
Snake Bite: बारिश का मौसम शुरू होते ही न केवल राजधानी, बल्कि प्रदेश के कई इलाकों में सर्पदंश के केस आने लगे हैं। डॉक्टरों के अनुसार, सांप डंसने के बाद बैगा-गुनिया के पास जाने के बजाय सीधे अस्पताल जाएं। दो घंटे के भीतर जो अस्पताल पहुंच जाते हैं और इलाज शुरू हो जाता है, उनकी जान बच जाती है।
आंबेडकर अस्पताल में ऐसे केस में 90 फीसदी मरीजों की जान बचाई गई है। आंबेडकर अस्पताल में अब तक 10 मरीजों का इलाज किया जा चुका है। इसमें इलाज के बाद सभी की जान बची है।
Snake Bite: प्री मानसून बारिश के बाद से ही बिल में रहने वाले सांप बाहर आ जाते हैं। खासकर जुलाई व अगस्त में ऐसे केस बहुतायत में आते हैं। पिछले सीजन में आंबेडकर अस्पताल में रोजाना औसतन दो केस आए। पत्रिका ने विशेषज्ञों से बातचीत कर जाना कि सांप डंसने के बाद सबसे अच्छा इलाज विशेषज्ञ डॉक्टर ही कर सकते हैं।
कुछ जरूरी सावधानी अपनाकर भी सर्पदंश से बचा जा सकता है। बैगा-गुनिया के चक्कर में फंसने के बजाय सीधे अस्पताल जाएं। इससे एंटी वैनम का डोज लगने के बाद मरीज के स्वास्थ्य में लगातार सुधार होता है। लक्षण के अनुसार डॉक्टर अंदाजा लगा लेते हैं कि किस सांप ने डंसा होगा। विशेषज्ञों के अनुसार सभी सांप जहरीले नहीं होते। कई केस में मरीजों की घबराहट में जान चली जाती है।
कोबरा व करैत काफी जहरीले सांप है। इसने जिन्हें भी डंसा, उन्हें अक्सर वेंटीलेटर की जरूरत पड़ती है। दोनों सांपों के डंसने से फेफड़े फेल होने लगते हैं। इससे हाथ-पैर भी काम करना बंद कर देता है। आंखें बंद होने लगती है। सीनियर फेफड़ा सर्जन डॉ. कृष्णकांत साहू के अनुसार खून में ऑक्सीजन सेचुरेशन भी 65 से नीचे पहुंच जाता है। ऐसे केस में मरीज को वेंटीलेटर पर रखना बहुत जरूरी है। मरीज समय पर पहुंच जाए तो उन्हें स्वस्थ कर अस्पताल से डिस्चार्ज किया जाता है।
प्रदेश के जशपुर को नागलोक कहा जाता है। वहां सबसे ज्यादा केस फरसाबहार में आता है। पिछले साल फरसाबहार में 75, पत्थलगावं में 66, बगीचा में 41, कांसाबेल में 34, जशपुर में 29, मनोरा में 13, दुलदुला में 5 व होलीक्रॉस अस्पताल में 13 केस सर्पदंश के थे। इनमें ज्यादातर लोगों की जान बचाई गई। ग्रामीण इलाकों में कई लोग झाड़-फूंक कराते हैं, जिससे वे ठीक नहीं होते। देर से अस्पताल पहुंचने के कारण कुछ मरीजों की मौत भी हो जाती है।
जहरीले सांप के डंसने के बाद बैगा-गुनिया के पास जाने के बजाय दो घंटे के भीतर अस्पताल पहुंच जाएं। एंटी वेनम का डोज लगने के बाद पीड़ित के स्वास्थ्य में सुधार होता है। झाड़-फूंक कराने के चक्कर में अस्पताल पहुंचने में देरी होती है। इससे पीड़ित गंभीर हो जाता है और जान बचाने में दिक्कत हो सकती है। पिछले साल 90 फीसदी से ज्यादा मरीजों की जान बचाई गई।
नोवा नेचर सोसाइटी मोएज अहमद: 9303345640
चेतन सिंह: 9770868835
टेकेश्वर सागरवंशी: 8305928980
बबलू राव: 6268582212
स्नेक हेल्पलाइन एंड कंसर्वटिटियों सोसायटी
साजिद खान : 9425214671
Published on:
23 Jun 2024 09:15 am
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