
मुनगा पौधे का छत्तीसगढ़ में हो रहा बड़े पैमाने पर रोपण, पोषक और औषधीय गुणों से भरपूर इन रोगों के लिए है रामबाण
रायपुर. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के आह्वान पर पोषक और औषधीय गुणों से भरपूर मुनगा (सहजन) पौधे का बड़े पैमाने पर रोपण किया जा रहा है। कांकेर जिले के सभी स्कूल, आश्रम-छात्रावास एवं आंगनबाड़ियों में मुनगा (सहजन) के पौधे का रोपण किया जा रहा है। कांकेर विधानसभा क्षेत्र के विधायक शिशुपाल शोरी ने आज जनप्रतिनिधियों एवं प्रशासनिक अधिकारियों के साथ शासकीय कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय कांकेर और प्राथमिक विद्यालय ईच्छापुर के परिसर में मुनगा (सहजन) के पौधों का रोपण कर इस अभियान का शुरूआत किया।
इस अभियान के तहत् कांकेर जिले के कुल 2442 विद्यालयों और 188 आश्रम-छात्रावास एवं 2108 आंगनबाड़ी केन्द्रों के परिसरों में मुनगा के पौधे का रोपण किया जा रहा है। जिले में 1591 प्राथमिक विद्यालय, 608 माध्यमिक विद्यालय, 107 हाईस्कूल और 136 हायर सेकेण्डरी स्कूल है।
इसलिए बड़े पैमाने में हो रहा रोपण
आयुर्वेद में 300 रोगों का मुनगा (सहजन) से उपचार बताया गया है, लेकिन आधुनिक विज्ञान ने इसके पोषक तत्वों की मात्रा खोजकर संसार को चकित कर दिया है। इसकी फली, हरी पत्तियों व सूखी पत्तियों में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, कैल्शियम, पोटेशियम, आयरन, मैग्नीशियम, विटामिन-ए, सी और बी कॉम्पलैक्स प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। एक अध्ययन के अनुसार इसमें दूध की तुलना में 4 गुना कैलशियम और दोगुना प्रोटीन पाया जाता है।
मुनगा (सहजन) की फली एवं पत्तियों पर किए गए नए शोध से पता चला है कि प्राकृतिक गुणों से भरपूर इतने औषधीय गुणों से भरपूर है कि उसकी फली के अचार और चटनी कई बीमारियों से मुक्ति दिलाने में सहायक हैं। कुछ विशेषज्ञों के अनुसार इसे दुनिया का सबसे उपयोगी पौधा कहा जा सकता है। यह न सिर्फ कम पानी अवशोषित करता है बल्कि इसके तनों, फूलों और पत्तियों में खाद्य तेल, जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ाने वाली खाद और पोषक आहार पाए जाते हैं।
इसके फूल, फली व पत्तों में इतने पोषक तत्त्व हैं कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (who) के मार्गदर्शन में दक्षिण अफ्रीका के कई देशों में कुपोषण पीडित लोगों के आहार के रूप में मुनगा (सहजन) का प्रयोग करने की सलाह दी गई है। एक से तीन साल के बच्चों और गर्भवती व प्रसूता महिलाओं व वृद्धों के शारीरिक पोषण के लिए यह वरदान माना गया है। लोक में भी कैन्सर व पेट आदि शरीर के आभ्यान्तर में उत्पन्न गांठ, फोड़ा आदि में सहजन की जड़ का अजवाइन, हींग और सौंठ के साथ काढ़ा बनाकर पीने का प्रचलन है।
यह भी पाया गया है कि यह काढ़ा साइटिका (पैरों में दर्द), जोड़ो में दर्द, लकवा, दमा, सूजन, पथरी आदि में लाभकारी है। सहजन के गोंद को जोड़ों के दर्द और शहद को दमा आदि रोगों में लाभदायक माना जाता है। आज भी ग्रामीणों की ऐसी मान्यता है कि सहजन के प्रयोग से विषाणु जनित रोग चेचक के होने का खतरा टल जाता है।
दुनिया में करोड़ों लोग भूजल का प्रयोग पेयजल के रूप में करते हैं। इसमें कई तरह के बैक्टीरिया होते हैं जिसके कारण लोगों को तमाम तरह की जलजनित बीमारियाँ होने की संभावना बनी रहती है। इन बीमारियों के सबसे ज्यादा शिकार कम उम्र के बच्चे होते हैं। ऐसे में मुनगा (सहजन) के बीज से पानी को काफी हद तक शुद्ध करके पेयजल के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। मुनगा (सहजन) के पेड़ से पानी को साफ करके दुनिया मे जलजनित बीमारियों से होने वाली मौतों पर काफी हद तक अंकुश लगाया जा सकता है।
इसके बीज से बिना लागत के पेय जल को साफ किया जा सकता है। इसके बीज को चूर्ण के रूप में पीस कर पानी में मिलाया जाता है। पानी में घुल कर यह एक प्रभावी नेचुरल क्लैरीफिकेशन एजेंट बन जाता है। यह न सिर्फ पानी को बैक्टीरिया रहित बनाता है बल्कि यह पानी की सांद्रता को भी बढ़ाता है जिससे जीवविज्ञान के नजरिए से मानवीय उपभोग के लिए अधिक योग्य बन जाता है। भारत जैसे देश में इस तकनीक की उपयोगिता असाधारण हो सकती है, जहाँ आम तौर पर 95 फीसदी आबादी बिना साफ किए हुए पानी का सेवन करती है।
दो दशक पूर्व तक मुनगा (सहजन) का पौधा प्राय: हर गांव में आसानी से मिल जाता था। लेकिन आज इसके संरक्षण की आवश्यकता का अनुभव किया जा रहा है। इस पौधे के विरल होते जाने का कारण यह है कि इस पर भुली नामक एक कीट रहता है, जिससे अत्यंत ही खतरनाक त्वचा एलर्जी होती है। इसी भयवश ग्रामीण इस पौधे को नष्ट कर देते हैं। एक ओर जहाँ विशेषज्ञ इसे भुली से मुक्ति के उपाय खोजने में लगे हैं वहीं दूसरी ओर मुनगा (सहजन) का साल में दो बार फलने वाला वार्षिक प्रभेद तैयार कर लिया गया है, जिससे ज्यादा फल की प्राप्ति होती है।
Published on:
06 Jul 2020 07:31 pm
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