
5 साल पहले माओवादियों ने की थी बर्बरता की हद पार, 31 कांग्रेसी नेताओं को गोलियों से भूना
रायपुर . 25 मई 2013 बस्तर के सुकमा में कांग्रेस ने राज्य में सत्ता परिवर्तन का शंखनाद करते हुए सभा की। दोपहर करीब 3 बजकर 10 मिनट में सभा समाप्त हुई। इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव के पूर्व परिवर्तन यात्रा को लेकर कांग्रेस के नेता अगली सभा के लिए रवाना होने तैयार थे।
कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार पटेल सहित कई बड़े नेता दोपहर 3 बजकर 20 मिनट पर जगदलपुर के लिए निकल गए। केसलूर में उनकी अगली सभा थी। करीब 4 घंटे के अंतराल में सवा सात बजे तक सुकमा से जगदलपुर के रास्ते में पडऩे वाली दरभा घाटी उस नरसंहार की गवाह बनी, जिसने कांग्रेस से उसके दो दर्जन से ज्यादा नेताओं को छीन लिया।
दरभा घाटी के उस खूनी मंजर का गवाह रहे और मौत के मुंह से लौटे राजनांदगांव के कांग्रेस नेता निखिल द्विवेदी से 'पत्रिका' ने बात की। निखिल इस मामले में एनआईए में चल रही जांच के मुख्य गवाह भी हैं और उन्होंने वो सब बताया, जो उन्होंने एनआईए को अपने बयान में कहा था।
माओवादी गाडिय़ों में नंदकुमार पटेल और दिनेश पटेल को ढूंढ रहे थे। नंदकुमार पटेल और दिनेश को माओवादी नहीं पहचानते थे, इसलिए उनके बारे में बार-बार पूछ रहे थे।
छह बज चुके थे... गोलीबारी लगभग थम गई थी। माओवादी पहाड़ी से नीचे उतर गए थे और गाडिय़ां चेक कर रहे थे, जो लोग गाडिय़ों में ही गोली लगने से मारे जा चुके थे, उन्हें चाकू मारकर नीचे फेंक रहे थे। बचे हुए लोगों को बंधक बना रहे थे। इस बीच महेन्द्र कर्मा अपनी गाड़ी से उतरे और अपना परिचय देते हुए कहा कि मुझे बंधक बना लो, बाकी लोगों को छोड़ दो।
गोली मारने का निर्देश
माओवादी मारे गए लोगों को नीचे फेंकते और बचे लोगों को बंधक बनाते जब विद्याचरण की गाड़ी के पास पहुंचे, तो गोंडी भाषा जानने वाले ड्राइवर बाला ने हाथ ऊपर कर कहा कि वह निर्दोष है। उसने विद्याचरण शुक्ल को तेंदूपत्ता ठेकेदार बताया। निखिल को विद्याचरण शुक्ल का नाती बताया। दो गोली खा चुके विद्याचरण को गाड़ी से नीचे उतारकर बाकी लोगों को बंधक बनाया गया और उन्हें बंदूक के बट से मारा गया। इस बीच ऊपर पहाड़ी से निर्देश दे रहे रमन्ना नाम के व्यक्ति ने बंधक बनाए गए सभी लोगों को मार डालने का निर्देश दिया।
30 फीट दूर महेन्द्र कर्मा को मारा
गाडिय़ों से लोगों को उतारकर बंधक बनाकर जमीन पर लिटा दिया गया था। कई नेता और पीएसओ सहित करीब २३ लोग बंधक थे। सभी जमीन पर लेटे थे। इनसे करीब 30 फीट दूर पर महेन्द्र कर्मा को खड़े कर गोलियों मारी गईं।
नहीं भूले हैं, गोलियों की आवाज और चीखें...
गांव वालों के सामने झीरम घटना का जिक्र करने से वे सिहर उठते हैं। गांव के कुछ लोगों ने बताया, घटना के दौरान उनके घर तक न केवल गोलियों की आवाज आ रही थी, बल्कि घटना में फंसे लोगों की चीखें भी साफ सुनाई दे रही थीं। लेकिन डर की वजह से मदद के लिए गांव से कोई नहीं जा सका।
नहीं रोकते घाटी में गाड़ी...
झीरम घाटी से अक्सर गुजरने वालों में तो खौफ नजर नहीं दिखता। बाहरियों में डर जरूर देखा जा सकता है। हमने घाटी में लिफ्ट मांगी तो किसीं ने वाहन नहीं रोका। काफी देर बाद एक स्थानीय व्यापारी ने रूककर परेशानी पूछी। आगे केसलूर के पास एक ढाबे में हमें वहीं बस्तर से बाहर के लोग मिल गए, जिन्होंने घाटी में वाहन नहीं रोका था। कारण पूछने पर कहा 'झीरम घाटी में कौन गाड़ी रोकेगा...'।
Published on:
25 May 2018 12:15 pm
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