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बैंकों में बगैर जांच खुल रहे फर्जी खातों से मिल रहा ऑनलाइन फ्रॉड को बढ़ावा

तेजी से बढ़ रहे ऑनलाइन फ्रॉड की जड़ें बैंकों में हैं। ठगी करने वाले के खाते बैंकों में आसानी से खुल रहे हैं।

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बैंकों में बगैर जांच खुल रहे फर्जी खातों से मिल रहा ऑनलाइन फ्रॉड को बढ़ावा

बैंकों में बगैर जांच खुल रहे फर्जी खातों से मिल रहा ऑनलाइन फ्रॉड को बढ़ावा

रायपुर. तेजी से बढ़ रहे ऑनलाइन फ्रॉड की जड़ें बैंकों में हैं। ठगी करने वाले के खाते बैंकों में आसानी से खुल रहे हैं। खाता खोलने के लिए आवश्यक दस्तावेजों की गहराई से जांच नहीं हो रही है। इसका खामियाजा आम लोगों को भुगतना पड़ रहा है।

ऑनलाइन ठगी करने वाले पहले बैंकों में फर्जी नाम पते और दस्तावेजों के जरिए अपना एकाउंट खोलते हैं। फिर इन्हीं खातों में ठगी का पैसा ट्रांसफर करते हैं। पुलिस जब ठग की तलाश में खाते की जांच करती है और उसमें दिए नाम और पते पर पहुंचती है, तो वहां उस नाम का कोई व्यक्ति नहीं मिलता। और न ही उस पते पर संबंधित खाताधारक रहता है। कई बार तो फोटो भी किसी दूसरे का लगाकर रहते हैं। खाता खोलने के लिए आवश्यक दस्तावेज वोटर आईडी, राशन कार्ड और यहां तक कि आधार कार्ड भी फर्जी निकलते हैं।

बैंक खाता खुलने के कारण ही ठगी करने वालों का हौसला बढ़ता है और फिर वे आसानी से धोखाधड़ी कर रहे हैं। ऑनलाइन ठगी के 90 फीसदी प्रकरण में इसी तरह के बैंक खातों का इस्तेमाल हो रहा है। पुलिस की जांच में इसका खुलासा हुआ है।

ऑनलाइन ठगी के हर साल 200 से ज्यादा प्रकरण दर्ज हो रहे हैं। और थानों में ऑनलाइन ठगी की शिकायत करने वालों की संख्या इससे तीन गुनी है। ऑनलाइन ठगी का शिकार होने वालों में उच्च शिक्षित लोगों की संख्या भी अधिक आ रही है। इससे पुलिस अफसर भी हैरान है कि अब तक ठगी का शिकार होने वालों में कम पढ़े लिखे, गृहणी या बुजुर्ग होते थे। लेकिन अब शिक्षित लोग भी झांसें में आ रहे हैं। पुलिस के पास रोज दो से तीन शिकायतें पहुंच रही है।

साइबर क्राइम में ऑनलाइन ठगी के बढ़ते मामलों को देखते हुए राजधानी पुलिस पिछले चार साल से अलग-अलग नाम से जागरूकता अभियान चला रही है। कभी ई-रक्षक, तो कभी ई-रक्षा और जनमित्र अभियान। इसके तहत अब तक विभिन्न कॉलोनियों-मोहल्लों और शौक्षणिक संस्थानों में 300 से ज्यादा बैठकें व कार्यशाला का आयोजन किया जा चुका है। इसमें ऑनलाइन ठगी और उससे बचने के उपाय, सावधानियां आदि जानकारी दी गई है। इसके बावजूद लोग जागरूक नहीं हो पा रहे हैं।

कई बैंकों ने ग्राहकों की केवायसी और खाता संबंधी कामकाज आउटसोर्सिंग पर दे दिया है। इससे भी ठगों के फर्जी खाते खुल रहे हैं। खाता धारकों का वेरीफिकेशन कभी नहीं किया जाता। कुछ बैंकों में 3 माह के भीतर वेरीफीकेशन व केवायसी का सिस्टम हैं, लेकिन इसके बाद कभी जांच नहीं करते हैं।

अधिकांश ई-वॉलेट आधार कार्ड, पैन नंबर से नहीं जुड़े हैं, जिससे इसमें राशि जमा करने और निकालने वालों के बारे में आसानी से जानकारी नहीं मिल सकती है। इसलिए एटीएम फ्रॉड करने वाले इसका भी उपयोग करने लगे हैं। यह भी ठगी को बढ़ावा देने का कारण बनता जा रहा है।

करीब दो साल पहले पंडरी व्यवसायिक बैंक के खाते को हैक करके ढाई करोड़ रुपए ठगों ने निकाल लिए थे। इस राशि को ठगों ने अलग-अलग शहरों के 20 बैंकों में ट्रांसफर कर दिया था। सभी खाते फर्जी नाम-पते से खुले थे। पुलिस ने बैंक खातों को रातोरात ब्लॉक करके सवा दो करोड़ वापस ले लिया, लेकिन आरोपियों को पकडऩे में खासी मशक्कत करनी पड़ी थी।

सहारा इंडिया के कैशियर प्रदीप से भी करीब साढ़े तीन करोड़ की ऑनलाइन ठगी हुई थी। उनके पैसे भी ठगों ने अलग-अलग खातों में जमा करवाकर निकाला था। उनके खाताधारकों के भी नाम-पते अलग-अलग थे।

रायपुर एसएसपी आरिफ शेख ने बताया कि ऑनलाइन ठगी का बड़ा कारण फर्जी बैंक खाते हैं। इस तरह के खातों पर रोक लगनी चाहिए। बैंकों को पत्र लिखा जा रहा है। आम लोगों को भी जागरूक किया जा रहा है।