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जानिए क्यों दूसरों की लिखी कहानी पर फिल्म नहीं बनाते सतीश जैन

5 मई को ले सुरु होगे मया के कहानी के जरिए यूट्यूबर अमलेश नागेश को लॉन्च कर रहे लीड हीरो

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जानिए क्यों दूसरों की लिखी कहानी पर फिल्म नहीं बनाते सतीश जैन

जानिए क्यों दूसरों की लिखी कहानी पर फिल्म नहीं बनाते सतीश जैन

ताबीर हुसैन @ रायपुर . सर्वाधिक छत्तीसगढ़ी हिट फिल्म बनाने का रेकॉर्ड सतीश जैन के नाम है। मोर छइयां-भूइयां और झन भूलो मां-बाप ल प्रोड्यूस करने के बाद वे सिर्फ निर्देशन में ही हाथ आजमा रहे हैं। पिछले साल रिलीज हुई चल हट कोनो देख लीही बॉक्स ऑफिस पर असरदार नहीं रही। अब वे पूरी एनर्जी के साथ 5 मई को ले सुरु होगे मया के कहानी लेकर आ रहे हैं। पहली बार किसी मेकर्स ने कॉमेडियन और यूट्यूबर अमलेश नागेश को बतौर लीड लिया है। इसलिए सिने इंडस्ट्री की निगाहें उनके प्रयोग पर है। यह एक्सपेरिमेंट कितना सफल हो पाएगा यह तो 5 मई को ही पता चलेगा। जैन कहते हैं सिनेमा कभी पैसों से नहीं बनता, यह तो दिल से बनाया जाता है और दर्शक भी इसे दिल से ही देखता है। कई कॉर्पोरेट ग्रुप को देख लीजिए वे हर क्षेत्र में कामयाब हो गए सिवाए सिनेमा के। यह मेरी बात को पुख्ता करने के लिए काफी हैं।

डायरेक्टर बनने लौटा छत्तीसगढ़

मैं डायरेक्टर बनने मुंबई गया था लेकिन बन गया राइटर। मैंने 31 साल की उम्र में अपनी पहली फिल्म लिखी पनाह। इसमें नसीरुद्दीन शाह और पल्लवी जोशी थे। इसके बाद दुलारा, राजाजी, आग और हद कर दी जैसे लिखी। मुझे लगा कि मैं दिशा भटक रहा हूं। वहां डायरेक्टर बनने का मुहूर्त निकल नहीं पाया लिहाजा मैं छत्तीसगढ़ लौटा और यहां मोर छइयां-भुईयां से शुरुआत की।

पारंपरिक धुन किसी एक ही नहीं होती

धुन की कॉपी के सवाल पर बोले- सात सुर हैं। कहीं न कहीं वे टकराते ही हैं। वैसे भी पारंपरिक गीत हर किसी के होते हैं। जब आकाशवाणी के जरिए वे गीत लोगों की कानों तक पहुंचे तो उनके दिलों में रचबस गए। अगर हम पारंपरिक गीतों से हटकर कोई भी प्रयोग करें तो श्रोताओं को लगेगा कि यह तो हिंदी गाने जैसा है। इसलिए हम पारंपरिंक गीतों से मिलती-जुलती धुन लेते हैं।

इसलिए खुद की लिखी कहानी पर फिल्म बनाते हैं

मैं दूसरों की लिखी कहानी पर फिल्म नहीं बनाता। क्योंकि मेरे पास ऑलरेडी कई कहानियां हैं। मान लो कोई दूसरा अपनी कहानी मुझे सुनाया और वह कहानी मेरी किसी कहानी से मैच खा गई। ऐसे में जब मैं उसे बताऊंगा कि इस तरह की कहानी मेरे पास है तो वह समझेगा कि मैं स्मार्ट बनने की कोशिश कर रहा हूं।

ऐसी कोई स्थिति आई नहीं है

शूटिंग के दौरान कोई पारिवारिक परेशानी आने पर क्या आप शूटिंग रोक देते हैं? इस पर जैन बोले- नूतन की मौत के दौरान मोहनिश बहल विदेश में किसी फिल्म की शूटिंग पर थे। जब उन्हें सूचना मिली तो अपना काम करके ही लौटे। मोहनिश ने मुझे बताया था कि प्रोड्यसूर का पैसा लगा है, पूरी यूनिट तैयार है ऐसे में मुझे अपनी शूटिंग के बाद ही स्वदेश लौटना मुनासिब लगा था। जैन ने कहा, जब मुझे कोरोना हुआ था तब मैंने चल हट कोनो देख लीही की शूटिंग जरूर बंद की थी। अब तक ऐसी कोई और स्थिति तो आई नहीं है। यदि आ भी गई तो उस वक्त मेरा क्या फैसला होगा अभी नहीं कह सकता।

डीओपी की क्या खासियत होनी चाहिए?

राज बब्बर की फिल्म थी मजदूर। मुझे ठीक से याद नहीं लेकिन उसमें कारखाने की कोई मशीन खराब हो जाती है। उसे सुधारने के लिए राज बब्बर को बुलाया जाता है। एक हथौड़े में ही राज बब्बर मशीन को ठीक कर देता है। जब उससे मेहनताना पूछा जाता है तो वह कहता है एक हजार रुपए। इस पर दिलीप कुमार कहता है एक हथौड़े मारने के इतने ज्यादा पैसे? इस पर राज बब्बर बोलता है कि हथौड़े मारने का तो मैंने एक रुपए लिया है लेकिन बाकी की रकम हथौड़ा कहां मारना है इसके लिए हैं। जैन ने इस उदाहरण से बताया कि ऐसे ही किसी डीओपी की वैल्यू होती है कि वह कहां और कैसे फोकस करता है।


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