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क्लास वन के बाद स्कूल नहीं गई ये मैजिक गर्ल, अब पढ़ रहीं लोगों का दिमाग

मेंटलिस्ट सुहानी शाह ने रायपुर में दिया प्रोग्राम, पत्रिका प्लस से खास बातचीत

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magic girl come to raipur

क्लास वन के बाद स्कूल नहीं गई ये मैजिक गर्ल, अब पढ़ रहीं लोगों का दिमाग

ताबीर हुसैन@ रायपुर. बेमिसाल खूबसूरती और उस पर जादूगरी का हुनर। है न थोड़ी चौंकाने वाली बात? 29 साल की उम्र में कोई 19 का नजर आए और जबर्दस्त कॉन्फिडेंट के साथ आपके माइंड को रीड कर ले तो हर कोई दांतों तले उंगली दबा ले। जीहां, ऐसा ही हुआ एनआइटी में इकलेक्टिका-2019 में मैजिक शो दिखाने आई सुहानी शाह के साथ। सुहानी ने युवाओं का माइंड न सिर्फ पढ़ा बल्कि ऐसी जादूगरी दिखाई कि सब दंग और सन्न रहे गए। सुहानी ने पत्रिका 'प्लस' से विशेष बात की। उन्होंने बताया कि बचपन में टीवी पर मैजिक शो देखा था, तब से मुझे जादू सीखने का मन हुआ। पापा से कहा कि मैं जादूगर बनना चाहती हूं। वे हंसने लगे। उन्होंने लाइटली लिया लेकिन दिन-ब-दिन मेर रुझान देखकर उनको अहसास हो गया था कि जादू मेरा पैशन बनता जा रहा है। उधर उन्होंने हां कहा, इधर मेरी जिंदगी का यह टर्निंग प्वाइंट साबित हुए।

सात की उम्र में पहला स्टेज शो
सुहानी ने कहा कि मेरा ध्यान पढ़ाई में नहीं था, अगर था तो वह मैजिक पर। चूंकि 7 साल साल की उम्र में मैंने स्टेज शो शुरू कर दिया था। क्लास वन तक तो थी, उसके बाद मुझे स्कूल जाने का मौका नहीं मिला। मेरी ऑडियंस की मेरी टीचर रही है। मैंने दुनियादारी उन्हीं से सीखी। हालांकि मैं यह मानती हूं कि हर चीज आप कभी भी सीख सकते हैं बशर्ते आप में सीखने की ललक होनी चाहिए। मैंने घर में काफी कुछ पढ़ा और आज भी पढ़ती ही रहती हूं। जिसे सीखना हो वह बिना स्कूलिंग के भी सीख सकता है और जो सीखना नहीं चाहता उसके लिए दुनिया का बड़ा सा बड़ा स्कूल भी किसी काम का नहीं।

जादू एक आर्ट है
सुहानी कहती हैं कि जैसे नृत्य एक आर्ट है, संगीत या पेंटिंग एक आर्ट है, ठीक वैसे ही जादू भी एक हुनर है। हालांकि कई लोग इसे अंधविश्वास से जोड़कर देखते हैं, कुछ लोग दैवीय शक्ति मान लेते हैं जबकि एेसा कुछ भी नहीं है। जब मैंने जादू सीखना तय किया तो उस वक्त सबसे सोचने वाली बात थी कि यह फील्ड कैसे काम करती है। मुझे एक साल लग गए इसे सीखने में। मैंने 22 अक्टूबर 1997 में पहला स्टेज शो किया था। उसके बाद से देश-विदेश में करीब 5 हजार शो कर चुकी हूं। शुरुआत अहमदाबाद से हुई और दो महीने में ही मैं मुंबई चली गई थी।