Water Crisis: धीरी समूह जल प्रदाय योजना के नाम पर लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग ने पानी की तरह पैसे खर्च किए हैं। अफसरों ने ड्राई जोन में आने वाले 24 गांव तक शिवनाथ नदी का पानी पहुंचाने 53 करोड़ रुपए से ज्यादा राशि खर्च की है। जनहित याचिका के बाद बिलासपुर हाईकोर्ट ने योजना की जांच के लिए कमेटी गठित की है। सरकार ने बचाव करते हुए चिन्हांकित गांवों में पानी पहुंचने का दावा किया है।
पत्रिका ने सरकार के दावों की जमीनी हकीकत देखने पड़ताल की तो योजना की सच्चाई सामने आई। इस योजना में शामिल 24 गांव के ग्रामीण माहभर से शिवनाथ नदी नहीं बल्कि हैंडपंप के पानी से प्यास बुझा रहे हैं। दरअसल ईरा एनीकट में राइस मिल का कैमिकलयुक्त पानी जा रहा था। प्रशासन ने ही पानी का इस्तेमाल नहीं करने मुनादी कराई थी तब से ग्रामीण इतने डरे, सहमें हैं कि इस पानी को मुंह तक नहीं लगा रहे हैं।
कलेक्टर संजय अग्रवाल का कहना है कि गांव में जलापूर्ति हो रही है। गांव स्तर पर कुछ समस्या होगी तो उसका समाधान किया जा रहा है। इस योजना की जांच होनी है। जांच रिपोर्ट में क्या आता है। इसके बाद ही कुछ कह पाएंगे। गांवों में ज्यादा दिक्कत नहीं है।
मगरलोटा सरपंच कनक रुपेन्द्र दुबे ने बताया कि पीएचई के अफसरों ने करोड़ों रुपए खर्च किए हैं पर कोई फायदा नहीं हुआ। गांव में पर्याप्त जलापूर्ति होती ही नहीं है। बैगाटोला निवासी गंगा बाई जांगड़े ने बताया कि नल के पानी का इस्तेमाल पीने के लिए नहीं कर रहे हैं। कुछ दिन तक तो गंदा पानी आ रहा था। इससे शरीर में खुजली हो रही थी। बीमारी के डर से इस पानी का इस्तेमाल केवल कपड़ा धोने और साफ-सफाई में कर रहे हैं।
इसी गांव में विनोद बांधे ने बताया कि योजना शुरू होने के बाद एक बार भी नल में पानी नहीं आया है। पत्रिका टीम ने देखा कि ग्रामीणों ने नल में पानी नहीं आने पर चबूतरा से पाइप हटाकर दूसरी ओर कर दिया है ताकि पानी का फोर्स आ सके। टेडे़सरा के उपसरपंच देवलाल साहू ने बताया कि इस योजना से कभी पर्याप्त पानी पहुंचा ही नहीं।
ग्रामीणों ने बताया कि इससे पूरे गांवभर में पेयजल की आपूर्ति नहीं होती। इसलिए हैंडपंप व अन्य जलस्रोत का सहारा लेते हैं। मगरलोटा गांव पहुंचे तो यहां मनरेगा का कार्य चल रहा था। बड़ी संया में महिलाएं यहां मौजूद थीं। बताया कि जब से धीरी समूह जल प्रदाय योजना शुरू हुई है तब से पानी को लेकर बड़ी राहत नहीं मिली। गांव में टंकी बनी है, पाइप लाइन बिछा दिए हैं पर हर घर पानी नहीं आता। ग्रामीणों ने कुछ घरों में मोटर पंप से पानी खींच लेने की भी शिकायत की।
योजना धीरी गांव के नाम से है पर इंटकवेल ईरा गांव में बनाया गया है
ईरा एनीकट में पानी का स्टोरेज नहीं होता फिर भी मनमानी कर दी
पानी की कमी दूर करने नदी में ही बोर कराया पर वह फेल, इसमें भी लाखों फूंके
शुरुआत में 28 करोड़ 77 लाख रुपए खर्च किए
बाद में 15 करोड़ मेंटेनेंस के नाम पर फूंके
