
छत्तीसगढ़ में सूचना का अधिकार अधिनियम कानून बना मजाक, जानकारी नहीं देने वालों के खिलाफ नहीं होती कार्रवाई
राजगढ़। शासन ने हर काम में पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से सूचना के अधिकार अधिनियम बनाया है। लेकिन अभी भी कई ऐसे कार्यालय है, जहां आवेदकों को जानकारी मांगनेे के बाद वह उपलब्ध नही कराई जाती।
ऐसा ही मामला भू-अर्जन कार्यालय राजगढ़ का है जहां आवेदकों को जारी किए गए पत्र न सिर्फ अधिनियम की पारदर्शिता को दरकिनार करता है, बल्कि आवेदक इस तरह गुमराह होता है कि वह यह भी नही समझ पाता की प्रशासन द्वारा जारी किए गए पत्र का उद्देश्य क्या है।
पकडी जा चुकी है फर्जी अंक सूची....
30 मई 2018 में एसडीएम कार्यालय में मोहनपुरा सिंचाई परियोजना से सबंधित भुगतान की जानकारी चाही गई थी। जिसमें अंक सूचियों को आधार मानकर लोगों को बालिक बताया गया है। जबकि इस मामले में तत्कालीन एसडीएम कुछ फर्जी अंक सूची पकड़ भी चुकी थी।
जानकारी मई माह की होने के बाद आवेदक को अक्टूंबर माह तक उपलब्ध नही कराई गई। और अब जब जानकारी न देने की अपील की गई, तो आवेदक से ही यह पूछा जा रहा है कि कलेक्ट्रेट परिसर में फोटो कॉपी दुकानदार की सहमति दिलवाए। ताकि मांगी गई जानकारी की फोटो कॉपी दिलाकर उस पर होने वाले व्यय का भुगतान बताया जा सके।
30 दिन बाद जानकारी उपलब्ध नहीं कराने पर संबंधित जानकारी निशुल्क उपलब्ध करानें का प्रावधान है। ऐसे में अधिकारियों को अधिनियम की जानकारी नही है या मांगी गई जानकारी न देने के लिए इस तरह के पत्र जारी किए जा रहे है।
इनसे जानकारी लेने के लिए जारी किया....
पहले राजस्व और स्वास्थ्य विभाग के मामले में एसडीओपी के पास भेजा था
ऐसे ही एक मामले में स्वास्थ्य विभाग और राजस्व विभाग ब्यावरा से जुड़ी जानकारी को लेकर भोपाल के एक आवेदक ने आवेदन किया था।
लेकिन कलेक्ट्रेट कार्यालय से एसडीओपी नरसिंहगढ़ से जानकारी लेने के लिए पत्र लिखा गया। जबकि जो जानकारी मांगी गई थी, उस जानकारी का पुलिस विभाग से कोई लेना देना ही नही था। फिर भी यह पत्र एसडीओपी नरसिंहगढ़ से जानकारी लेने के लिए जारी कर दिया गया था।
आवेदक कार्यालय में आकर रिकार्ड का अवलोकन कर ले और जो भी जानकारी चाहिए हो वह बता दे। उस हिसाब से राशि जमा करनी होगी। जानकारी देने में कोई दिक्कत नही है।
विजेन्द्र रावत, एसडीएम राजगढ़
Published on:
25 Oct 2018 11:33 am
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