ऐसे बना आस्था का केन्द्र
नगर पंचायत पांडातराई से करीब चार किमी दूर ग्राम खड़ौदाकला में स्थित मां काली मंदिर 17 वर्ष पुराना है। आस्था के चलते ही एक बच्चे की जान बची जिसके बाद यहां पर मंदिर की स्थापना की गई, जो अब श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र बन चुका है।सेवक के जरिए मां देवी सुनते है लोगों की पुकार
यहां मान्यता प्रचलित है कि स्वयं मां काली, मंदिर के सेवक सरजूराम साहू के माध्यम से उनकी समस्याओं का निराकरण करती हैं। लोगों का यह कहना है कि मां काली सरजूराम पर धारण हो जाती है। इस दौरान सरजू किलों से बने धारदार आसन में बैठता है।पढ़ा लिखा नहीं फिर भी बोलता है संस्कृत में श्लोक
भक्तों से बात करता है और उनकी समस्या सुनकर उसका निदान बताता है। इस दौरान संस्कृत में श्लोक भी बोलता है जबकि सरजू राम पढ़ा लिखा नहीं है। यह दृश्य केवल नवरात्रि नहीं बल्कि प्रत्येक सोमवार व शनिवार को सुबह 6 से दोपहर 12 बजे तक दिखाई देता है।वर्ष 2002 में मूर्ति की स्थापना
सरजूराम साहू ग्राम रबेली के अपने दो साथी सुखीराम साहू व सुखचैन साहू के साथ जबलपुर के भेड़ाघाट जाकर मां काली की मूर्ति लाए। 14 जनवरी सन 2002 को ग्राम खड़ौदाकला में मूर्ति की स्थापना की गई। सरजू राम ने मेहनत मजदूरी कर मंदिर का निर्माण कराया और सेवक बनकर मां काली की सेवा में लीन हो गए। मंदिर में नवरात्रि पर्व में श्रद्धालुओं द्वारा मनोकामना ज्योति कलश प्रज्जवलित कराए जाते हैं।