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कोई दोस्तों के लिए बना मसीहा तो किसी ने दोस्त के लिए दी कुर्बानी, दोस्ती की कहानी इन्ही की जुबानी

दोस्ती उसी से होती है जो आपको समझता है, आपकी केयर करता है और बिन कहे अच्छे या बुरे हालातों में साथ नहीं छोड़ता

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कोई दोस्तों के लिए बना मसीहा तो किसी ने दोस्त के लिए दी कुर्बानी, दोस्ती की कहानी इन्ही की जुबानी

रायपुर. रिश्ते दुनियां का एक एेसा बंधन है जो इंसान को उसके होने का अहसास कराता है। रिश्तों का बिना जिंदगी होती ही नहीं है। जन्म लेने के साथ रिश्तों में बंध जाता है। कहते हैं कि दुनियां का जो सबसे खास रिश्ता होता है वह है दोस्ती। दोस्ती को भगवान नहीं, बल्कि इंसान का दिल चुनता है। कई दोस्त एेसे होते हैं जो इंसान के खून के रिश्तों से भी ज्यादा होते हैं। हो भी क्यों न क्योंकि दोस्ती उसी से होती है जो आपको समझता है, आपकी केयर करता है और बिन कहे अच्छे या बुरे हालातों में साथ नहीं छोड़ता। जब कभी कोई स्पेशल बात होती है तो हमेशा फ्रेंड ही होता है जो आपके साथ खुशियां शेयर करता है। अगस्त माह का पहला संडे फ्रेंडशिप डे के रूप में सेलिब्रेट किया जाता है। इस पर आज हम आपको शहर के एेसे दोस्तों से रूबरू करा रहे हैं जो दोस्ती मिसाल बनकर सुख-दुख में एक दूसरे का सहारा बने हैं।

यह जरूरी नहीं की जिंदगी में एक दोस्त ही मसीहा बनता है। अगर आपसी प्यार और भरोसा हो तो पूरी जिंदगी साथ निकाली जा सकती है। इस बात को साबित करते हुए सात दोस्तों का ग्रुप पिछले तीस सालों से एक-दूसरे का सहारा बने हुए है। राजधानी के गोपाल रंजन बताते हैं कि वे पेंड्रा के रहने वाले हैं और १९८० में उनके पिता रायपुर आ गए। पहली क्लास में उनकी दोस्ती अजय, राघव, विजय, निरंजन, असलम और जयेश से हुई। समय के साथ हम लोग बढ़े हुए और कॉलेज भी साथ में गए। आज हम लोगों की दोस्ती को करीब तीस साल हो गए है। कभी भी हम लोगों का झगड़ा नहीं हुआ। हम लोग एक-दूसरे की खुशी और गम में साथ खड़े रहते हैं।

राजधानी निवासी कैलाश खेमानी और अमर झंबिया की दोस्ती ३० सालों से है। दोस्ती पर इन्होंने एक ही मैसेज दिया है कि दोस्ती का दूसरा नाम विश्वास है। कैलाश खेमानी एक ऑटोमोबाइल कारोबारी है, जबकि अमर कपड़े का कारोबार करते हैं। एक दौर ऐसा आया जब बचपन के इन दोस्तों को कॅरियर के चलते एक-दूसरे से अलग होने की नौबत आई। इस हालात में कैलाश ने सबकुछ छोडक़र दोस्त का साथ दिया। अमर को ६ महीने तक अपने घर में रखा और वह सब कोशिशें कि जो एक दोस्त को करनी चाहिए। अमर आज भी वह दिन याद करके कहते हैं कि बिजनेस में जब लोग एक-दूसरे को पीछे छोडऩे में लगे रहते हैं ऐसे समय में दोस्त ने अपना सब कुछ छोडक़र काबिल बनाया।

अवंति विहार के सहने वाले श्यामेंद्र जयपुर की एक कंपनी में काम करते हैं। वे बाते हैं कि बात 2001 की है जब वे अपने दोस्त रंजीत शर्मा के साथ बिलासपुर से एमकॉम कर रहे थे। कॉलेज टाइम में उन्हें शराब पीने की लत लग गई थी। साल २००५ में वे शराब के आदी हो गए। श्यामेंद्र बताते हैं कि उनकी इस आदत से घरवालों ने बोला बंद कर दिया था और बचपन का दोस्त रंजीत भी कम बात करने लगा। इसी बीच उनका एक्सीडेंट हुआ और करीब तीन घंटे तक वे कोरबा के पास बेहोशी की हालत में पड़े रहे। उस समय मोबाइल सुविधा कम थी। एक्सीडेंट की खबर जैसे ही रंजीत को पता चली तो सबसे पहले वह अस्पताल आया। मेरा ओ पॉजीटिव ब्लड है जिसकी मुझे इमरजेंसी में जरूरत थी तब रंजीत ने मुझे ब्लड दिया और जान बचाई जबकि उस समय वो मुझसे बात नहीं करता था। उसके बाद मैने पीना छोड़ दिया और आज हम दोनों के परिवार भी फैमिली की तरह है।