
Patthalgadi In Chhattisgarh
पत्थलगड़ी की आग जशपुर से निकल कर प्रदेश के अन्य जिलों में फैलती जा रही है। छत्तीसगढ़ में चुनाव नजदीक हैं, तो नि:संदेह इस आन्दोलन में राजनीतिक रोटियां भी सेंकी जा रही हैं। कुछ लोग गांवों में स्थापित पत्थलगड़ी को तोड़ रहे हैं, तो कुछ इसके समर्थन में रैलियां निकाल रहे हैं। राज्य में इस आन्दोलन की अगुवाई करने वाले कुछ नेताओं की गिरफ्तारी हुई है, कुछ की तलाश जारी है। इस बीच प्रदर्शनकारियों ने पूरे संभाग में 16 मई को आंदोलन करने की भी चेतावनी दी है। पहली जरूरत आदिवासियों का विश्वास जीतने की है, जिसके लिए बड़ी कोशिशों और ईमानदार इच्छाशक्ति की जरूरत है।
छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले के बछरांव में जब पिछले माह पत्थलगड़ी की जा रही थी, तो गैर आदिवासी समाज से आने वाले लोगों ने अपनी दुकाने बंद कर ली थीं और खुद को घर में कैद कर लिया था। मौके पर उस दिन मौजूद एक युवा बताते हैं कि बछरांव में पत्थलगड़ी के दौरान आन्दोलनकारियों ने पुलिस से निपटने के भी इंतजाम कर रखे थे, उनके झोले में पत्थर और गुलेल साथ में तीर धनुष भी था। अनुसूचित क्षेत्रों की ग्रामसभाओं में सर्वोच्च सत्ता को स्थापित करने के लिए पिछले एक माह से जारी पत्थलगड़ी अभियान जशपुर के बाद अब अन्य जिलों को अपनी चपेट में ले रहा है। अंबिकापुर, रायगढ़, महासमुंद सभी जिलों में इसकी आंच जा पहुंची है। सर्व आदिवासी समाज के नेताओं की गिरफ्तारी के बावजूद माहौल ठंडा नहीं हुआ है। चुनावी वर्ष में पत्थलगड़ी को पक्ष और विपक्षी दल अपने-अपने तरीके से भुनाएंगे, यह तय है।
चुनावी वर्ष में शुरू हुए इस अभियान के उन्मूलन को लेकर छत्तीसगढ़ सरकार ने अभी कोई एक्शन प्लान नहीं बनाया है, अगर बनाया है, तो वो जमीन पर नहीं दिख रहा वहीं राजनीतिक दल अपने फायदे-नुकसान के हिसाब से इस आन्दोलन को लेकर अपनी बयानबाजी कर रहे हैं। इंटेलिजेंस की रिपोर्ट बताती है कि यह आन्दोलन राज्य में कानून व्यवस्था को स्थापित करने ने मुश्किलें पैदा कर सकता है। एक तरफ भाजपा इसे धर्म परिवर्तन की मुहिम और माओवादियों का शगल बता रही है, तो सर्व आदिवासी समाज इसे अपने अस्तित्व की लड़ाई बता रहा है। यह सच्चाई है कि छत्तीसगढ़ प्रदेश में वनाधिकार कानून के तहत दिए गए 50 फीसदी से ज्यादा दावों को खारिज किया जा चुका है।
आदिवासियों में पत्थलगड़ी की परंपरा बेहद प्राचीन है। जशपुर से लगभग 200 किमी दूर झारखंड के रांची टाटा मार्ग पर सोनाहातु में 14 एकड़ की जमीन पर पत्थलगड़ी हुई है। इसमें करीब 8 हजार स्मृति पत्थर हैं। 26 साल पहले जब पेसा कानून लागू हुआ तो हमारे गांव में हमारा राज की घोषणा करते हुए पत्थलगड़ी की गई।
सुप्रीम कोर्ट के जिन निर्णयों का उल्लेख शिलापट्ट पर है, उनकी नितांत गलत और भ्रामक व्याख्या की गई है। पत्थलगड़ी को लेकर सर्वआदिवासी समाज की जो मांगे हैं, उस पर हमने संविधान विशेषज्ञ न्यायमूर्ति हिमांशु पांडे से बातचीत की। हम सर्व आदिवासी समाज की मांगें और उन पर न्यायमूर्ति का जवाब ज्यों का त्यों रख रहे हैं...
जशपुर में इस आन्दोलन की कमान तेल एवं प्राकृतिक गैस कारपोरेशन के पूर्व अधिकारी जोजेफ तिग्गा और पूर्व आइएएस हेमंत किंडो ने ले रखी है। दोनों को ही गिरफ्तार कर लिया गया है। झारखंड में शिपिंग कारपोरेशन ऑफ इण्डिया के कर्मी विजय कुजूर की अगुवाई में यह आन्दोलन शुरू किया गया, हालांकि पिछले महीने विजय कुजूर को नौकरी से हटा दिया गया, लेकिन छत्तीसगढ़ में आन्दोलन को समझने और कारवाई करने में सरकार को देरी हुई ।
रोजगार पर प्रतिबंध है।
[typography_font:14pt]- पांचवीं अनुसूची जिलों या क्षेत्रों में भारत का संविधान अनुच्छेद 244(1) भाग ख, धार 5(1) के तहत सांसद या विधान मंडल का कोई भी कानून लागू नहीं।
[typography_font:14pt;" >- जनजातियों के स्वशासन व नियंत्रण क्षेत्र, अनुसूचित क्षेत्र में गैर लोगों के मौलिक अधिकार लागू नहीं हैं ।
पत्थलगड़ी का मतलब यह है कि अब आम जनता विद्रोह करने पर आमादा है और वह अपने गांव में रमन सरकार के अधिकारियों और उनकी पार्टी के नेताओं को घुसने तक नहीं देना चाहती। पत्थलगड़ी अभियान रमन सिंह के विकास के दावों पर प्रश्न चिन्ह लगा रहा है और रमन सिंह को इसका जवाब देना ही होगा कि क्यों इन गांवों में पत्थलगड़ी की नौबत आई।
- अनु. 141 के तहत सभी अधीनस्थ न्यायालयों पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश बाध्यकारी हैं। विधान मण्डल या व्यवहार न्यायालय नहीं लिखा है।
Published on:
10 May 2018 04:01 pm
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