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हल्दीघाटी में समर लडय़ों, वो महाराणा प्रताप कठे….वो मेवाड़ी सीरमोर कठे..जिसके सीने में बेइंतहां संघर्ष का लहू दौड़ता था

जिनके नाम से दूश्मन थर-थर कांपते थे, वीर, शौर्य और बलिदान का प्रतिक प्रताप आज अपनो से ही चोट खा रहे हैं।

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हल्दीघाटी में समर लडय़ों, वो महाराणा प्रताप कठे....वो मेवाड़ी सीरमोर कठे..जिसके सीने में बेइंतहां संघर्ष का लहू दौड़ता था

हल्दीघाटी रणांगन में पसरी बेरुखी और खामोशी, महाराणा प्रताप राष्ट्रीय स्मारक पर अव्यवस्थाओं का आलम

खमनोर . राणा प्रताप... जिनकी रगों में मातृभूमि के प्रति प्रेम, स्वाभिमान और बेइंतहां संघर्ष का लहू दौड़ता था, उनके अदम्य शौर्य की गवाह हल्दीघाटी आज सरकारी बेरुखी से खुद को रुसवा महसूस कर रही हैं। हल्दीघाटी में मुगलों को प्रताप की सीमित सेना ने नाकों लोहे के चने चबाने को मजबूर किया। इसी कारण यह रणभूमि मेवाड़ के थर्मोपाली के रूप में पूरी दुनिया में ख्यात है। आज यह रणांगन खामोश, अलग-थलग और बेबस नजर आता है।

वीर धरा हल्दीघाटी में लाखों रुपए की लागत से निर्मित महाराणा प्रताप राष्ट्रीय स्मारक प्रशासनिक उदासीनता के चलते अव्यवस्थाओं से घिरा हुआ है। हालात ये हैं कि जिम्मेदारों ने इस राष्ट्र धरोहर को एक निजी चौकीदार के हाथों में सौंप दिया। निर्माण से लेकर उद्घाटन में देरी हुई, फिर संचालन को लेकर जिम्मेदार विभाग ने अपने हाथ खींच लिए। समूचे राष्ट्र की ऐतिहासिक धरोहर अपने सर्वांगीण विकास की बाट जोह रही है। देशभर की गिनी-चुनी राष्ट्रीय धरोहर में हल्दीघाटी राष्ट्रीय स्मारक भी शामिल है। वर्ष 1997 में स्मारक निर्माण की योजना बनी थी। ११ वर्षों तक मंथर गति से निर्माण के बाद वर्ष 2009 में स्मारक का उद्घाटन हुआ।

हल्दीघाटी का इतिहास
महाराणा प्रताप ने अपनी मातृभूमि की लाज बचाए रखने के लिए कई युद्ध लड़े। उदयपुर से करीब 43.2 किमी उत्तर-पश्चिम एवं नाथद्वारा से 11.2 किमी पश्चिम में यह स्थान राजसमंद जिले में स्थित है। यहीं सम्राट अकबर की मुगल सेना एवं महाराणा प्रताप तथा उनकी सेना में 18 जून, सन् 1576 को भीषण युद्ध हुआ। प्रताप के साथ कई राजपूत, आदिवासी योद्धा और दमदार सेनापति हकीम खां सूर भी था। प्रताप से अगाध स्नेह रखने वाले भीलोंं ने युद्ध में अदम्य साहस दिखाया। इतिहास में इसे अनिर्णित युद्ध कहा जाता है। प्रताप ने काफी शक्ति खो दी थी।

विभाग की लापरवाही
स्मारक का संचालन कैसे हो, इसकी कोई स्पष्ट नीति नहीं बनाई गई। पर्यटन विभाग की लापरवाही से यहां पर्यटकों की पहुंच नहीं बढ़ी। वर्तमान में इसका संचालन महाराणा प्रताप स्मृति संस्थान कर रहा है, लेकिन व्यवस्थित संचालन की रूपरेखा नहीं बनी है। जिला कलक्टर इस संस्थान के पदेन अध्यक्ष हैं। राष्ट्रीय गौरव की ऐसी बदहाल स्थिति पर्यटकों के मन को कचोटती है।

छाया-पानी का अभाव
खमनोर-उदयपुर मुख्य मार्ग पर अरावली की पहाडिय़ों के मध्य हल्दीघाटी में सडक़ से करीब पांच सौ फीट की ऊंचाई पर स्मारक का निर्माण करवाया गया। परिसर में पेयजल एवं छाया का प्रबंध तक नहीं है। पर्यटकों को यहां के इतिहास की जानकारी देने के लिए ओपन थिएटर बनवाय गया, जो कभी काम नहीं आया। थिएटर जर्जर होता जा रहा है। करोड़ों रुपए बर्बाद हो रहे हैं।

कौन दे जानकारी?
स्मारक पर वीर प्रताप को नमन-वंदन कर हल्दीघाटी के इतिहास को जानने-समझने का सपना लेकर यहां पहुंचने वाले पर्यटकों को इतिहास की पूरी जानकारी देने का कोई इंतजाम नहीं है। पर्यटक आधी-अधूरी जानकारी लेकर आगे बढ़ जाते हैं। स्मारक की ऐसी स्थिति पर पर्यटक सवाल तो खड़ा करते हैं, मगर शिकायत कहीं नहीं कर पाते हैं। शिकायत पंजिका भी नहीं है।