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राजसमंद में 500 से अधिक माइंस बंद, उत्पादन भी 50 फीसदी पर आया, मशीने खा रही जंग

राजसमंद का मार्बल उद्योग, जो कभी जिले की आर्थिक ताकत हुआ करता था, अब गंभीर संकट में घिर चुका है। खानों का स्टॉक खत्म हो चुका है

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राजसमंद. राजसमंद का मार्बल उद्योग, जो कभी जिले की आर्थिक ताकत हुआ करता था, अब गंभीर संकट में घिर चुका है। खानों का स्टॉक खत्म हो चुका है, और गहरी खनन के चलते लागत बढ़ रही है। इसके साथ ही बाजार में विदेशी टाइल्स का दबदबा बढ़ने से उद्योग पर और भी दबाव बढ़ गया है। नतीजतन, 500 से ज्यादा मार्बल खदानें बंद हो चुकी हैं और जिले के उत्पादन में 50 फीसदी तक की कमी आई है। खदाने बंद होने से यहां लगी मशीनरी भी जंग खाने लगी है। केलवा व उसके आस-पास के क्षेत्र के अलावा िजले में अनेक स्थानों पर खदाने बंद हैं और उनमें सन्नाटा पसरा हुआ जो इस जिले के लिए बेहद चिंता विषय बना हुआ है। हालात तो ऐसे उपज गए हैं कि पहले तीन से चार शिफ्ट में काम होता था, वो अब एक शिफ्ट पर आकर टिक गया है। यही िस्थति जिले में अन्य खदानों की भी है। खदानों में मार्बल का उत्पादन घटने से गैंगसा युनिट, कटर का संचालन भी चार शिफ्ट की बजाय एक व दो शिफ्ट में रह गया है। कई माईसे बंद होने से मशीन भंगार में तब्दील होती जा रही है।

ग्राहकी नहीं, गड़बड़ाया अर्थतंत्र

सिरामिक, विट्रीफाइट व विदेशी टाइल्स बाजार में आने के बाद मार्बल की बिक्री काफी कम हो गई, जिसकी वजह से मार्बल उद्योग का अर्थतंत्र गड़बड़ा चुका है। इस वजह से अब मार्बल कारोबारियों के लिए नए उद्योग की ओर रुख करना ही एकमात्र विकल्प रह गया है। बिक्री घटने से खान, गैंगसा व कटर संचालकों के लिए श्रमिकों का वेतन भुगतान व बिजली बिल चुकाने की चिंता को लेकर अभी से पसीने छूटने लगे हैं।

ग्रेनाइट के हालात बुरे

जिले में ग्रेनाइट के हालात बुरे हैं। यहां जो उत्पाद 12 सौ रुपए टन में आता था। वही उत्पाद की कीमत अब घट गई है। इस िस्थति में सरकार नोटिस देती है कि खदाने सक्रिय नहीं है। लेकिन उनकी परेशानियों पर ध्यान देने वाला कोई नहीं है। उत्पाद घटने के पीछे की वजह पर किसी प्रकार का ध्यान नहीं दिया जा रहा है जो चिंता का विषय है। यही िस्थति रही तो आने वाले समय में ये भी बंद होने के कगार पर आ जाएगा।

फेक्ट फाइल पर एक नजर

  • 1006 मार्बल की खदानें
  • 800 मार्बल कटर
  • 700 ग्रेनाइट कटर संचालित
  • 12 हजार श्रमिक नियोजित
  • 350 ट्रक- ट्रेलर राजसमंद में
  • 10 हजार श्रमिक हो गए बेरोजगार
  • 20 फीसदी सिरामिक टाइल्स की बिक्री
  • 80 फीसदी में मार्बल, विदेशी टाइल्स का बाजार

इनका कहना है

मार्बल और ग्रेनाइट उद्योग को प्रोत्साहन देने वाले नियम बनाने चाहिए। रॉयल्टी की दरें लगातार बढ़ रही है। इसे वाजिब किया जाए तो मार्बल, ग्रेनाईट उद्योग को प्रोत्साहन मिलेगा। वर्तमान में खंडे का काम शुरू हुआ है। इसका बाजार मूल्य तीस से लेकर पचास रूपए तक टन हैं। उस पर रवाना की दर 164 रुपए लगती है। इतना अंतर होने से उद्योग पर भार पड़ रहा है। इस बारे में सरकार को सोचना चाहिए। ड्रोन सर्वे सरकार का अच्छा कदम है, लेकिन चालीस साल पुरानी खदानों में फर्क तो आएगा ही। इसके लिए भी विशेष ध्यान देना चाहिए। ड्रोन से ही। खानों को नए सिस्टम में अपडेट किया जाना चाहिए। नई तकनीकी अप्लाई की जानी चाहिए।

गौरव राठौड़, अध्यक्ष, मार्बल माइनिंग एसोसिएशन