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ईद के दिन फर्ज के मोर्चे पर हैं मुस्तैद, मिल रही सबसे अनमोल ईदी

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ईद के दिन फर्ज के मोर्चे पर हैं मुश्तैद, मिल रही सबसे अनमोल ईदी

ईद के दिन फर्ज के मोर्चे पर हैं मुश्तैद, मिल रही सबसे अनमोल ईदी

कोरोना ने जीवन के मायने बदल दिए हैं। घर में रहना, शारीरिक दूरी का कड़ाई से पालन करना जीवन के लिए सबसे महत्वपूर्ण हो चुका है। लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जो अपनी जान और खुशियों की परवाह किए बगैर अपने देश व देशवासियों के लिए सबकुछ दांव पर लगा चुके हैं। रोजा किया लेकिन ड्यूटी को कहीं प्रभावित करने नहीं दिया, ईद मनाने की बजाय कोरोना मरीजों की देखभाल को सबसे बड़ी इबादत समझ रहे हैं।

ड्यूटी को दी प्राथमिकता, परिवार संग ईद फिर कभी मनाएंगे

भीषण गर्मी में रोजा। तिस पर पीपीई किट से पूरे शरीर को पैक रख लगातार ड्यूटी कर रहे ब्यावरा के सीएमओ इकरार अहमद हर रोज रोजा रहे। न ही आस्था के लिए उन्होंने फर्ज निभाना छोड़ा न ही ड्यूटी के लिए धर्म के प्रति आस्था कम होने दी। डाॅ. इकरार बताते हैं कि वे हर दिन रोजा रखते थे। ड्यूटी भी पूरी करते थे। ड्यूटी के ही बीच में समय निकालकर वह नमाज भी पढ़ लेते थे। लेकिन इन सबके बीच कभी भी कोविड-19 के प्रोटोकाल का पालन करना नहीं भूले। वह कहते हैं कि इस बार ईद पर घर नहीं जा रहे हैं। पिता, पत्नी-बच्चे राघोगढ़ में हैं। पूरे ड्यूटी के दौरान मिलना नहीं हो सका। अभी ड्यूटी ज्यादा जरूरी है। हम लोगों को यहां अधिक जरुरत है। जब हालात सुधरेंगे तो ईद भी मनाएंगे और दूसरे त्योहार भी। इस विपत्ति के दौर में सेवा धर्म ही सर्वाेपरि है।

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इबादत के साथ ड्यूटी निभाना भी नेकी की राह

सीहोर जिला अस्पताल में वार्ड ब्वाय आमिर अंसारी के लिए यह रमजान का महीना सबसे अलग अनुभव वाला रहा। 12 साल से रोजा रखने वाले आमिर का कहना है कि इबादत के साथ ड्यूटी करने का जज्बा इस बार सुकून दे रहा है। हमारे धर्म-त्योहार सौहार्द और भाईचारा की ही सीख देते हैं। कोरोना काल में ड्यूटी के दौरान लोगों की सेवा करना भी किसी इबादत से कम नहीं। आमिर आईसोलेशन वार्ड में कोरोना संदिग्धों या पाॅजिटिव के बीच सेवा कार्य करते हैं। उनको दवा, इंजेक्शन आदि देने की ड्यूटी पूरे जज्बे के साथ निभाते हैं।

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पहले ड्यूटी बाद में इबादत

कोरोना संकट में लगातार ड्यूटी कर रही राजगढ़ में आईसीयू वार्ड की नर्सिग स्टाॅफ प्रभारी शाहीन खान पूरे रमजान रोजे में रही लेकिन कभी इसके लिए ड्यूटी प्रभावित नहीं होने दी। शाहीन खान बताती हैं कि अस्पताल ने जब भी ड्यूटी लगाई वह मौजूद रहीं। रोजा के दौरान कई बार ऐसी स्थिति आ जाती थी कि मरीज को इमरजेंसी में अटेंड करने के दौरान नमाज में देरी हो गई। पहले उन्होंने ड्यूटी की इसके बाद अस्पताल में अलग कहीं इबादत भी कर ली। आज सभी काम से महत्वपूर्ण मरीजों की सेवा करना है। मुल्क के लोग संकट में हैं। हम सबको इससे लड़ना है। अल्लाह भी नेकी करनेे को कहता है। इस समय हम स्वास्थ्यकर्मियों के लिए मरीजों की सेवा सर्वाेपरि है। वह बताती हैं पहले अवकाश लेते थे लेकिन कोरोना काल में अवकाश लेने का ख्याल तक मन में नहीं आया।

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सेवा ही जिंदा रहने का अहसास कराता

शहर के युवा डाॅक्टर अनीश खान ने पूरे रमजान भर अनोखे तरीके से सेवा को अंजाम दिया। रमजान के महीना में उनकी क्लिनिक पर जो भी गरीब मरीज गया उसका इलाज उन्होंने मुफ्त में किया। बचपन से रोजा रखने वाले अनीश खान का मानना है कि यह आफतकाल है। इस आफत में सबको एक साथ होकर लड़ना होगा। जो जिस तरह मदद कर सकता है, करना चाहिए। सबको अपने तरीके से सबके लिए आगे आना होगा। अनीश कहते हैं कि महामारी के समय में इबादत व सेवा ही ऐसे दो कार्य हैं जो व्यक्ति के उसके होने का अहसास कराती है। मानव जीवन का मतलब केवल इबादत व सेवा ही है।

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