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गणनायक का भी गढ़ छत्तीसगढ़… प्राचीन गणेश प्रतिमाएं और मंदिर सुना रहे हैं विरासत की कहानी, जानें

Raipur News: देशभर में बुधवार से गणेशोत्सव की शुरुआत हो चुकी है। भगवान गणेश को समर्पित यह पर्व छत्तीसगढ़ में भी धूमधाम से मनाते हैं।

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गणनायक का भी गढ़ छत्तीसगढ़ (फोटो सोर्स- DPR)

गणनायक का भी गढ़ छत्तीसगढ़ (फोटो सोर्स- DPR)

CG News: देशभर में बुधवार से गणेशोत्सव की शुरुआत हो चुकी है। भगवान गणेश को समर्पित यह पर्व छत्तीसगढ़ में भी धूमधाम से मनाते हैं। आधुनिक दौर में जहां बड़ी-बड़ी प्रतिमाएं और पांडाल बनाए जा रहे हैं, वहीं प्रदेश में विघ्रहर्ता को सदियों से पूजा जा रहा है। प्रदेश में कई स्थानों पर मिली प्राचीन गणेश प्रतिमाएं साक्ष्य प्रस्तुत करती है कि छत्तीसगढ़ भी गणनायक का गढ़ है। पुरातात्विक अवेशष के रूप में मौजूद इन प्रतिमाओं और मंदिरों का अपना इतिहास है।

वरिष्ठ पुरातत्वविद् और संस्कृतिकर्मी राहुल सिंह अपनी पुस्तक सिंहावलोकन में उल्लेख करते हैं कि पुरातात्विक प्राप्तियों से संपन्न छत्तीसगढ़ में मौर्य, शुंग-सातवाहन, कुषाण, गुप्त-वाकाटक युगों के समकालीन तथा क्षेत्रीय राजवंशों में राजर्षितुल्य कुल, शरभपुरीय, नल, पाण्डु-सोम, नाग, कलचुरि आदि के विविध पुरावशेष प्राप्त हुए हैं। बिलासपुर के मल्हार, रतनपुर, ताला, खरौद, रायगढ़ के पुजारीपाली (सरिया), सरगुजा के डीपाडीह, महेशपुर, बेलसर, कलचा-भदवाही, राजिम, सिरपुुर, आरंग, दुर्ग-राजनांदगांव में भगवान गणेश के पूजन के प्राचीन साक्ष्य मिले हैं।

ढोलकल गणेश प्रतिमा अतिप्राचीन

बस्तर में 2100 फीट की दुर्गम ऊंचाई पर स्थित, छिंदक नागवंशकालीन ढोलकल गणेश की महत्वपूर्ण प्रतिमा है। इसके अलावा बारसूर स्थल संग्रह में, सिंघईगुड़ी में, छिंदगांव में, दंतेश्वरी मंदिर, दंतेवाड़ा के मंडप में काले पत्थर की विशाल प्रतिमा है। बड़े डोंगर- कोंडागांव से 50 किलोमीटर दंतेश्वरी मंदिर के पास बालाजी मंदिर के गर्भगृह और प्रांगण में तीन प्रतिमाएं हैं। कांकेर के शीतला मंदिर में एक तथा बालाजी मंदिर में दो प्रतिमाएं। महेशपुर और देवटिकरा में, कोरिया सोनहत में।

शिव के साथ गणपति पूजन का महत्व

छत्तीसगढ़ में शैव परिवार के देवताओं में भगवान शिव के विभिन्न रूपों के साथ भैरव, कार्तिकेय, गौरी-पार्वती और नंदी के साथ गणपति की प्रतिमाओं के पूजन के साक्ष्य मिले हैं। यहां विघ्रहर्ता की स्वतंत्र प्रतिमाएं भी बड़ी संख्या में प्राप्त हुई हैं। साथ ही गणेश प्रतिमाएं प्रवेश द्वार तथा सिरदल के मध्य अंकित किए जाने की परम्परा भी रही है, जिसके फलस्वरूप सिरदल को गणेश पट्टी तथा मुख्य द्वार को गणेश-द्वार के नाम से अभिहित किया गया है। छत्तीसगढ़ में मिली गणेश प्रतिमाओं का काल लगभग छठवीं सदी ईस्वी से तेरहवीं सदी ईस्वी तक है।

शिलालेखों में भी गणेश वंदना

छत्तीसगढ़ में मिले प्राचीन शिलालेखों में भी गणेश की वंदना का उल्लेख है। कोसगईं में मिले शिलालेख में साहित्यिक ढंग से उनकी क्रीड़ा का वर्णन करते हुए कहा गया है कि लंबोदर आपकी रक्षा करें, जो बालक होने पर भी अपनी मति का अनुसरण करते हैं। इसी प्रकार ब्रह्मदेव के रायपुर शिलालेख में वन्दना है।

छत्तीसगढ़ की विशालतम प्रतिमा बारसूर में

बारसूर के मामा-भांचा मंदिर के सामने स्थापित गणेश की प्राचीन प्रतिमा आकार की दृष्टि से संभवत: प्रदेश की विशालतम प्रतिमा है। प्रतिमा का कलात्मक सौंदर्य और दक्षिण भारतीय अलंकरण परम्परा का प्रभाव भी विशेष है। सरगुजा क्षेत्र से भी गणेश की विभिन्न प्रतिमाएं प्राप्त हुई हैं, इनमें डीपाडीह से प्राप्त नृत्य-गणेश की प्रतिमा अत्यंत आकर्षक है। इसी स्थान से प्राप्त एक अन्य गणेश प्रतिमा का शुण्ड दक्षिणावर्त प्रदर्शित किया गया है, जो तांत्रिक परम्पराओं के प्रभाव का अनुमान देता है। ताला के देवरानी मंदिर के सोपान क्रम के उत्तर में स्थित विशाल आकार की गणेश प्रतिमा है।

यह प्रतिमा परवर्ती संरचना के कारण ढंकी हुई थी, जिसे मलबा-सफाई के दौरान मिला। मल्हार से गणेश की विभिन्न काल और प्रकार की प्रतिमाएं प्राप्त हुई हैं, जिसमें पातालेश्वर मंदिर परिसर में रखी पंचमुखी हेरम्ब गणेश का विशाल प्रतिमा खंड प्रमुख है। रतनपुर की गढ़ी में भी एक विशाल किन्तु खंडित प्रतिमा के भाग अवशिष्ट है।