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वेतन के बिना क्लास: शिक्षकों की जेब खाली, सरकार का खज़ाना बंद

राजस्थान में निजी स्कूलों के शिक्षकों पर वेतन का संकट गहराता जा रहा है।

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Education News

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मधुसूदन शर्मा

राजसमंद. राजस्थान में निजी स्कूलों के शिक्षकों पर वेतन का संकट गहराता जा रहा है। कारण है कि अनिवार्य शिक्षा अधिकार अधिनियम के तहत सरकार से मिलने वाली राशि का अब तक भुगतान नहीं हुआ है। सत्र 2023-24 की दूसरी किश्त और सत्र 2024-25 की दूसरी किश्त का इंतजार महीनों से जारी है। परिणामस्वरूप, कई स्कूलों के संचालन पर भी संकट के बादल मंडरा रहे हैं।

शिक्षण सत्र का हिसाब: लेकिन भुगतान अधूरा

निजी स्कूल संगठन बीते महीनों में कई बार शिक्षा विभाग से राशि जारी करने की मांग कर चुके हैं। प्रदेशभर में कुल 34,900 निजी स्कूल आरटीई योजना के तहत विद्यार्थियों को प्रवेश देते हैं:-

  • 16,345 माध्यमिक व उच्च माध्यमिक
  • 15,596 उच्च प्राथमिक
  • 2,959 प्राथमिक स्कूल

फिर भी अधिकांश संस्थान अब भी भुगतान के इंतजार में हैं।

उदयपुर संभाग में आंकड़ों की हकीकत

जिलाप्राथमिकउच्च प्राथमिकमाध्यमिक/उच्च माध्यमिककुल
बांसवाड़ा160245181586
चित्तौड़गढ़142361182685
डूंगरपुर152203115470
प्रतापगढ़9711283292
राजसमंद91272127490
उदयपुर212441300953

(आंकड़े आरटीई पोर्टल के सीटीजन मॉड्यूल से)

इनमें से अधिकांश स्कूल ग्रामीण क्षेत्रों में हैं, जहां आरटीई के तहत पढ़ने वाले बच्चों की संख्या अधिक है।

वेतन तो दूर, बिजली-पानी के बिल तक भरना मुश्किल

कई छोटे और ग्रामीण निजी स्कूलों की आर्थिक हालत इतनी खराब हो चुकी है कि शिक्षकों को वेतन देना भी कठिन हो गया है। विद्यालय भवन की मरम्मत, बिजली-पानी के बिल, सरकारी निरीक्षण शुल्क इन सबका खर्च स्कूलों को अपनी जेब से उठाना पड़ रहा है। एक स्कूल संचालक बताते हैं कि आरटीई के बच्चों की संख्या हमारे स्कूल में 60 प्रतिशत से ज्यादा है। सरकार की किश्तें नहीं आने से हमें बैंक से उधार लेकर शिक्षकों का वेतन देना पड़ रहा है।

2011 से जारी योजना, लेकिन हर साल देरी की परंपरा

आरटीई योजना 2011 से लागू है। शुरुआत में नियमित भुगतान होता था, लेकिन अब हर साल दूसरी किश्त में भारी देरी देखने को मिल रही है। इससे न केवल शिक्षकों की जीविका प्रभावित होती है बल्कि विद्यालयों की प्रतिष्ठा और गुणवत्ता पर भी असर पड़ रहा है।

25 प्रतिशत बच्चे सरकारी भुगतान पर निर्भर

राज्य के निजी स्कूलों में औसतन 25 प्रतिशत विद्यार्थी आरटीई श्रेणी में आते हैं। इनकी फीस सरकार देती है, पर समय पर भुगतान न होने से स्कूलों की वित्तीय प्रणाली चरमरा जाती है। छोटे स्कूलों में यह प्रतिशत और भी अधिक है—कई जगह 40-50 प्रतिशत तक। ऐसे में इन संस्थानों का पूरा बजट सरकार से आने वाली राशि पर टिका है।

राशि जारी होने की प्रक्रिया जटिल

सरकार एक विद्यार्थी की वार्षिक फीस का भुगतान दो किश्तों में करती है।

- पहले भौतिक सत्यापन किया जाता है।- फिर क्लेम बिल विद्यालय द्वारा प्रस्तुत किया जाता है।

- इसके बाद विभाग भुगतान जारी करता है।- कागजी कार्रवाई और सत्यापन की लंबी प्रक्रिया में ही महीनों की देरी हो जाती है।

सौतेला व्यवहार: प्राथमिक स्कूलों की अनदेखी

जानकारी के अनुसार, माध्यमिक और उच्च माध्यमिक विद्यालयों को सत्र 2024-25 तक की फीस मिल चुकी है। परंतु प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्तर के स्कूलों को अब भी इंतजार है। सत्र 2023-24 की दूसरी किश्त को लगभग डेढ़ वर्ष बीत चुका है। सत्र 2024-25 की दूसरी किश्त को छह माह से अधिक हो गए हैं। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या सरकार प्राथमिक शिक्षा को प्राथमिकता नहीं दे रही?

शिक्षकों का धैर्य जवाब देने लगा

देरी से भुगतान के कारण कई शिक्षकों को वेतन न मिलने की स्थिति झेलनी पड़ रही है। कुछ शिक्षकों ने तो दूसरी नौकरियों की तलाश शुरू कर दी है, जबकि कई स्कूलों में आंशिक वेतन या वेतन स्थगन जैसी स्थिति है। एक शिक्षिका का कहना है कि हमने बच्चों को पढ़ाने का वादा निभाया, पर सरकार ने अपने वादे पूरे नहीं किए। घर चलाना मुश्किल हो गया है।


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