साइबर ठगी बढ़ने की बड़ी वजह बिना जांच पड़ताल के बैंक खातों का खुलना भी है। इन बैंक खातों में संदिग्ध लेन-देन होता है, उसकी भी गंभीरता से मॉनिटरिंग नहीं होती है। इसके चलते साइबर फ्रॉड करने वाले किसी भी बैंक खातों से आसानी से रकम निकाल लेते हैं।
Cyber Crime: डिजिटल लेन-देन भी बढ़ा
साइबर ठगी के पीछे ऑनलाइन लेनदेन का चलन भी है। डिजिटलाइजेशन के बाद देश में तेजी से बैंकों की गली-गली शाखाएं खुली है। गरीब-मजदूरों के नाम से भी बैंकों में खाते हैं और वे ऑनलाइन लेन-देन कर रहे हैं।
20 से 200 से ज्यादा बैंक खातों में करते हैं ट्रांसफर: साइबर ठग ऑनलाइन ठगी का पैसा अलग-अलग शहरों में स्थित बैंक खातों में ट्रांसफर करते हैं। बैंक खातों की संख्या 20 से लेकर 200 से अधिक भी रहती है। ये बैंक खाते ठगों के सहयोगियों के ही होते हैं या उनके द्वारा खुलवाए होते हैं। एसीसीयू के टीआई प्रवेश पांडेय ने कहा..
बैंकों में यह होना चाहिए
बैंक में खाता खोलते समय केवाइसी का भौतिक सत्यापन करने के साथ बायोमैट्रिक भी होनी चाहिए। किसी भी बैंक खाते में अचानक ट्रांजेक्शन बढ़ने पर उस खाते को निगरानी में लेकर संबंधित थाना पुलिस को सूचना देनी चाहिए। सभी बैंकों के लेन-देन पर एसएमएस अलर्ट की व्यवस्था होनी चाहिए। सभी बैंकों के एटीएम से पैसे निकालते समय ओटीपी/कोड की सुविधा होनी चाहिए। सभी बैंकों के एटीएम पर गार्ड व उच्च गुणवत्ता वाले सीसीटीवी कैमरे लगे होने चाहिए।
एक बैंक खाते से पैसे ट्रांसफर होते हैं और जिस खाते में जमा होते है, उस खाते से पैसों की निकासी या ट्रांसफर दो दिन पहले नहीं होनी चाहिए। हर ट्रांजेक्शन पर कॉल वैरिफिकेशन होना चाहिए, जैसे चेक के आहरण पर होता है।
साइबर क्राइम हेल्पलाइन नम्बर 1930 या साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल पर दर्ज शिकायतों पर तुरन्त फ्रीज की कार्रवाई होनी चाहिए। ऑनलाइन पैसा ट्रांसफर की लिमिट होनी चाहिए। सभी बैंकों के नोडल अधिकारी व ब्रांच के सम्पर्क नंबर गूगल पर अपडेट रखने चाहिए।
साइबर ठगों द्वारा ऑनलाइन फर्जी कस्टमर केयर एवं बैंक के सम्पर्क नम्बर पोस्ट करने की निरन्तर निगरानी रखते हुए उन्हें हटाने की कार्रवाई करनी चाहिए। बैंककर्मियों द्वारा फर्जी खाते खोलने में मिलीभगत मिलने पर सख्ती से कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए।
आमजन की सुविधा के लिए चौबीस घंटे नोडल अधिकारी व कॉल सेंटर उपलब्ध रहना चाहिए। किसी भी व्यापारी, दुकानदार और आमजन के बैंक खाते में अचानक ठगी का पैसा जमा हो जाता है तो खाते को सीज करने की बजाय ठगी की रकम को ही फ्रीज करना चाहिए।
ठगी की रकम फ्रीज हो जाती है तो उसे पुन: पीड़ित के खाते में ट्रांसफर करने की सरल व्यवस्था होनी चाहिए। डिजिटल ट्रांजेक्शन में ऑनलाइन पैसे ट्रांसफर की सूचना खाताधारक को एसएमएस के साथ-साथ कॉल के जरिए भी होनी चाहिए।
निगरानी तंत्र नहीं
निचले स्तर तक बैंकों का तंत्र पहुंचने के बावजूद साइबर ठगी पर नजर रखने के लिए बैंकों की ओर से जिला स्तर पर भी निगरानी तंत्र नहीं है। कई बार बैंक कर्मचारियों की लापरवाही या फिर मिलीभगत साइबर अपराध को बढ़ावा देती है। बैंकों में साइबर ठगी के मामलों के लिए निगरानी तंत्र भी नहीं बना है। हर बैंक में नोडल अधिकारी नियुक्त करना था, लेकिन यह नहीं हुआ है। वर्तमान में देश में अरबों रुपए की साइबर ठगी हो रही है। ऐसा कोई राज्य नहीं है, जहां लोगों से ठगी नहीं की गई।