
Rajsamand News
मधुसूदन शर्मा
राजसमंद. राजसमंद के आमेट कस्बे में बीते दिनों घटी एक सच्ची घटना ने यह साबित कर दिया कि इस दुनिया में इंसानियत अब भी जिंदा है- बस ज़रूरत है किसी संवेदनशील आंख की, जो किसी की तकलीफ को देख सके, और किसी करुणामय हृदय की, जो किसी अजनबी की पीड़ा को भी अपनी मान ले।
यह कहानी है आमेट नगर परिषद के वार्ड संख्या 16 में एक टूटी-फूटी झोपड़ी में रहने वाली 70 वर्षीय गहरी बाई की, जिनकी ज़िंदगी किसी उपेक्षित इतिहास की तरह अंधेरे में डूबी हुई थी। उनका एकमात्र सहारा – पुत्र प्रतापसिंह, जो लकवाग्रस्त होकर स्वयं ही जीवन के लिए जूझ रहा है, उसकी नज़रें मां के दर्द को देख तो सकती हैं, मगर न हाथ बढ़ा सकती हैं और न ही आवाज़। गहरी बाई को करीब दो माह से बुखार, कमजोरी और अन्य बीमारियों ने बिस्तर से जकड़ लिया था। पेट भर भोजन का कोई ठिकाना नहीं, न ही सर के ऊपर छत ऐसी जो गर्मी-बारिश से बचा सके। कमरे में न पंखा था, न दवा, और न देखभाल करने वाला कोई अपना। यह दो जीवन थे- एक मां और एक बेटा – दोनों लाचार, दोनों बेसहारा, और दोनों मानो अंतिम सांसों की प्रतीक्षा में। एक कमरा था, जिसमें नमी भरी दीवारें और एक फटी चटाई ही उनकी दुनिया थी।
एक दिन, आमेट के ही निवासी और समाजसेवा में सक्रिय ओम पारीक को इस मां-बेटे की दुर्दशा का पता चला। उन्होंने जब घर जाकर हालात देखे, तो उनकी आंखें भर आईं। एक बुजुर्ग महिला जो बोल भी ठीक से नहीं पा रही थी, और एक बेटा जो बैठ तक नहीं सकता- यह दृश्य उन्हें झकझोर गया।
ओम पारीक ने तय किया कि वह गहरी बाई और उनके बेटे को इस उपेक्षा के अंधेरे से निकालकर कुछ उजाले तक जरूर पहुंचाएंगे। उन्होंने कुछ भामाशाहों (दानदाताओं) से संपर्क किया और उसी दिन उस छोटे से कमरे में एक पंखा लगवाया, कुछ दवाइयों, बिस्तर और खाने-पीने की जरूरी वस्तुओं की व्यवस्था की। लेकिन सिर्फ यही काफ़ी नहीं था। गहरी बाई की हालत बेहद नाज़ुक थी। वह बात करने में असमर्थ थी, हाथ-पांव काम नहीं कर रहे थे और चेहरा पीला पड़ा था। ऐसे में ओम पारीक ने तुरंत 108 एम्बुलेंस सेवा को बुलाया और गहरी बाई को नगर के सरकारी अस्पताल पहुंचाया।
जानकारी मिलने पर तहसीलदार पारसमल सालवी ने भी इस मामले में रुचि ली। अस्पताल में मौजूद डॉ. आशीष ने प्राथमिक उपचार किया और तुरंत ही मरीज की गंभीरता को देखते हुए उन्हें राजसमंद स्थित आर.के. जिला चिकित्सालय रेफर कर दिया। अब गहरी बाई राजसमंद अस्पताल में डॉक्टरों की निगरानी में हैं। उन्हें जरूरी पोषण और इलाज मिल रहा है। उनका बेटा प्रतापसिंह अब कम से कम यह देख पा रहा है कि उसकी मां एक बार फिर जीवन की ओर लौटने की कोशिश कर रही है।
इस पूरी घटना में अगर किसी का नाम सबसे पहले लिया जाना चाहिए, तो वह है ओम पारीक — जिन्होंने न केवल एक बुजुर्ग महिला की जान बचाई, बल्कि समाज को यह दिखा दिया कि बदलाव सिर्फ सरकार या नीतियों से नहीं, बल्कि संवेदनशील इंसानों से आता है। जहां लोग आए दिन अपने परिजनों को वृद्धाश्रम छोड़ आते हैं, वहां ओम पारीक ने एक अनजान महिला को मां का दर्जा देकर उसकी सेवा की। बिना किसी स्वार्थ के, बिना किसी प्रचार की चाहत के।
आज जब गहरी बाई अस्पताल के बेड पर लेटी हैं, तो उनके चेहरे पर थोड़ा सुकून है। वह अब भी ठीक से बोल नहीं पा रही हैं, लेकिन उनकी आंखों से बहता एक-एक आँसू अपने आप में एक दुआ है- उन सब लोगों के लिए जो किसी बेसहारा के लिए फ़रिश्ता बन सकते हैं।
यह घटना प्रशासन और समाज दोनों के लिए एक सीख है। वार्ड स्तर पर यदि कोई स्वास्थ्यकर्मी या सामाजिक सुरक्षा प्रतिनिधि समय-समय पर ऐसे कमजोर तबकों तक पहुंचे, तो ऐसी त्रासद स्थितियों से बचा जा सकता है। बुजुर्गों के लिए योजनाएं तभी सार्थक होती हैं जब ज़मीन पर उन तक पहुंच पाएं।
Published on:
21 May 2025 01:08 pm
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