दरअसल छत्तीसगढ़, जिसे "भारत का हृदय" भी कहा जाता है, अब एक गंभीर जल संकट का सामना कर रहा है। राज्य में भूजल स्तर तेजी से गिर रहा है, जिससे न केवल कृषि बल्कि पीने के पानी की आपूर्ति भी प्रभावित हो रही है। इस समस्या का मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन, अत्यधिक भूजल दोहन और अपर्याप्त वर्षा है।
पिछले कुछ वर्षों में छत्तीसगढ़ में मानसून की वर्षा में कमी देखी गई है। जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षा पैटर्न में अस्थिरता आ रही है, जिससे जल संसाधनों पर भारी दबाव पड़ा है। वर्षा की कमी के चलते नदियों, झीलों और तालाबों में पानी का स्तर भी गिर गया है, जिससे भूजल पुनर्भरण की प्रक्रिया बाधित हुई है।
छत्तीसगढ़ में कृषि प्रमुख व्यवसाय है और किसानों को फसलों की सिंचाई के लिए भूजल पर अत्यधिक निर्भर रहना पड़ता है। लगातार पंप सेटों और ट्यूबवेल के माध्यम से भूजल का दोहन किया जा रहा है, जिससे भूजल स्तर में तेज़ी से गिरावट आ रही है। विशेषकर रबी फसल के दौरान पानी की अधिक आवश्यकता होती है, जिसके लिए भूजल का अत्यधिक उपयोग किया जाता है।
राज्य सरकार और केंद्रीय सरकार ने इस समस्या को हल करने के लिए कई प्रयास किए हैं। जल संरक्षण और पुनर्भरण की योजनाएं बनाई गई हैं, जिनमें चेक डैम, तालाब और वाटरशेड विकास परियोजनाएं शामिल हैं। 'जल शक्ति अभियान' और 'नल-जल योजना' जैसे राष्ट्रीय स्तर पर चलाए जा रहे कार्यक्रमों का उद्देश्य जल संरक्षण और सतत जल प्रबंधन को बढ़ावा देना है।
भूजल संरक्षण के लिए सामुदायिक स्तर पर जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में लोगों को जल संरक्षण के महत्व के बारे में जागरूक किया जा रहा है। विभिन्न गैर-सरकारी संगठनों (NGO) और समाजिक संस्थाओं द्वारा जल संरक्षण के उपायों को अपनाने के लिए अभियान चलाए जा रहे हैं। स्कूलों और कॉलेजों में भी छात्रों को जल संरक्षण के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए कार्यशालाएं आयोजित की जा रही हैं।
भविष्य में जल संकट से बचने के लिए स्थायी जल प्रबंधन और संरक्षण की दिशा में ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। कृषि में सूक्ष्म सिंचाई प्रणालियों जैसे ड्रिप और स्प्रिंकलर सिस्टम को बढ़ावा देना चाहिए, जिससे पानी की खपत को कम किया जा सके। इसके साथ ही, वर्षा जल संचयन (रेन वाटर हार्वेस्टिंग) को अनिवार्य बनाया जाना चाहिए, ताकि वर्षा के पानी को संरक्षित कर भूजल पुनर्भरण किया जा सके।
छत्तीसगढ़ में भूजल स्तर की गिरावट एक गंभीर संकट का संकेत है, जिसे हल करने के लिए सरकार, समुदाय और व्यक्तियों को मिलकर प्रयास करने की आवश्यकता है। जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का सामना करने के लिए और सतत जल प्रबंधन को बढ़ावा देने के लिए ठोस और दीर्घकालिक रणनीतियों की आवश्यकता है। जल संरक्षण की दिशा में सामूहिक प्रयास ही हमें इस संकट से उबार सकते हैं और भविष्य में पानी की उपलब्धता सुनिश्चित कर सकते हैं।
Published on:
22 Jun 2024 12:38 pm