
साय अंकल... हमारी भी सुनो! 7 जिलों में 1432 स्कूल जर्जर, 500 करोड़ रुपए का बजट पास, फिर भी काम अधूरा..(photo-patrika)
Sunday Mega Story: छत्तीसगढ़ के रायपुर राज्य निर्माण के 25 साल बाद भी छत्तीसगढ़ के कई जिले में दर्जनों ऐसे सरकारी स्कूल है, जहां बच्चे जान जोखिम में डालकर पढ़ाई करने को मजबूर हो रहे हैं। कारण सरकारी स्कूलों का जर्जर होना है। इन स्कूलों की दुर्दशा ठीक करने के लिए पूर्व सरकार ने 500 करोड़ रुपए का बजट रखा था।
इसमें काम भी शुरू हुए, लेकिन कई क्षेत्रों से भ्रष्टाचार की शिकायतें आईं, तो वर्तमान सरकार ने काम रोक दिया है। अब मामले की जांच हो रही है। स्कूलों के जर्जर हालत से बच्चे भी परेशान हैं और सरकार से उम्मीद लगाए हैं। पत्रिका की टीम ने कई जिलों के स्कूलों को खंगाला तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। कुछ सरकारी स्कूल तो ऐसे हैं, जहां बड़ी अनहोनी हो सकती है। ऐसे में नया शिक्षा सत्र शुरू होने के बाद विभाग की तैयारियों पर सवाल खड़े होने लगे हैं।
जगदलपुर/ बस्तर संभाग के सात जिलों में 1542 स्कूल जर्जर स्थिति में हैं। सालों से इन स्कूलों की मरम्मत और नए निर्माण की मांग की जा रही है लेकिन मांग अधूरी है। स्कूल शिक्षा विभाग ने जर्जर भवनों के सुधार की पहल नहीं की है। बच्चे पानी टपकते भवनों में पढ़ाई करने मजबूर होंगे। बस्तर जिले में तो कई बार हादसे भी हो चुके हैं। जर्जर भवन की छत का जर्जर हिस्सा कक्षा में गिर चुका है। स्कूल भवन जर्जर होने की पुष्टि लोक शिक्षण विभाग बस्तर ने की है। विभाग के मुताबिक बस्तर जिले में सर्वाधिक 546 स्कूल भवन जर्जर स्थिति में है।
इनमें सबसे ज्यादा प्राथमिक शाला 394, माध्यमिक शाला 141, हाई स्कूल 5 और हायर सेकंडरी 6 भवन शामिल हैं। बीजापुर में 97 प्राथमिक शाला, 20 माध्यमिक शाला जर्जर है। दंतेवाड़ा में 45 प्राथमिक शाला, 6 माध्यमिक शाला। कांकेर में 281 प्राथमिक शाला, 94 माध्यमिक, 2 हाई स्कूल और 1 हायर सेकंडरी स्कूल भवन जर्जर है। कोंडागांव में 198 प्राथमिक विद्यालय, 103 माध्यमिक शाला 2 हाई स्कूल कुल 303 जर्जर हो चुके हैं। नारायनपुर में 12 प्राथमिक शाला, 8 माध्यमिक शाला, 1 हाई और 1 हायर सेकंडरी स्कूल और सुकमा जिले के 90 प्राथमिक शाला, 30 माध्यमिक शाला, 3 हाई स्कूल व 1 हायर सेकंडरी जर्जर हैं।
बिलासपुर संभाग में 2,200 से ज्यादा स्कूल भवन जर्जर है। इनमें कोरबा और रायगढ़ में सबसे ज्यादा स्कूल भवनों की हालत खराब है, जहां जान जोखिम में डालकर बच्चे भविष्य गढ़ रहे हैं। नया सत्र भी स्कूल भवनों की बिना मरम्मत के शुरू हो गया है। कई स्कूलों की छतें टपक रहीं है। प्लास्टर गिर रहा है। फर्श पर पानी भरने से बच्चों की छुट्टी कर दी जाती है।
बिलासपुर जिले में 593 स्कूल जर्जर, 242 अति जर्जर और 22 भवनविहीन, कोरबा में 645 जर्जर, 225 अति जर्जर, 8 स्कूल बिना भवन के, रायगढ़ में 424 जर्जर, 130 अति जर्जर और 23 भवनविहीन और मुंगेली और जांजगीर में 80 से ज्यादा स्कूलों में भवन ही नहीं हैं। जीपीएम में 135 स्कूल जर्जर, 70 अति जर्जर, 5 बिना भवन के हैं। सक्ती जिले में 117 जर्जर स्कूल हैं।
नए शिक्षा सत्र की शुरुआत हो गई है, लेकिन समय रहते जिले के जर्जर स्कूलों की मरम्मत नहीं होने के कारण पढ़ाई पंचायत, सामाजिक या फिर अन्य किसी भवन में कराई जा रही है। राजनांदगांव जिले में 531 स्कूल जर्जर स्थिति में है। इनमें से 70-80 स्कूलों को तत्काल मरम्मत की आवश्यकता है, लेकिन शासन की ओर से राशि स्वीकृत नहीं किए जाने के कारण स्कूल अब भी जर्जर स्थिति में है।
वहीं बालोद में जिला मुख्यालय के दो पुराने स्कूल के क्षति ग्रस्त होने के 13 महीने बाद भी अभी तक संधारण व नए स्कूल भवन के लिए डीपीआई से राशि जारी नहीं की गई है। बेमेतरा डीईओ के अनुसार बीते 5 जून 2024 को आंधी तूफान के दौरान जिला मुख्यालय के दो स्कूल क्षतिग्रस्त हुए थे जिसमें एक आत्मानंद हिंदी मीडियम व पुराना बेसिक स्कूल क्षतिग्रस्त भवन के लिए 1.70 करोड़ की डिमांड तीन बार की गई है।
राशि के अभाव में स्कूल 13 महीने से पूर्व की स्थिति में आज भी जर्जर हालत में हैं। कवर्धा में भी शिक्षा व्यवस्था को लेकर कितने भी दावे कर लें, लेकिन दावे व जमीनी हकीकत कुछ अलग ही है। मैदानी क्षेत्र में जैसे-तैसे संचालन हो रहा है। पर बैगा आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में तो शिक्षा व्यवस्था भगवान भरोसे ही चल रहा है।
Published on:
06 Jul 2025 10:45 am
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