
छत्तीसगढ़ बोर्ड के नतीजे: 12वीं में 2013 का टॉपर रहा जिला पांच साल में 9 पायदान नीचे गिरा, सुकमा में आया सुधार
रायपुर/बालोद/सुकमा. गठन के बाद आर्थिक रूप से मजबूत हुए छत्तीसगढ़ में तेजी से स्कूल खुले, लेकिन शिक्षकों की कमी हमेशा से बनी रही। राज्य निर्माण के 18 साल बाद भी प्रदेश में 26 हजार 439 शिक्षकों के पद खाली हैं।शिक्षकों की कमी का सीधा असर बोर्ड परीक्षाओं के नतीजों में सामने आया है।
2013 में 10वीं-12वीं में वर्चस्व जमाने वाला बालोद जिला टॉप-5 जिलों की सूची से ही बाहर हो गया है। 2018 में 10वीं के नतीजों में 9 और 12वीं के नतीजों में 7 पायदान नीचे गिर गया। 2013 में 10वीं-12वीं के नतीजों में फिसड्डी रहने वाले माआवोद प्रभावित क्षेत्र सुकमा जिले ने अपनी रैकिंग में सुधार कर सबको चौंकाने का काम किया। यह जिला हर मामलों में पिछड़ा हुआ माना जाता है। सुकमा ने 10वीं में 12 और 12वीं में छह जिलों को पछाड़ा है।
पांच साल के नतीजों पर गौर करें, तो शहरी क्षेत्र के स्कूल पिछड़ रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरी क्षेत्र के विद्यार्थियों को सुविधाएं अधिक मिलती है। सुकमा जिले ने दुर्ग, रायपुर व बिलासपुर जैसे विकसित जिलों को भी पीछे छोड़ दिया है।
गई है।
स्कूल शिक्षा विभाग के मंत्री केदार कश्यप प्रदेश में दूरस्थ ग्रामीण अंचल और माओवाद प्रभावित क्षेत्र से प्रतिभाएं निकलकर सामने आ रही हैं। विषयवार शिक्षकों की भर्ती और उनकी ट्रेनिंग पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। सरकारी योजनाओं की वजह से आज शासकीय स्कूलों में प्रवेश लेने वाले विद्यार्थियों की संख्या में भी बढ़ोतरी हुई है।
राज्य निर्माण के 18 साल बाद भी प्रदेश के 10 हजार 2 स्कूल ऐसे हैं, जहां अब तक बिजली नहीं पहुंच सकी है। सबसे खराब स्थिति प्राथमिक स्कूलों की है। 7 हजार 445 स्कूलों में बिजली की सुविधा मौजूद नहीं है। 986 स्कूलों के बाद अब तक खुद का भवन नहीं है।
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सरकार का दावा है कि प्रदेश के सभी स्कूलों में शौचालय और पेयजल की व्यवस्था कर दी है। यह बात अलग है कि स्कूलों में साफ-सफाई के अभाव में इन शौचालय का उपयोग करना मुश्किल होता है।
दूरस्थ ग्रामीण अंचालों में स्कूल के हालात ठीक नहीं है। बालोद जिले में 202 भवन जर्जर हो गए हैं। दुुर्घटना की आशंका बनी रहती है। सुकमा जैसे जिलों में माओवादी स्कूल को निशाना बना देते हैं। पढ़ाई के लिए पोटा कैबिन की व्यवस्था की गई है।
पांच साल में शिक्षा की गुणवत्ता के लिए जो सरकारी अभियान चले, उसमें जमीनी काम कम और प्रचार ज्यादा हुआ। स्कूल की पढ़ाई की जगह फोटो खिंचवाने की तरफ ज्यादा ध्यान दिया गया है। गुणवत्ता के लिए शिक्षा, विद्यार्थी, पालक और समाज चारों को मिलकर काम करना होगा। अभी पालक और समाज की सहभागिता बहुत कम है। स्कूलों में शिक्षण व्यवस्था में सुधार के लिए सतत निरीक्षण और समीक्षा होनी चाहिए। इसके बिना गुणवत्ता की बात करना बेमानी होगा।
पहले जिला प्रशासन स्कूलों की ओर लगातार ध्यान देता था। स्वयं कलक्टर के साथ उनके अधीनस्थ अधिकारी भी शिक्षा विभाग की गतिविधियों पर नजर रखे हुए थे। औचक निरीक्षण होते। वहीं बच्चों से अधिकारी सीधे रूबरू होकर संवाद करते। बाद के कलक्टर व अन्य प्रशासनिक अफसरों ने ध्यान देना कम कर दिया। शिक्षाकर्मियों के लगातार हड़ताल पर रहने जैसी स्थितियों से भी शिक्षा का स्तर कमजोर साबित हुआ।
माओवाद प्रभावित सुकमा जिले में प्रशासन ने शिक्षण व प्रशिक्षण बेहतर करने के लिए आरोहण संस्था शुरू की। इसमें आदिवासी बच्चों को विज्ञान व गणित ऑडियो-वीडियो जैसे नये साधनों से पढ़ाया जा रहा है। इससे इन संकायों में विद्यार्थियों की संख्या बढ़ी है। इसमें पीइटी, पीएमटी व अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी भी कराई जा रही है। इसके चलते इन प्रतियोगी परीक्षाओं में भी कुछ आदिवासी विद्यार्थियों का दाखिला संभव हुआ।
बिजली नहीं
हायर सेकंडरी 235
26439 शिक्षकों के पद खाली
प्राथमिक शाला 287
हायर सेकंडरी 313
स्कूल में शिक्षकों की कमी
हायर सेकंडरी स्कूल 3994 54616
Published on:
03 Aug 2018 12:36 pm
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