
Sunday Guest Editor: सरिता दुबे. छत्तीसगढ़ के रायपुर में धमतरी के सरईभदर गांव की रहने वाली 24 साल की पोखन आदिवासी समुदाय से आती हैं। उसके समुदाय में लड़कियां शिक्षा तो ग्रहण करती हैं, लेकिन 10वीं या 12वीं तक पढ़ने के बाद खेती किसानी के काम से लग जाती हैं। लेकिन पोखन ने खेती किसानी को न चुन कर लड़कियों और महिलाओं के अधिकारों के लिए काम करना उचित समझा और महिलाओं को घरेलू हिंसा से न्याय दिलाने के साथ ही उन्हें उनके अधिकारों के लिए जागरूक किया।
8 से अधिक गांव की महिलाओं को उनके अधिकारों के बारे में बताया। ग्रामसभाओं में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाई। गांव की महिलाओं को नए तरीके से खेती करना सिखाया। इनमें से कुछ महिलाओं को कोदो की खेती के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल चुका है। आज इन गांवों में महिलाएं मोटे अनाज की खेती कर रही हैं। इसके साथ ही कई लड़कियों ने दोबारा पढ़ाई शुरू कर दी है।
पोखन बताती हैं कि बचपन से देखती थी कि महिलाओं को परिवार के मुद्दों पर ज्यादा बोलने और निर्णय लेने की आजादी नहीं थी। महिलाओं के साथ इस तरह का व्यवहार देखती थी तो बहुत दुख होता था और उसी समय ठाना कि महिलाओं और बच्चों के लिए काम करना है। जब 18 साल हुई तो धमतरी में ही लोक आस्था सेवा संस्थान से जुड़ी और संस्थान की लता नेताम ने मुझे महिलाओं के लिए काम करने के लिए तैयार किया। संस्थान ने ही मुझे स्नातक तक की पढ़ाई कराई।
सोच यह: लगन के साथ शुरू किए काम कुछ समय बाद सफल होते हैं।
पोखन ने शुरू में एक गांव में काम किया और उसके बाद वह धीरे-धीरे 8 गांवों तक पहुंची। इन गांवों की 80 महिलाओं को एक और जहां उनके अधिकरों के लिए जागरूक किया वहीं दूसरी ओर लुप्त हो चुकी कोदो (चावल) की खेती कराकर महिलाओं को रोजगार से भी जोड़ा।
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Published on:
20 Apr 2025 01:50 pm
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