
Video : कभी पानी में डूबा था, आज अपने पैरों पर खड़ा हुआ गांव कुण्डिया
गिरीश व्यास
रेलमगरा। कहते हैं कि प्राचीन समय में सदा भरी रहने वाली नदियों के किनारे आबादी बसती थी। जिसके प्रमाण आज भी नदियों किनारे मिलने वाली विभिन्न सभ्यताओं में देखने को मिलता है। पौराणिक सभ्यता के लिए देश ही नहीं अपितु विदेशों तक अपनी पहचान बनाने वाले गिलूण्ड में मिली सभ्यता के अवशेषों से आहाड़ एवं मोहनजोदड़ों से भी पुरानी सभ्यता होने का खुलासा हुआ था। इसी सभ्यता ने सूर्य पूजन का पाठ पढ़ाया तो इसी सभ्यता के लोगों ने खेती करने का कार्य शुरू किया था। अपने उत्पाद को अन्यत्र बिक्री के लिए ले जाने एवं बदले में वहां के उत्पाद की खरीदी करना भी इसी सभ्यता की देन थी। इन्हीं सभ्यताओं से सीखे लोग आज चांद पर पहुंच गए हैं। कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिलता है राजसमन्द जिले के सीमान्त गांव कुण्डिया का।
मेवाड़ के हरिद्वार नाम से प्रख्यात तीर्थ स्थली मातृकुण्डिया में बने मेजा जलपूरक बांध का निर्माण 80 के दशक में हुआ था। बांध को पहली बार भरने के इसके डूब क्षेत्र की सर्वे की गई और कुण्डिया एवं कोलपुरा गांव को पूरी तरह से यहां से विस्थापित कर अन्यत्र बसाने का निर्णय किया गया। वर्ष 1983 में कुण्डिया एवं कोलपुरा गांव को डूब क्षेत्र से विस्थापित करने का निर्णय लेकर अन्यत्र बसाने की तैयारियां पूरी कर ली गई।
यहां की अधिकांश आबादी खेती पर निर्भर है, लेकिन गांव को विस्थापित करने के निर्णय से ग्रामीणों के सामने अपने खेतों से दूर हो जाने का संकट गहराने लगा। इससे गांव को डूब क्षेत्र से अधिक दूरी पर नहीं बसाने की मांगें रखीं। सिंचाई विभाग ने मामले में कार्यवाही करते हुए बांध की पूर्ण भराव क्षमता का सर्वे करा इसके पानी के किनारे पर ही कुण्डिया एवं कोलपुरा गांव को पुन: बसाने का निर्णय किया। ग्रामीणों की सहमति बनने पर दोनों गांवों को निर्धारित जगहों पर बसने की अनुमति प्रदान कर दी गई।
जयपुर के नक्शे पर हुई सहमति
जब गांव को बसाने की बात आई तो नए बसने वाले गांव को सलीके से बसाने का विचार ग्रामीणों के मन में आया। तो ग्रामीण बेहतरीन नक्शे की तलाश में जुट गए। आखिरकार गुलाबी नगर जयपुर के नक्शे के आधार पर ही कुण्डिया की बसावट करने का सर्वसम्मत निर्णय हुआ। गांव बसाने के दौरान सिंचाई विभाग ने पहले तो अपने स्तर पर ही मकान बनाकर प्रभावितों को देने की बात कही, लेकिन ग्रामीण ने अपने स्तर पर ही अपनी सुविधानुसार मकान का निर्माण करने की मांग की। विभाग द्वारा यह मांग माने जाने के बाद ग्रामीणों ने अपने स्तर पर ही अपने आशियानों का निर्माण शुरू कर दिया। ग्रामीणों ने गांव को बसाने के लिए जयपुर के नक्शे को ध्यान रखते हुए बसावट को मूर्त रूप देना शुरू कर दिया।
हर सात घरों की आबादी के बाद अदब चौराहा
गांव में प्रत्येक सात घरों की आबादी के बाद एक अदब चौराहे का निर्माण किया गया। गांव के तमाम रास्तों की चौड़़ाई 40 फीट से अधिक रखी गई। वहीं मुख्य मार्ग 50 फीट से भी अधिक चौड़े रखे गए। गांव को नए रूप से बसे हुए लगभग 38 वर्ष का समय पूर्ण हो चुका है। नए गांव में बसने के बाद यहां के निवासियों के लिए कई तरह की समस्याए सामने आने लगी। इनमें सबसे बड़ी समस्या थी रोजगार की समस्या। बांध में पहली बार पानी भरने के दौरान यहां के लोगों के तमाम खेत पानी में डूब गए। इससे सैंकड़ों बीघा खेतों में खड़ी फसलें बर्बाद हो गई। ऐसे में ग्रामीणों के रिश्तदारों एवं मिलने वालों ने उनको सहारा दिया और जब बांध का पानी कम हुआ तो यहां के लोगों ने फिर से खेती कर आने वाले वर्ष के लिए भी अनाज सहेजने का कार्य शुरू कर दिया। धीरे-धीरे लोगों ने अपने नए जीवन की शुरूआत नए गांव में करते हुए सभी बातें सीख ली और खेती के साथ मेहनत मजदूरी करने एवं अन्य प्रांतों में जाकर व्यवसाय करना भी शुरू किया।
आज भी पुरानी यादों में खो जाते हैं
आज कुण्डिया गांव 38 वर्ष को हो चुका है। यहां के लोगों ने अपने पैरों पर खड़ा रहना खुद सीखा है। यहां के लोग जब अपने बचपन को याद करते हैं तो उनकी आंखें पुरानी यादों को सोचकर बरबस ही भर आती है। हालांकि स्थानीय पंचायत के साथ भामाशाहों एवं दानदाताओं ने गांव के सर्वांगीण विकास के लिए अपनी महत्ती भूमिका निभाई, जिससे गांव आज मात्र 38 वर्षो में ही अधिकांश सुविधाओं युक्त होकर विकास के पथ पर अग्रसर हो रहा है। वहीं यहां के ग्रामीण अपने बालकों के सर्वागीण विकास के लिए हर संभव प्रयास करते देखे जाते हैं।
मलाल भी है रोजगार को लेकर
कुण्डिया गांव के ग्रामीणों को मातृकुण्डिया बांध के डूब क्षेत्र में आने से विस्थापित कर अन्य जगह पर बसाया गया। बांध के पानी में डूबने वाली फसलों का हर्जाना क्षेत्र की जनता को भुगतना पड़ रहा है। बांध में भरने वाले पानी का उपयोग भीलवाड़ा में बने मेजा बांध को भरने के लिए किया जाता है तो इसका कुछ हिस्सा दरीबा में संचालित हिन्दुस्तान जिंक के उपयोग में लिया जाता है। बांध के भरने पर तो फसलें डूब जाती है और बांध के खाली होने पर खेतों से गुजरने वाली पाइप लाइनों के बार-बार फूटने से रबी फसलों में भी कई बार इन किसानों को नुकसान हुआ है। ग्रामीणों का आरोप है कि स्थानीय बड़े उद्योग में रोजगार पाने के लिए यहां के बेरोजगार भटकते रहते हैं, जबकि इस उद्योग इकाई प्रबंधन द्वारा बाहरी लोगों को रोजगार मुहैया कराया जाता है। अब ये ग्राम पंचायत है और यहां करीब सात सौ घरों की आबादी हो चुकी है।
Published on:
21 Sept 2020 09:13 pm
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