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माटी के बरतन के महत्तम

माटी के बरतन ह कुम्हारमन के रोजी-रोटी के साधन आय। कुम्हारमन सबले जादा हंडिय़ा बनाथें। काबर के ऐकर मांग जादा रहिथे। माटी के बरतन ल लगन मेहनत ले बनाथे अउ वोला हाट-बाजार म बेच के चार पइसा कमाके अपन जिनगी ल गुजारा करथें।

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माटी के बरतन के महत्तम

माटी के बरतन के महत्तम

माटीकला म बस्तर अंचल ल समपन्न माने जाथे। इहंा के कुम्हारमन अपन आप ल राना, नाग, अउ चक्रधारी कहिथे। बस्तर अंचल म कुम्हार के बरतन के बिना कोनो संस्कार ह पूरा नइ होवय। छ_ी-बरही, बर-बिहाव, पूजा-पाठ या कोनो मरनी होय, कुम्हार के बरतन के बिना काम ह सफल नइ होय। बरतन के जरूरत सबो काम म परथे।
माटी के बरतन बनाय म कोसराय कुम्हारमन ल सबले जादा दक्छ माने जाथे। कुम्हारमन बर माटी ह रोजी रोटी अउ जिनगी के साधन आय। एक समे रहिस जब मनखेमन माटी के बरतन म दार, भात अउ साग सबो ल रांधय। माटी के बरतन म खाय के अलगेच मज़ा रहय। माटी के बरतन म साग -भातमन घाते मिठाय। संग म बिटामिन, प्रोटिनमन घलो मिलय। जेकर ले सरीर ह स्वस्थ्य रहय। कोनो किसिम के रोग-राई घलो नइ होवय। फेर बदलत समे म कांसा, तांबा, पीतल, टीना, लोहा, स्टील के बरतन आय ले माटी के बरतन हनदावत हे।
माटी के बरतन के महता ह कम नइ होय हे। आज घलो माटी के बरतन के ओतकिच महत्ता हे, जतकी काली रहिस। कुम्हारमन ह माटी के बरतन ल परंपरा गत ढंग ल छोड़ के अब नवा ढंग ले सुग्घर अउ मनमोहक बनाय के उदिम करत हें। जेकर ले माटी के बनाय बरतन के मांग ह देस- बिदेस म घलो बढ़त हे।
कुम्हारमन माटी के बरतन बनाय के पहली माटी के जुगाड़ करथें। बस्तरिहा कुम्हारमन नगरनार के तरिया ले माटी ल लाथे। माटी के एकठन ढेला म पानी डार के देखथे कहुं माटी के ढेला ह घूर जाथे त वो माटी ह बरतन बनाय के काम नइ आवय। जेन माटी के ढेला ह पानी ल सहथे अउ नइ घुरय उही माटी ल अपन डिही डोगर म लाथें। माटी ह घलो तीन किसम के होथे। लाली, करिया अउ सादा। फेर, लाल माटी ह बरतन बनाय के काम नइ आवय। करिया माटी म रेती मिला के बरतन बनाथे, जेकर ले बरतन ह बने मजबूत बनथे।
माटी ल बने छांद के ईटा, पथरा ल निमारथे अउ माटी के गोंदा बना के चाक म रख के बरतन ला बनाथे कुम्हारमन के बनाय माटी के बरतन के अलग-अलग नाव रहिथे। सब बरतन म अपन अपन गुन बिसेसता समाय रहिथे जइसे- मडक़ी, घाघरी, कनजी, टोकसी, पराई, तैलय, खप्पर,करसा, परात, तवा, गुल्लक, ढाकनी, बिलौना, दीया, कुलहड़, तावणी, कुंडा, कटोरा, पारी, सिकोरा माटी ले बने बरतन आय। ऐकर असन अउ कतको बरतन नवा-नवा बनाय जाथे।
मरकी: बड़े मुंहु के बरतन आय ऐमा पानी भरे बर उपयोग करथे। कहुं-कहुंमनमन चाउर ला घलो उसनथे। मरकी म रखे पानी ह गरमी दिन म बने जुड़ रहिथे।
घघरी: एहु ह पानी भरे के बरतन आय, फेर घघरी के मुंहु ह सकेला रहिथे, जेकर ले पानी ह फैलय नइ। गरमी दिन म पानी ह बने बरफ जइसन ठंडा रहिथे। घघरी ह नदिया नरवा ले पानी लाय ले ेजाय म बने धरत बनथे।
कनजी: कनजी भात साग राधे के बरतन आय। कनजी म बनाय साग-भात ह अब्बड़ सुहाथे। पौसिस्ट तत्व ह घलो मिलथे। पोस्टिकता ह कम नइ होवय।
टोकसी : ऐहा भात-साग रांधे म काम अवइया बरतन आय। जेमा कम असन साग घलो राध सकथे। कभुकभार एक-दूझन बर राधे के होंगे त टोकसी म साग ल रांधथे।
परई : माटी के छोटे थारी असन बरतन आय। जेमा मरकी, घघरी जइसन खुला मुंहु वाला बरतन ल तोपे ढके के काम आथे। ऐकर ले अउ छोटे बरतन ल रुखता कहे जाथे। वहु ह तोपे ढके के काम आथे।
गोर: गोर धान-चाउर अउ पानी रखे के बडक़ा बरतन आय। ऐमा कहुं बहुत अकन चाउर हे, नइते बहुत अकन महुआ हे त एसन जिनिस ल गोर म धरे बर बने बनथे।
तैला : ऐहा रोटी रांधे के तवा आय। जेमा माटी के चूल्हा म तवा ल रख के आगी बारत तैलय म रोटी रांधय के काम आथे। तैलइ म बने रोटी ह पाताल चटनी संग अब्बड़ सुहाथे।
खप्पर : पूजा-पाठ म काम आथे। खप्पर म दहकत अंगरा आगी ल रख के वोमा हुम देय जाथे। हुम दसायन के देय जाथे। कहुं कहुं जगा म गुड़ के घलो हुम देय जाथे।
करसा: करसा ह पानी भरे के बरतन आय। जेकर महत्ता ह पौरानिक समे ले चले आथे। देवारी म करसा के पूजा करथे। घर-घर म करसा आजो देखें बर मिलथे।