
पढ़ाई से आगे बढ़कर शिक्षकों ने दी जिंदगी जीने की सीख, सिर्फ पढ़ाया नहीं(photo-patrika)
Teachers Day 2025: ताबीर हुसैन. छत्तीसगढ़ के रायपुर में शिक्षक सिर्फ किताबों के पाठ नहीं पढ़ाते, वे जीवन का दर्शन भी सिखाते हैं। टीचर्स डे के मौके पर जब हमने कुछ कवियों, फिल्म मेकर और सूफी गायक से उनके पसंदीदा शिक्षकों की यादें ताजा करने को कहा, तो उनकी आंखों में चमक और आवाज में कृतज्ञता झलक उठी। किसी को संस्कृत की कक्षा में मिला थप्पड़ जीवन का सबक दे गया, तो किसी को शिक्षक का सत लेकिन ईमानदार अंदाज याद रह गया।
फिल्म मेकर सतीश जैन बताते हैं गणित मेरा कमजोर विषय था। तब मेरे पिता ने मुझे झा सर के पास पढ़ने भेजा। वे बेहद सत थे लेकिन उतने ही ईमानदार। जब महीना पूरा हुआ तो पिताजी ने मुझसे कहा कि फीस पूछ लेना। मैं पूछने गया तो वे भड़क उठे और बोले मैं अपनी विद्या बेचता नहीं, मुझे तनवाह सरकार देती है। जैन कहते हैं कि झा सर का यह स्वाभिमान और शिक्षण के प्रति समर्पण आज भी प्रेरणा देता है। शिक्षक कठोर हों, लेकिन ईमानदारी से पढ़ाएं, तो वह सीख जिंदगीभर रहती है।
सवाल ने बदली सोच
पद्मश्री अनुज शर्मा कहते हैं मेरे जीवन पर मेरे सभी शिक्षकों का गहरा असर रहा है। स्कूल के दिनों में बी.एस. भारती सर की साहित्यिक रचनाएं और उनका भाषा बोलने का अंदाज मुझ पर आज भी प्रभाव डालता है। उनसे मैंने सीखा कि हिंदी को किस तरह प्रयोग और उच्चारण के साथ खूबसूरती से बोला जा सकता है।
अभिनय और गायन में भी उनकी शिक्षा मेरे लिए आधार बनी। आरपी पटेल सर, एनडीपी पांडे सर और बीबी गुप्ता सर का मार्गदर्शन भी जीवन में हमेशा यादगार रहा। लेकिन जीवन की सबसे बड़ी सीख उन्हें टीआर डडसेना सर से मिली। उन्होंने हमेशा कहा बेटा, इंसान के चेहरे की मासूमियत सबसे कीमती होती है और एक बार यह मासूमियत खो गई, तो कभी वापस नहीं आती। यह बात मेरे लिए लाइफ-चेंजिंग साबित हुई और आज भी मेरे जीवन का सबसे अहम सबक है।
सूफी गायक पद्मश्री भारती बंधु कहते हैं, हमारी जिंदगी में जितना भी सीखने और समझने का अवसर मिला, वह गुरुजनों की कृपा से ही संभव हुआ। प्राइमरी से लेकर कॉलेज तक हर शिक्षक का योगदान है। वे खास तौर पर अपने मिडिल स्कूल के नटवरलाल व्यास को याद करते हैं। वे विद्यार्थियों को परिवार की तरह मानते थे। जिन बच्चों के पास फीस भरने के पैसे नहीं होते थे, वे अपनी जेब से उनकी फीस अदा कर देते। वहीं गैंद सिंह फरिकार गुरुजी जरूरतमंद बच्चों को घर बुलाकर फ्री में गणित और विज्ञान की क्लास लेते थे।
प्रिया जैन बताती हैं, मेरा सपना था नेशनल कॉलेज से लॉ पढ़ने का, लेकिन एडमिशन प्राइवेट कॉलेज में मिला। हम सब निराश थे। तभी आईं प्रोफेसर वसंधरा कामत। उन्होंने हमसे पूछा तुहारा सपना अच्छा लॉयर बनना है या सिर्फ नेशनल कॉलेज से लॉयर बनना? इस सवाल ने हमारी सोच बदल दी। प्रिया कहती हैं वसंधरा मैम ने हमें सिखाया कि किस्मत खुद बनानी पड़ती है। उन्होंने मेरी राह तय की और मुझे आज भी रास्ता दिखाती हैं।
कवि रामेश्वर वैष्णव ने बताया, शिक्षक फकीरचंद शाह फिजिक्स और गणित पढ़ाने में माहिर थे। एक दिन सहपाठी ने उनसे मजाक किया कि आप हमें गणित को गणित की भाषा में क्यों नहीं पढ़ाते। इस पर उन्होंने मुस्कराते हुए जवाब दिया अरे ज्यादा से ज्यादा 3-5 करोगे तो 5-6 लगाऊंगा, यहां तो 9 दो 11 हो जाएगा। पूरी क्लास ठहाकों से गूंज उठी।
कवि मीर अली मीर कहते हैं हमारे संस्कृत शिक्षक शिव कुमार उपाध्याय ने मुझसे सवाल पूछा और मैं जवाब न दे सका। गुस्से में उन्होंने थप्पड़ जड़ दिया और बोले इतना सब याद है लेकिन इसका जवाब नहीं?’ उस एक थप्पड़ ने मुझे इतना प्रेरित किया कि मैंने संस्कृत में डिस्टिंक्शन हासिल किया।
Updated on:
05 Sept 2025 02:10 pm
Published on:
05 Sept 2025 02:08 pm
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