छत्तीसगढ़ की पहचान गोड़, बैगा आदिवासी जनजातियों से होती है। क्षेत्रीय सांस्कृतिक मानव जीवन की नैसर्गिक सुखों की यह एक जीती-जागती परम्परा है जो आज भी प्रदेश में बड़े उत्साह एवं श्रध्दा से मनाते आ रहे हैं। जिसकी शुरूआत धनतेरस की रात से धनवंतरी की पूजा कर होती है। इस दिन गोड़ आदिवासी लोग दिनभर खरीदारी के बाद रात में धनतेरस के दिए जलाकर पूरे विधि-विधान से ग्रामीणों के साथ गौरा-गौरा (शिव-पार्वती) जगार करते हैं। इस जगार में महिलाएं एक स्वर में गीत-गाते है, और पुरुष वर्ग ढोलक डमऊ, दफड़ा, गुदूम जैसे वाद्ययंत्रों के साथ नृत्य कर पूरे इलाके में भक्ति का संचार करते हैं। यह छत्तीसगढ़ धरती की पुरानी परम्परा एवं लोक संस्कृति का जीवंत उदाहरण है।