28 दिसंबर 2025,

रविवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

कर्पूरचंद्र कुलिश स्मृति व्याख्यान में पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी ने की व्याख्यान माला की शुरुआत

संप्रेषण हो या अभिव्यक्ति, दोनों के मूल में शब्द हैं। शब्द शास्त्र भी हैं। शब्द शस्त्र भी हैं। शब्द ब्रह्म भी हैं। मायने रखता है कि आप बुद्धि से बोलते हैं या मन से।

3 min read
Google source verification
कर्पूरचंद्र कुलिश स्मृति व्याख्यान में पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी ने की व्याख्यान माला की शुरुआत

शब्द शास्त्र हैं और शस्त्र भी, मायने रखता है कि आप मन से बात करते हैं या बुद्धि से कर्पूरचंद्र कुलिश स्मृति व्याख्यान में पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी ने कहा रायपुर@पत्रिका. संप्रेषण हो या अभिव्यक्ति, दोनों के मूल में शब्द हैं। शब्द शास्त्र भी हैं। शब्द शस्त्र भी हैं। शब्द ब्रह्म भी हैं। मायने रखता है कि आप बुद्धि से बोलते हैं या मन से। ये बातें पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी ने शुक्रवार को रायपुर में कही। वे छत्तीसगढ़ के पहले विधानसभा अध्यक्ष पं. राजेंद्र प्रसाद शुक्ल की जयंती पर समता कॉलोनी स्थित महाराजा अग्रसेन इंटरनेशनल कॉलेज में आयोजित पत्रकारिता के पुरोधा कर्पूर चंद्र कुलिश व्याख्यान में बतौर मुख्य वक्ता शामिल हुए। कोठारी ने कहा, संप्रेषण के लिए दो बातों को समझना जरूरी है। एक व्यक्ति का स्वरूप यानी उसका शरीर और दूसरी आत्मा। आत्मा मरती नहीं तो माता-पिता उसे पैदा भी नहीं कर सकते। जिसे पैदा किया जाता है, वह संप्रेषण करना नहीं जानता। शरीर संप्रेषण का उपकरण है। यह शब्दों के बाहर निकलने के लिए माध्यम का काम करता है। संप्रेषण तभी सफल है, जब हमारी बात दूसरों को समझ आए। अगर हमारी बात दूसरे न समझ पाएं तो संप्रेषण का भी कोई अर्थ नहीं है। संप्रेषण के चार आयाम शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा हैं। जिसे हम पत्रकारिता कहते हैं, उसमें केवल नॉलेज है। पत्रकारिता त्वरित उपयोग की वस्तु है। पांच साल पहले किसने क्या खबर लिखी थी, याद नहीं रहता। साहित्य के साथ ऐसा नहीं है। अगर साहित्य में प्रज्ञा है तो उसकी आयु भी लंबी होगी। इस देश का साहित्य केवल 4 किताबों पर टिका था। आज भी उन्हीं पर टिका है। उन 4 किताबों का एक अक्षर नहीं बदला। समस्या ये है कि समय और संस्कृति के साथ उसकी व्याख्याएं नहीं बदलीं। दरअसल, साहित्य की आत्मा संस्कृति है और सभ्यता पत्रकारिता की। सभ्यताएं बदलती रहेंगी और पत्रकारिता भी। पत्रकारिता का उपकरण बुद्धि है। साहित्य का उपकरण मन है। बुद्धि सूर्य से मिलती है। उसमें उष्मता है। वह तोड़ने का काम करती है। दूसरों को परिमार्जित करने का प्रयास करती है। मन चंद्रमा से आ रहा है। वह शीतल है। बांधने का काम करता है। उसमें ममता है। करूणा है। आधुनिकता के दौर में साहित्य भी पत्रकारिता समान हो गया है। पहले साहित्य अर्पित होता था। अब यह अर्पित नहीं होता। साहित्य लिखने वालों को समझना होगा कि शरीर की तपन श्रम कहलाती है। प्राणों की तपन तपस्या है। अगर आप प्राणों की तपन के लिए तैयार हैं तो आपको पढ़ने-सुनने वाले के शरीर व बुद्धि को पता भी नहीं चलेगा और आपकी बात उनके मन के भीतर तक पहुंच जाएगी। बता दें कि यह आयोजन छत्तीसगढ़ साहित्य एवं संस्कृति संस्थान ने किया था।

कर्पूरचंद्र कुलिश स्मृति व्याख्यान में पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी ने की व्याख्यान माला की शुरुआत

