
वृत्तियों का मार्गांतरीकरण है ब्रह्म संबंध
जी हां!
यह रास्ता बहुत सरल भी है और कठिन भी। 'सीस कटाई भुंई ले, तब पैठे घर मांहि', कबीर ने भाव की बुद्धि तत्व पर विजय द्वारा इच्छित फल को प्राप्त करने में हृदय के माहात्म्य को सर्वोच्च स्थान पर रखा है।
आज भगवद् भक्ति द्वारा प्रभु के अनुग्रह को पाने के प्रयासों के स्मरण का दिवस है। पवित्रा द्वादशी श्रीकृष्ण भक्ति आंदोलन के निदान और उपचार के आगाज का दिन है। भारतवर्ष के सांस्कृतिक और धार्मिक इतिहास में यह उस राष्ट्रीय संत के व्यक्ति से लोक कल्याण की दिशा खोज लेने का दिन था, जिसे पुष्टिमार्ग में 'पवित्रा' नाम दिया गया, लेकिन हम उसे व्यक्ति की मनोवृत्ति के परिष्करण द्वारा जीवन के श्रेष्ठतम रूप की खोज का आनंद पर्व कह सकते हैं।
श्री वल्लभाचार्य भारत भ्रमण के झारखंड मुकाम से तब उत्तर भारत में गोकुल आकर प्रभु श्रीनाथजी के विग्रह की गिरिराज पर्वत पर स्थापना के प्रयास में थे। यमुना तट पर स्थित गोविन्द घाट में अपने जन्म की सोद्देश्यता का आत्म विवेचन करते हुए उनके मन में एक ही प्रश्न था, क्या वे भक्ति के मार्ग पर 'परित्राणाय साधुनां' भूतल पर प्रकट हुए निर्दोष और पवित्र प्रभु की सेवा का दायित्व इस कलियुग के दोषयुक्त जीव को दे दें? अंतत: उन्हें यह प्रेरणा अपने आराध्य श्रीनाथजी से ही मिली थी। अपने भक्त की दुविधा का अंत अंतत: भगवान ने यह कहकर किया है कि जीव मात्र को ऐसी दीक्षा या प्रेरणा दी जाए जो उसका परमात्मा से संबंध स्थापित कर दे। यह प्रेरणा होगी, भक्त द्वारा भगवान को निवेदन करना कि वे उसके दोषों का परिहार करें और उसे समस्त दोषों से मुक्त कर उसका अंगीकार करें। श्री वल्लभाचार्य द्वारा भक्त को निर्देशित यह भगवद्नुग्रह या पुष्टिमार्ग कहलाया और श्रावण शुक्ल द्वादशी के दिन गोकुल के गोविन्द घाट पर अपने प्रिय शिष्य दामोदरदास हरसाणी का भाव परिष्करण कर उन्हें लोक कल्याण की दिशा में बढऩे के लिए गुरु वल्लभाचार्य ने राह दिखाई।
मानवीय प्रतिबद्धता का प्रतीक
पवित्रा द्वादशी पर पवित्रा का सूत्र व्यक्ति की मनोवृत्तियों के मार्गांतरीकरण की मानवीय प्रतिबद्धता का प्रतीक है। यह शुद्धिकरण का फल नहीं, उसकी प्रक्रिया का आगाज है। व्यक्ति की क्षमता और अधिकारिता उसके स्तर का निर्धारण करती है। इसीलिए पुष्टिमार्ग में कोई मर्यादा पुष्ट तो कोई प्रवाह पुष्ट, तो कोई पुष्टिपुष्ट तो कोई शुद्ध पुष्ट भक्त है।
यह कहा जाने में गर्व होना चाहिए कि भक्ति जगत् में वृत्तियों के मार्गांतरीकरण के प्रतीक थे दामोदर दास हरसाणी जैसे शिष्य और वल्लभाचार्य जैसे गुरु। ब्रह्म संबंध दीक्षा का यह पवित्रा पर्व अंतत: गुरु की प्रेरणा से जीव को परम लक्ष्य का मार्ग दिखाने वाला पर्व है।
Published on:
31 Jul 2020 08:21 am
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