चातुर्मास के दौरान धर्मगुरू से हुई मुलाकात
गत कुछ वर्ष पूर्व आचार्य रामलाल के ब्यावर में चातुर्मास के दौरान उनकी मुलाकात धर्मगुरु से हुई, जिसके बाद वे सांसारिक मोहत्-माया से विरक्त हो गई। वैराग्यवती हर्षाली के मुताबिक दुनियां के आकर्षणों व जागतिक ऐषणाओं से परे उस बालब्रह्मचारिणी को शादी एवं पैसे के सुख से भी अधिक आत्म अन्वेषण, अध्यात्म के रहस्यमय जगत से रूबरू होने में दिलचस्पी होने लगी। वीतरागता के पथ पर अग्रसर होकर तीर्थंकर तुल्य जीवनचर्या अपनाकर सत चित आनंद भाव में रमण करने एवं शाश्वत आत्मिक सुख की प्राप्ति की ख्वाहिशें मन में हिलोरें लेने लगीं। इसके चलते उन्होंने गत वर्ष जॉब को तिलांजलि दे दी, फ्लाइट का सफर छोड़ अब वह पैदल गमन करने लगी। भीलवाड़ा चातुर्मास के दौरान हर्षाली की परिपक्व मानसिकता व धर्म समर्पणा के मद्देनजर आचार्य व परिजनों ने उन्हें दीक्षा की अनुमति प्रदान कर दी। वह भगवता की राह पर अग्रसर हो गई तथा आगामी मंगलवार को परिव्राजक बनकर अंतर यात्रा के लिए कूच करने जा रही है।