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Womens Day Special: 70 बच्चों को गोद लेकर नि:शुल्क में ​सिखा रहीं शास्त्रीय संगीत ताकि हुनरमंद बन सकें बच्चे

Womens Day 2024: एक महिला चाहे तो पूरे समाज और देश को बदलकर रख सकती है। इसलिए हमारे देश में नारी शक्ति का हमेशा सम्मान होता रहा है। महिलाएं भी जज्बे के साथ समाज और देश की बेहतरी के लिए काम कर रहीं हैं। इन्हीं महिलाओं में से एक हैं शिक्षिका पारुल चतुर्वेदी।

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मोहन कुलदीप।

Rajnangaon News: एक महिला चाहे तो पूरे समाज और देश को बदलकर रख सकती है। इसलिए हमारे देश में नारी शक्ति का हमेशा सम्मान होता रहा है। महिलाएं भी जज्बे के साथ समाज और देश की बेहतरी के लिए काम कर रहीं हैं। इन्हीं महिलाओं में से एक हैं शिक्षिका पारुल चतुर्वेदी। पारुल वर्तमान में टेड़ेसरा स्थित मिडिल स्कूल में एलबी शिक्षिक हैं। शिक्षा में नवाचार के क्षेत्र में कई बार सम्मानित हो चुकीं उक्त शिक्षिका ने गांव के बच्चों का भविष्य संवारने की ठानी है।

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टेड़ेसरा सहित आसपास के 70 स्कूली बच्चों को गोद लेकर नि:शुल्क में शास्त्रीय संगीत, नृत्य, सुगम संगीत की शिक्षा दे रहीं हैं ताकि बच्चे आगे चलकर हुनरमंद बन सकें और आसानी से किसी भी संस्थान में नौकरी कर सकें। पारुल इन बच्चों को केवल नि:शुल्क में शिक्षा ही नहीं दे रहीं हैं बल्कि शास्त्रीय संगीत से जुड़ी परीक्षा में भी आर्थिक रूप से मदद करती हैं।

बच्चे परीक्षा देकर शास्त्रीय संगीत में पारंगत होने लगे हैं। शिक्षिका पारूल ने बताया कि इंग्लिश टीचर के रूप में शिक्षा विभाग में 2005 में पोस्टिंग हुई। इसके बाद से कक्षा छठवीं, सातवीं और आठवीं के अंग्रेजी विषय में दिए गए पोयम को छत्तीसगढ़ के लोक संगीत में कनवर्ट कर बच्चों को पढऩा सिखाती हैं।

अंग्रेजी के शब्दों को लोक संगीत में कनवर्ट कर देने से बच्चे आसानी से पढ़ते हैं और रुचि लेते हैं। अंग्रेजी के सभी चैप्टर को नाटक के माध्यम से पढ़ाते हैं। चेप्टर में दिए गए पात्र बच्चों को बनाकर प्ले कराते हैं ताकि बच्चों को आसानी से समझ आए और हमेशा याद कर सकें। इस नवाचार के लिए 2017 में मुख्यमंत्री ज्ञानदीप पुरस्कार, 2017 में डोंगरगढ़ विधायक की ओर से उत्कृष्ट शिक्षक सम्मान दिया गया। 2023 में राज्यपाल के हाथों पुरस्कृत हो चुकी हैं। शिक्षिका पारुल डाइट में इंग्लिश ट्रेनर भी हैं। दुर्ग जिले की रहने वाली हैं और ग्रामीण परिवेश से वाकिफ हैं।

पारुल का कहना है कि गांव के बच्चे पढ़ाई तो करते हैं पर सरकारी जॉब सहित अन्य संस्थानों में जानकारी के अभाव में नौकरी नहीं कर पाते। गांव तक सीमित रह जाते हैं। इसलिए ठाना है कि गांव के बच्चों को हुनरमंद बनाना है। इस वजह से स्कूल में हर शनिवार को शास्त्रीय संगीत, सुगम संगीत, नृत्य और चित्रकला की बारीकियां सिखाने दो घंटे की क्लास लेती हैं। यह सिलसिला तीन साल से चल रहा है। पहले 30 से 40 बच्चे आते थे पर अब टेड़ेसरा सहित मगरलोटा, देवादा, इंदावानी गांव के लगभग 70 बच्चे प्रशिक्षण लेने आ रहे हैं।

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पारुल ने बताया कि शास्त्रीय संगीत का कोर्स छह साल का है। प्रशिक्षण के साथ डिग्री के लिए परीक्षा देनी पड़ती है। गोद लिए गए बच्चों को प्राचीन कला केन्द्र चंडीगढ़ के माध्यम से परीक्षा दिला रहीं हैं। परीक्षा में आने वाले खर्च का वहन स्वयं करती हैं। चित्रकला की भी परीक्षा दिलाई जाती है। बच्चे रुचि लेकर पढ़ाई कर रहे हैं और अच्छा रिस्पांस मिल रहा है।


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