scriptवादियों में सैर करने कश्मीर से लेकर अफ्रीका तक से आते हैं पक्षी…पढ़े पूरी खबर | Birds come from Kashmir to Africa to visit the valleys | Patrika News
राजसमंद

वादियों में सैर करने कश्मीर से लेकर अफ्रीका तक से आते हैं पक्षी…पढ़े पूरी खबर

देवगढ़. करीब डेढ़ वर्ष पूर्व वेटलैंड घोषित नगर का राघव सागर तालाब देसी-विदेशी पक्षियों की पनाहगाह है। यहां की प्राकृतिक सुंदरता को ये पक्षी और अधिक निखार रहे हैं। यहां सुबह का दृश्य मनोरम होता है। चारों तरफ पक्षियों का कलरव कानों में मानों मकरंद सा घोलता रहा है।

राजसमंदMar 29, 2024 / 11:05 am

himanshu dhawal

वादियों में सैर करने कश्मीर से लेकर अफ्रीका तक से आते हैं पक्षी...पढ़े पूरी खबर

वादियों में सैर करने कश्मीर से लेकर अफ्रीका तक से आते हैं पक्षी…पढ़े पूरी खबर

अरावली क्षेत्र के पक्षीविद् शत्रुंजय सिंह बताते हैं कि स्थानीय परिवेश में पक्षी दो तरह के होते हैं गैर प्रवासी पक्षी और प्रवासी पक्षी। ये हमारे स्थानीय परिवेश में रहते हैं और प्रवजन नहीं करते हैं, जैसे मैना, बुलबुल, टेलरबर्ड, वेबलर, बत्तख और प्रवासी पक्षी कोमन टील नॉर्दर्न सबलर, पिनटेल, गिद्ध, बार हेडेडगूज आदि। स्थाई प्रवासी पक्षी कनारी इसकेचर जल कागली, स्नैक बर्ड, घरट इसे पेलिकन भी कहते हैं, जो गुजरात से आते हैं। लेसर विसलिंग टील रात्रि में भोजन करती है। यह झीलों व तालाबों के आसपास पाई जाती है और दो स्वर में आवाज निकालती है।
शत्रुंजय बताते हैं कि हमें विरासत में मिले प्राकृतिक ज्ञान और पक्षियों की पहचान, उनके निवास, खाने-पीने के तरीकों व मौसम के अनुकूल उनकी मौजूदगी की जानकारी रखनी होगी। वह बताते हैं कि पक्षी अलग-अलग प्रकार के होते हैं, जिनमें पेड़ पर रहने वाले, पानी के तीर पर रहने वाले, पानी के अंदर रहने वाले और भोजन के आधार पर भी इन्हें पहचाना जाता है। कुछ पेड़ों पर भोजन करते हैं, कुछ जमीन पर रहकर, कुछ पानी के किनारे व कुछ पानी के अंदर भोजन करते हैं। इन्हीं विशेषताओं के आधार पर हम इन्हें पहचान सकते हैं। पक्षियों की पहचान उनकी आवाज व उड़ान के आधार पर भी होती है।
एक नई चिडिय़ा, जो आती है दक्षिण अफ्रीका से
शत्रुंजय सिंह ने नई चिडिय़ा के बारे में बताया कि यह मानसून बर्ड, सुगन चिडिय़ा, चितकबरा कोयल और पाइड क्रिट्रस्टेड कोयल भी कहलाती है। प्राचीन भारत में इसे चातक नाम से भी जाना जाता रहा। यह मानसून से 21 दिन पहले दक्षिण अफ्रीका के मेडागास्कर से यहां आती है। भारतीय पौराणिक कथाओं में भी इसका जिक्र है। प्रसिद्ध कवि कालिदास ने अपनी प्रमुख रचना मेघदूत में इसे गहरी लालसा के रूपक के रूप में वर्णित किया। यह पक्षी प्यास बुझाने बारिश का इंतजार करता है। सुबह जल्दी मेजबान के घोसले में अंडे देता है। देवगढ़ में चकवा-चकवी कश्मीर से आते हैं।
कालीघाटी व साथपालिया दिवेर के जंगलों में दिखाई देती है शर्मिला पक्षी उन्होंने बताया कि दक्षिण भारत से एक चिडिय़ा अरावली की पहाडिय़ों में आती है, जिसे इंडियन पिटा कहते हैं। इसकी आवाज बहुत तेज होती है। यह मई-जून के महीने में यहां आती है। अरावली की कालीघाटी व साथपालिया-दिवेर के जंगलों में दिखाई देती है। यह शर्मिला पक्षी दो स्वर वाली सिटी बजाता है। सुबह-शाम इसे सुना जा सकता है। मार्च चल रहा है।
गर्मियों में बनाने होंगे वॉटरहॉल
मौजूदा महीने में जंगल में पानी की बहुत कमी है। पक्षियों को पानी चाहिए। जंगल में छोटे-छोटे वॉटरहाल बनाने चाहिए। शत्रुंजय कहते हैं कि वन विभाग को पक्षी दर्शन कार्यक्रम रखना चाहिए, जिससे आमजन में इनके संरक्षण के प्रति लगाव उत्पन्न हो। प्रतिदिन अपने पसंदीदा स्थान पर पक्षियों को देखने के लिए समय व्यतीत करें और उनको पहचानने की कोशिश करें। देवगढ़ राघव सागर तालाब पर करीब 48 प्रजातियों के पक्षी देखे जा सकते है।

Home / Rajsamand / वादियों में सैर करने कश्मीर से लेकर अफ्रीका तक से आते हैं पक्षी…पढ़े पूरी खबर

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो