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दो हजार साल पुराना है इस मंदिर का इतिहास, दर्शन मात्र से पूरी होती है मनोकामना

छत्तीसगढ़ राज्य की सबसे ऊंची चोटी पर विराजित डोंगरगढ़ की मां बम्लेश्वरी का इतिहास काफी पुराना है। मां बम्लेश्वरी देवी के मंदिर में हर साल नवरात्रि के मौके पर बड़ा मेला लगता है।

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Ashish Gupta

Oct 13, 2015

dongargarh temple

Bamleshwari Goddess Temple

रायपुर/राजनांदगांव.
जिले के डोगरगढ़ में स्थित है मां बम्लेश्वरी देवी के मंदिर में हर साल नवरात्रि के मौके पर बड़ा मेला लगता है। दूर दूर से लोग मां के दर्शन को आते हैं। मां से मनोकामना मांगते हैं और मां सबकी मनोकामना पूरी भी करती हैं।


छत्तीसगढ़ राज्य की सबसे ऊंची चोटी पर विराजित डोंगरगढ़ की मां बम्लेश्वरी का इतिहास काफी पुराना है। वैसे तो साल भर मां के दरबार में भक्तों का रेला लगा रहता है लेकिन लगभग दो हजार साल पहले माधवानल और कामकंदला की प्रेम कहानी से महकने वाली कामावती नगरी में नवरात्रि के दौरान अलग ही दृश्य होता है।


नीचे बड़ी मां का मंदिर पहाड़ी पर छोटी मां

डोंगरगढ़ में मां बम्लेश्वरी के दो मंदिर हैं। एक मंदिर पहाड़ी के नीचे है और दूसरा पहाड़ी के ऊपर। पहाड़ी के नीचे के मंदिर को बड़ी बमलई का मंदिर और पहाड़ी के नीचे के मंदिर को छोटी बमलई का मंदिर कहा जाता है।


यहां कई किवदंतियां

- वैसे तो मां बम्लेश्वरी के मंदिर की स्थापना को लेकर कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है पर जो तथ्य सामने आए हैं उसके मुताबिक उज्जैन के राजा विक्रमादित्य को मां बगलामुखी ने सपना दिया था और उसके बाद डोंगरगढ़ की पहाड़ी पर कामाख्या नगरी के राजा कामसेन ने मां के मंदिर की स्थापना की थी।


- एक कहानी यह भी है कि राजा कामसेन और विक्रमादित्य के बीच युद्ध में राजा विक्रमादित्य के आव्हान पर उनके कुल देव उज्जैन के महाकाल कामसेन की सेना का विनाश करने लगे और जब कामसेन ने अपनी कुल देवी मां बम्लेश्वरी का आव्हान किया तो वे युद्ध के मैदान में पहुंची।


उन्हें देखकर महाकाल ने अपने वाहन नंदी से उतरकर मां की शक्ति को प्रमाण किया और फिर दोनों देशों के बीच समझौता हुआ। इसके बाद भगवान शिव और मां बम्लेश्वरी अपने-अपने लोक को विदा हुए। इसके बाद ही मां बम्लेश्वरी के पहाड़ी पर विराजित होने की भी कहानी है।


- यह भी कहा जाता है कि कामाख्या नगरी जब प्रकृति के तहत नहस में नष्ट हो गई थी तब डोंगरी में मां की प्रतिमा स्व विराजित प्रकट हो गई थी। सिद्ध महापुरुषों और संतों ने अपने आत्म बल और तत्व ज्ञान से यह जान लिया कि पहाड़ी में मां की प्रतिमा प्रकट हो गई है और इसके मंदिर की स्थापना की गई।


आते हैं लाखों श्रद्धालु

प्राकृतिक रूप से चारों ओर से पहाड़ों में घिरे डोंगरगढ़ की सबसे ऊंची पहाड़ी पर मां का मंदिर स्थापित है। पहले मां के दर्शन के लिए पहाड़ों से ही होकर जाया जाता था लेकिन कालांतर में यहां सीढियां बनाई गईं और मां के मंदिर को भव्य स्वरूप देने का काम लगातार जारी है। पूर्व में खैरागढ़ रियासत के राजाओं द्वारा मंदिर की देखरेख की जाती थी। बाद में राजा वीरेन्द्र बहादुर सिंह ने ट्रस्ट का गठन कर मंदिर के संचालन का काम जनता को सौंप दिया।