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जनसुनवाई के बाद अल्ट्राटेक की लाइमस्टोन खदान पर दो गुटों में बटा क्षेत्र

अल्ट्राटेक सीमेंट की लाइमस्टोन खदान पर प्रभावित क्षेत्र दो गुटों में बंटता दिख रहा है। पिछले दिनों हुई जनसुनवाई में यह विभाजन साफ देखने में आया

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Chandu Nirmalkar

Sep 22, 2015

raipur  Ultratech limestone

raipur Ultratech limestone

रायपुर.
अल्ट्राटेक सीमेंट की लाइमस्टोन खदान पर प्रभावित क्षेत्र दो गुटों में बंटता दिख रहा है। पिछले दिनों हुई जनसुनवाई में यह विभाजन साफ देखने में आया। क्षेत्रीय विधायक देवजी पटेल सहित कई राजनीतिक दलों ने जहां परियोजना का विरोध किया है वहीं प्रभावित गांव उसके समर्थन में आ गए हैं। मूंरा, माठ और मोहरेंगा के सरपंचों ने प्रशासन को पत्रक देकर कंपनी से स्पष्टीकरण मांगा है। सरपंचों का कहना है कि कंपनी उनकी शर्तें लिखित तौर पर मान लेती है तो उन्हें परियोजना से कोई आपत्ति नहीं है। मोहरेंगा के सरपंच तोरण गिलहरे कहते हैं, कंपनी के प्रतिनिधियों ने इस संबंध में मौखिक आश्वासन दिया है।


लिखित में चाहिए आश्वासन

मांठ के सरपंच सुरेंद्र कुमार वर्मा कहते हैं कि तीनों प्रभावित गांवों ने लिखित में अपनी शर्तें सौंप दी हैं। कंपनी से उन्हें लिखित में आश्वासन चाहिए, ताकि भविष्य में अगर वे शर्तें तोड़ें तो उनके पास अदालत जाने का विकल्प रहे। पानी, पर्यावरण और जिनकी जमीन बिक गई है उनके परिवार के लिए रोजगार बड़ा मुद्दा है, जिससे समझौता नहीं किया जा सकता।


पानी ही बड़ा मुद्दा

तिल्दा विकासखंड के मूरा, माठ और मोहरंगा गांवों की 689.048 हेक्टेयर भूमि को सरकार ने अल्ट्राटेक सीमेंट को 30 वर्ष के पट्टे पर दिया है। इसके नीचे लाइमस्टोन का भंडार है। कंपनी यहां से खनन शुरू करना चाहती है। इसके लिए वह किसानों से जमीन पहले ही खरीद चुकी है। परियोजना क्षेत्र से कुछ ही दूरी पर पेण्ड्रावन जलाशय है जिससे करीब 17 हजार एकड़ खेतों की सिंचाई होती है।


इसके अलावा यह भूमिगत जल के रिचार्ज का भी बड़ा स्रोत है। धरसींवा विधायक देवजी पटेल ने परियोजना पर आपत्ति जताते हुए इस जलाशय को नुकसान की आशंका जताई है। पूर्व जिला पंचायत सदस्य सौरभ विश्वनाथ मिश्रा का आरोप है कि गांव के बाहर से आए नेता माहौल खराब करने की कोशिश कर रहे हैं। तीनों ग्राम पंचायतें परियोजना के पक्ष में हैं। अगर कंपनी उनकी शर्तें स्वीकार कर लेती है तो परियोजना का समर्थन किया जाएगा।


इन मुद्दों पर शंकित हैं ग्रामीण

खनन से पानी का स्रोत तो समाप्त नहीं होगा।

खनन के लिए विस्फोट से उनके कच्चे-पक्के घरों को तो नुकसान नहीं पहुंचेगा।

स्टोन क्रशर की वजह से वायु प्रदूषण से जूझ रहे गांवों में समस्या बढ़ेगी तो नहीं।

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