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आंबेडकर अस्पताल में अब हर मौत का हो रहा ऑडिट, इलाज व व्यवस्था में होगी सुधार

Raipur News: आंबेडकर अस्पताल में अब हर मरीज की मौत का ऑडिट हो रहा है। इससे मौत की वजह का वास्तविक कारण पता चल रहा है।

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Now every death is being audited in Ambedkar Hospital Raipur

आंबेडकर अस्पताल

रायपुर। Chhattisgarh News: आंबेडकर अस्पताल में अब हर मरीज की मौत का ऑडिट हो रहा है। इससे मौत की वजह का वास्तविक कारण पता चल रहा है। ऑडिट में मौत का जो प्रमुख कारण आया है, इसमें मरीजों का बीमारी के बाद देरी से अस्पताल पहुंचना, क्रिटिकल स्थिति या निजी अस्पतालों द्वारा क्रिटिकल होने पर मरीजों को आंबेडकर अस्पताल रिफर करना है। इसके कारण अस्पताल में मौतों की संख्या भी बढ़ रही है। अस्पताल में प्रतिदिन औसतन 7 से 8 मरीजों की मौत होती है।

आंबेडकर अस्पताल सरकारी व निजी क्षेत्र में प्रदेश का सबसे बड़ा अस्पताल है। यहां 1252 बेड है। मरीजों की लगातार मौत होने के बाद अस्पताल प्रबंधन ने मरीजों की मौत का ऑडिट कर रहा है। हालांकि अभी एक माह से ऑडिट बंद हो गया है। इसे फिर शुरू किया जा रहा है। दो माह पहले लगातार तीन माह तक मौतों का ऑडिट किया गया। ऑडिट टीम में मेडिसिन के अलावा जनरल सर्जरी, पीडियाट्रिक, ऑब्स एंड गायनी विभाग के डॉक्टरों को शामिल किया गया है। ये टीम हर माह मौतों का वास्तविक कारण बताती है। ट्रामा सेंटर में कई बार मरीज के आने के बाद डॉक्टरों का रिस्पांस टाइम भी देरी से मिलता है। नर्सिंग व पैरामेडिकल स्टाफ की भी लापरवाही सामने आई है। हालांकि अस्पताल प्रबंधन के अनुसार ऐसे केस गिने-चुने ही हैं। सर्पदंश के केस में कुछ मरीजों में देखने में आया कि पहले वे गांव में झाड़-फूंक कराते रहे। जब ठीक नहीं हुए तो दो से तीन दिन बाद अस्पताल इलाज के लिए पहुंचे। तब तक सांप का जहर पूरे शरीर में फैल चुका था। ऐसे मरीजों को बचाया नहीं जा सका। इसी तरह सड़क दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल मरीजों के अस्पताल पहुंचने में भी देरी हुई। मरीज के सिर से लगातार खून बह रहा था। जब ये अस्पताल पहुंचे तो पल्स भी नहीं चल रहा था। ऐसे मरीजों की मौत हो गई।

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सबसे ज्यादा ट्रामा सेंटर व कैंसर विभाग में मौत

अस्पताल में सबसे ज्यादा मरीजों की मौत ट्रामा सेंटर व कैंसर विभाग में हो रही है। हालांकि प्रबंधन ने इसे सामान्य भी माना है। ट्रामा सेंटर में सामान्यत: सड़क दुर्घटना में हेड इंजुरी व फ्रैक्चर वाले मरीज पहुंचते हैं। इसमें आधे से ज्यादा घायल गंभीर होते हैं। इन्हें डॉक्टर लाख कोशिश के बाद भी बचा नहीं सकते। कैंसर विभाग में ज्यादातर मरीज थर्ड स्टेज में पहुंचते हैं। कैंसर विभाग के डॉक्टरों के अनुसार 100 में 60 कैंसर मरीजों की मौत हो जाती है। यानी केवल 40 मरीज बच पाते हैं, जो समय पर अस्पताल पहुंचते हैं। मेडिसिन, ऑब्स एंड गायनी, चेस्ट एंड टीबी, जनरल सर्जरी, ऑर्थापीडिक विभाग में भी इलाज के दौरान मरीजों की मौत हो जाती है। नेत्र रोग, मनोरोग, स्किन, ईएनटी में मरीजों की मौत बिल्कुल नहीं होती, क्योंकि इन विभागों में इमरजेंसी जैसी कोई स्थिति नहीं होती।

कोरोना काल में मौत का हो रहा था ऑडिट

कोरोनाकाल में कोरोना से मरने वाले मरीजों की मौत के लिए ऑडिट कमेटी बनाई गई थी। कमेटी हर मौत का ऑडिट करती थी। हालांकि इसमें ज्यादातर मौतों का कारण मरीजों के देरी से अस्पताल पहुंचना ही रहा। बेड नहीं है या जरूरी इंजेक्शन नहीं है, ऑडिट कमेटी ने इसे ध्यान नहीं दिया। जबकि कोरोना की दूसरी लहर में मरीजों को न ऑक्सीजन बेड मिल रहे थे और न ही जरूरी रेमडेसिविर इंजेक्शन। कई मरीजों की मौत तो ऑक्सीजन की कमी के कारण हो गई। हालांकि अस्पताल प्रबंधन या सरकार ने इसे कभी स्वीकार नहीं किया।

मौतों का ऑडिट कराया जा रहा है। इसमें मौतों का प्रमुख कारण मरीजों के देरी से अस्पताल पहुंचना है। कुछ केस में निजी अस्पताल से मरीज को क्रिटिकल होने के बाद भेजा जाता है। अस्पताल की व्यवस्था में भी सुधार किया जा रहा है। - डॉ. एसबीएस नेताम, अधीक्षक, आंबेडकर अस्पताल

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