
मैं हूं चौकीदार... न समय पर वेतन मिलता और न मिलती है कोई सुविधाएं ...
राजनांदगांव. लोकसभा चुनाव में राजनीतिक प्रोपेगेंडा बने चौकीदार सोशल मीडिया पर छाए हुए हैं। किसी ने अपने नाम के आगे चौकीदार लिखवा लिया तो किसी ने लिखा हां मैं भी चौकीदार। प्रधानमंत्री के खुद को चौकीदार कहने से शुरू हुआ सिलसिला गांव, गली तक के भाजपा नेता तक पहुंच गया है लेकिन जिन चौकीदारों के नाम पर देशभर में राजनीति की जा रही है उन वास्तविक चौकीदारों को कोई पूछने वाला नहीं है।
नेताओं के लिए तो चौकीदार सिर्फ चुनावी टैगलाइन ही है, पर सरकारी अमले के पास भी जिले में काम करने वाले चौकीदारों की संख्या या उनसे संबंधित कोई जानकारी नहीं है। ज्यादातर चौकीदार बेरोजगारी और परिवार पालन-पोषण की मजबूरी में नौकरी कर रहे हंै। जब सभी खुद को चौकीदार बता रहे हैं, तो पत्रिका ने वास्तविक चौकीदारों से बातचीत की। चौकीदारों ने अपना दर्ज बयान करते हुए कहा कि सत्ता और विपक्ष में बैठे लोग चौकीदार की परिभाषा को ही बदल चुके हैं।
सरकारें किसी की भी रही हों और स्थितियां जो भी रही हों, इन चौकीदारों पर किसी का ध्यान नहीं गया। शासकीय व प्रशासकीय कार्यों में महती भूमिका निभाने वाले इन चौकीदारों की हालत यह है कि १२ घंटे रखवाली (ड्यूटी) करने के बाद भी वे अपनी बुनियादी सुविधाएं नहीं जुटा पा रहे हैं। जो राजनीतिक पार्टियां उनका नाम लेकर राजनीति करने में जुटी हैं, उन्होंने भी उनकी ओर ध्यान नहीं दिया।
चौकीदारों का प्रशासन के पास रिकार्ड नहीं
जिले में भी विभिन्न प्लेसमेंट एजेंसी हैं, जो सरकारी व गैर सरकारी संस्था सहित निजी सुरक्षा को लेकर चौकीदार उपलब्ध कराते हैं, लेकिन हैरत की बात है कि इन एजेंसी का जिला प्रशासन के पास कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है। इन एजेंसियों के पास कितने कर्मचारी हैं, इन्हें क्या सुविधा दी जा रही, इनसे किस तरह और कितना समय तक काम लिया जा रहा है। इसका कोई लेखा-जोखा नहीं है और न ही इस ओर कोई झांकने वाला नहीं है। ऐसे एजेंसी का श्रम विभाग, एसडीएम कार्यालय व रोजगार कार्यालय में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है। ऐसे में इन प्लेसमेंट एजेंसी चलाने वालों की मनमानी चल रही है। काम एक है, लेकिन इन कर्मचारियों को वेतन सभी जगह-अलग है।
फेसबुक, वाट्स-एप में मची होड़
कुछ लोगों में 'हां मैं भी चौकीदारÓ अपने नाम के आगे लिखकर तो कुछ लोग चौकीदार ही चोर का टेग फेसबुक, वाट्स-एप, ट्वीटर इत्यादि सोशल मीडिया के साइड पर लिखने में होड़ मची है। सोशल मीडिया की कई आपत्तिजनक साइड्स पर तक चौकीदार लिखा जा रहा है। यानि चुनाव को लेकर चौकीदार शब्द का उपयोग सरकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही तरीके से किया जा रहा है। हालांकि यह बात अलग है कि किसी ने चौकीदारों की वास्तविक स्थिति के बारे में न जाना और न ही विचार किया।
कानून का भी नहीं करा रहे पालन
चौकीदारी करने वाले सिक्योरिटी गार्डों के लिए प्रशासन के पास कोई नियम कानून नहीं है। २०१० में इनके लिए बने कानून का भी पालन नहीं हो रहा है। ऐसे में प्लेसमेंट एजेंसी इनका शोषण कर रहे हैं। राजनीति में तो उनका उपयोग ब्रॉन्ड एम्बेस्डर के तौर पर किया जा रहा है, लेकिन लेकिन उनकी ओर ध्यान किसी का नहीं जा रहा। चौकीदार बनने वाले भाजपा नेताओं को भी असल चौकीदारों की संख्य और स्थिति की जानकारी नहीं है।
Published on:
30 Mar 2019 06:03 am
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