज में व्याख्याता डॉ. राजेश सिंह सालों से पेड़-पौधों पर शोध करते आ रहे हैं। उनका कहना है कि ये पौधा बोलाटाइल यानी की उडऩशील केमिकल को उत्सर्जित (निकालता) करता है। जो त्वचा व नाक के जरिए शरीर के अंदर पहुंचता है और नशे के प्रभाव को खत्म कर देता है। यह समुद्र तटीय क्षेत्रों में पाया जाता रहा है, मगर अभी दुर्लभ है। डॉ. सिंह के मुताबिक इसके पत्ते डायबिटीज की कारगर दवा का काम करते हैं।

आयुर्वेदिक पौधा- 2

नाम- भ्रमर छल्ली
वैज्ञानिक नाम- हाईमेनो डेक्टाइलोज एक्सेसम

कितनी संख्या- आयुर्वेद कॉलेज में सिर्फ एक
खासियत- आयुर्वेद कॉलेज के प्राध्यापकों ने बारनवापारा के जंगल में भ्रमर छल्ली के दो पेड़ों की पहचान की है। इसकी खासियत यह है कि कि इसके नीचे से गुजर जाने मात्र से आप क्या सोचते हुए यहां से जा रहे थे, भूल जाएंगे। इसलिए इसका नाम भ्रमर छल्ली रखा गया। यह दुर्लभ इस मायने में भी है कि प्रदेश में कहीं से भी तक इसकी रिपोर्टिंग नहीं हुई है। फिलिपींस में इस पर शोध हुआ है। इस पेड़ की छाल मलेरिया और चिकनकुनिया के इलाज में भी काम आती है। प्राध्यापकों ने वन अफसरों को इसके संरक्षण और इन दो पेड़ों के जरिए और पौधे तैयार करने को कहा है।

आयुर्वेकि पौधा- 3-
नाम- भूतहा पेड़

वैज्ञानिक नाम- इस्टर कुलिया यूरेंस
कितनी संख्या- आयुर्वेद कॉलेज में सिर्फ एक

खासियत- यह पेड़ भी बहुत कम दिखाई पड़ता है। यह दिन में सूर्य की किरणों को अपने अंदर खींचता है और रात में उसका उत्सर्जन करता है। रात में यह जुगनू की तरह चमकता हुआ दिखाई देता है। पेशाब में खून आने व बहुत ज्यादा जलन होने पर इसके फूल का इस्तेमाल किया जाता है।