शब्द शास्त्र हैं और शस्त्र भी, मायने रखता है कि आप मन से बात करते हैं या बुद्धि से कर्पूरचंद्र कुलिश स्मृति व्याख्यान में पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी ने कहा रायपुर@पत्रिका. संप्रेषण हो या अभिव्यक्ति, दोनों के मूल में शब्द हैं। शब्द शास्त्र भी हैं। शब्द शस्त्र भी हैं। शब्द ब्रह्म भी हैं। मायने रखता है कि आप बुद्धि से बोलते हैं या मन से। ये बातें पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी ने शुक्रवार को रायपुर में कही। वे छत्तीसगढ़ के पहले विधानसभा अध्यक्ष पं. राजेंद्र प्रसाद शुक्ल की जयंती पर समता कॉलोनी स्थित महाराजा अग्रसेन इंटरनेशनल कॉलेज में आयोजित पत्रकारिता के पुरोधा कर्पूर चंद्र कुलिश व्याख्यान में बतौर मुख्य वक्ता शामिल हुए। कोठारी ने कहा, संप्रेषण के लिए दो बातों को समझना जरूरी है। एक व्यक्ति का स्वरूप यानी उसका शरीर और दूसरी आत्मा। आत्मा मरती नहीं तो माता-पिता उसे पैदा भी नहीं कर सकते। जिसे पैदा किया जाता है, वह संप्रेषण करना नहीं जानता। शरीर संप्रेषण का उपकरण है। यह शब्दों के बाहर निकलने के लिए माध्यम का काम करता है। संप्रेषण तभी सफल है, जब हमारी बात दूसरों को समझ आए। अगर हमारी बात दूसरे न समझ पाएं तो संप्रेषण का भी कोई अर्थ नहीं है। संप्रेषण के चार आयाम शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा हैं। जिसे हम पत्रकारिता कहते हैं, उसमें केवल नॉलेज है। पत्रकारिता त्वरित उपयोग की वस्तु है। पांच साल पहले किसने क्या खबर लिखी थी, याद नहीं रहता। साहित्य के साथ ऐसा नहीं है। अगर साहित्य में प्रज्ञा है तो उसकी आयु भी लंबी होगी। इस देश का साहित्य केवल 4 किताबों पर टिका था। आज भी उन्हीं पर टिका है। उन 4 किताबों का एक अक्षर नहीं बदला। समस्या ये है कि समय और संस्कृति के साथ उसकी व्याख्याएं नहीं बदलीं। दरअसल, साहित्य की आत्मा संस्कृति है और सभ्यता पत्रकारिता की। सभ्यताएं बदलती रहेंगी और पत्रकारिता भी। पत्रकारिता का उपकरण बुद्धि है। साहित्य का उपकरण मन है। बुद्धि सूर्य से मिलती है। उसमें उष्मता है। वह तोड़ने का काम करती है। दूसरों को परिमार्जित करने का प्रयास करती है। मन चंद्रमा से आ रहा है। वह शीतल है। बांधने का काम करता है। उसमें ममता है। करूणा है। आधुनिकता के दौर में साहित्य भी पत्रकारिता समान हो गया है। पहले साहित्य अर्पित होता था। अब यह अर्पित नहीं होता। साहित्य लिखने वालों को समझना होगा कि शरीर की तपन श्रम कहलाती है। प्राणों की तपन तपस्या है। अगर आप प्राणों की तपन के लिए तैयार हैं तो आपको पढ़ने-सुनने वाले के शरीर व बुद्धि को पता भी नहीं चलेगा और आपकी बात उनके मन के भीतर तक पहुंच जाएगी। बता दें कि यह आयोजन छत्तीसगढ़ साहित्य एवं संस्कृति संस्थान ने किया था।

कर्पूरचंद्र कुलिश स्मृति व्याख्यान में पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी ने की व्याख्यान माला की शुरुआत

कर्पूरचंद्र कुलिश स्मृति व्याख्यान में पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी ने की व्याख्यान माला की शुरुआत

कर्पूरचंद्र कुलिश स्मृति व्याख्यान में पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी ने की व्याख्यान माला की शुरुआत

कर्पूरचंद्र कुलिश स्मृति व्याख्यान में पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी ने की व्याख्यान माला की शुरुआत

कर्पूरचंद्र कुलिश स्मृति व्याख्यान में पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी ने की व्याख्यान माला की शुरुआत

कर्पूरचंद्र कुलिश स्मृति व्याख्यान में पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी ने की व्याख्यान माला की शुरुआत