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रामपुर तिराहा कांड: PAC के दो सिपाहियों ने की थी दरिंदगी, पीड़िता ने जज से बताया अपना दर्द

1 अक्टूबर, साल 1994 की रात को उत्तराखंड को अलग राज्य की मांग करने के लिए देहरादूर से बसों से आंदलोनकारी दिल्ली के लिए निकले थे। रामपुर तिराहा पर पुलिस ने आंदोलनकारियों को रोकने का प्रयास किया। आंदोलनकारी नहीं माने तो पुलिसकर्मियों ने फायरिंग कर दी, जिसमें 7 आंदोलनकारियों की मौत हो गई थी।

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आंदोलन में महिला आंदोलनकारी भी शामिल थी। हंगामा और गोलीबारी शुरू हो गई। रात्रि करीब 1 बजे रामपुर तिराहा पर बस रुकवा ली गई। पीएसी की 2 सिपाही बस में चढ़ गए। दोनों दोषियों ने महिला आंदोलनकारी से छेड़छाड़ और रेप किया।

दोषियों ने पीड़िता से सोने की चेन और एक हजार रुपये भी लूट ‌लिए थे। आंदोलनकारियों पर मुकदमे दर्ज किए गए। मामले में आरोपियों के खिलाफ उत्तराखंड संघर्ष समिति ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। इसके बाद 25 जनवरी 1995 को CBI ने पुलिसकर्मियों के खिलाफ मुकदमे दर्ज किए गए थे। रामपुर तिराहा कांड की पीड़िता को जब अदालत में पेश किया गया तो बुजुर्ग महिला ने 29 साल बाद दो आरोपियों को पहचान लिया और अदालत के सामने पुलिस की बर्बरता की कहानी बयान की थी।

मामले में चली सुनवाई के दौरान जब पिछले वर्ष बुजुर्ग महिला ने दो आरोपियों को पहचान लिया और अदालत के सामने पुलिस की बर्बरता की कहानी बयान की। अदालत में प्रार्थना पत्र देकर अपने परिवार की जान को खतरा बताया। अपर सत्र न्यायाधीश कोर्ट संख्या-सात के पीठासीन अधिकारी शक्ति सिंह ने सुनवाई की।


उत्तराखंड़ पुलिस पौढ़ी गढ़वाल से पीड़िता को कड़ी सुरक्षा में लेकर अदालत पहुंची। गवाह ने अदालत में आरोपियों को पहचान लिया है। पीड़िता ने अदालत में प्रार्थना पत्र देकर कहा कि उसके परिवार को खतरा बना हुआ है। पहले भी दो बार हमले हो चुके हैं। बार-बार धमकी दी जा रही है। अदालत ने पुख्ता सुरक्षा व्यवस्था के आदेश दिए थे। बयान के बाद उत्तराखंड पुलिस पीड़िता को गवाही के बाद मुजफ्फरनगर पुलिस भी पुरकाजी में उत्तराखंड बॉर्डर तक छोड़कर आई थी।

सोमवार को मामले में सजा के प्रश्न पर सुनवाई करते हुए अदालत ने इस कांड को जलियावाला बाग जैसी घटना से तुलना की। अदालत ने यह भी कहा कि पुलिस ने कई मामलों में वीरता का परिचय दिया प्रदेश का मान सम्मान बढ़ाया, लेकिन यह देश और न्यायालय की आत्मा को झकझोर देने वाला प्रकरण है।

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चर्चित रामपुर तिराहा कांड में फैसला देते हुए अपर जिला जल शक्ति सिंह ने लिखा कि महिला आंदोलनकारी के साथ बर्बरता व अमानवीय व्यवहार किया गया है। शांतिपूर्ण आंदोलन में नियमों के अधीन रहते हुए भाग लेना किसी भी व्यक्ति का मौलिक अधिकार है। इस मौलिक अधिकार के हनन के लिए किसी भी व्यक्ति को किसी भी महिला के साथ सामूहिक दुष्कर्म जैसा पाश्विक कृत्य कारित करने का अधिकार प्राप्त नहीं है, एवं ऐसा व्यक्ति यदि पुलिस बल का है तब यह अपराध पूरी मानवता को शर्मसार कर देने वाला है।


अदालत ने फैसला सुनाते हुए कहा कि अपराध करने वाले कोई साधारण व्यक्ति नहीं थे, बल्कि उनके कंधों पर आमजन की हिफाजत की जिम्मेदारी थी। ऐसा व्यक्ति यदि स्वयंत दुष्कर्म जैसी घटना में शामिल होता है तो यह पूरी व्यवस्था के लिए अत्यंत पीड़ादायक है। उत्तर प्रदेश पुलिस बल देश का सबसे बड़ा पुलिस बल है, जिसने अनेक जांबांज पुलिस अधिकारी दिए हैं। लेकिन जिस प्रकार का आचरण दोषी सिपाहियों द्वारा दिखाया गया है वह उनको इस न्यायालय की किसी भी प्रकार की सहानुभूति से वंचित कर देता है। उनका यह कृत्य सम्पूर्ण जनमानस व इस न्यायालय की आत्मा को झकझोर देने वाला है और आजादी से पूहले हुए जलियांवाला बाग की घटना को याद दिलाती है।