
गुमला जिले में भाजपा के समक्ष साख बचाने की चुनौती
रांची. प्राकृतिक सुंदरता, नदियों, घने जंगलों और पहाड़ियों से घिरा गुमला जिला का अंजन धाम पवनपुत्र हनुमान की जन्म स्थाली के रूप में विख्यात है। गुमला में धार्मिक और ऐतिहासिक महत्त्व के कई धरोहर मौजूद हैं। सातवीं सदी का टांगीनाथ धाम करोड़ों लोगों की आस्था का केंद्र है। 1983 में बने इस जिले में तीन नदियाँ दक्षिणी कोयल, उत्तरी कोयल और शंख नदी बहती है जो इसकी खूबसूरती को चार चाँद लगाती है। जिले को प्रकृति ने जहाँ सजाया है वहीं इसे संवारने की ज़िम्मेदारी यहाँ के नागरिकों की है जिसका एक बार फिर मौका आ चुका है।
कहा जाता है कि यहां महीने में गौ मेला लगता था उसी के बाद यहां धीरे धीरे आवादी बढ़ी और इसका नाम गुमला पड़ा। जिले के 3 विधानसभा सीटों में गुमला और बिशुनपुर विधानसभा सीट के लिए पहले चरण में तीस नवंबर और दूसरे चरण में सिंसई विधानसभा सीट के लिए 7 दिसंबर को चुनाव होंगे।
गुमला विधानसभा इलाके के 2 लाख 19 हज़ार 874 मतदाता अपने नए प्रतिनिधि का चुनाव करेंगे। अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित इस सीट पर 1 लाख 10707 पुरुष जबकि 1 लाख 9167 महिला मतदाता हैं। इसमें से करीब 5 हजार मतदाता ऐसे हैं जो 18 से 19 साल के बीच के हैं और वो पहली बार लोकतंत्र के इस महापर्व में अपने अधिकार का इस्तेमाल करेंगे।
इस सीट पर 6 बार भारतीय जनता पार्टी, तीन बार कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा के 2 बार विधायक चुने गए हैं। भाजपा ने इस बार अपने वर्तमान विधायक शिवशंकर उरांव का टिकट काटकर युवा चेहरे मिशिर कुजूर को मैदान में उतारा है तो दूसरी तरफ झारखंड मुक्ति मोर्चा ने लगातार चौथी बार भूषण तिर्की को गुमला के मुकाबले में उतारा है। कांग्रेस छोड़ कर झाविमो के रजनील तिग्गा भी यहाँ के समर में कूद चुकें हैं। गुमला शहर में आजकल हर ओर विधानसभा चुनाव की चर्चा है।
खनन,रोजगार व कृषि मुद्दा
गुमला जिले में बॉक्साइट एवं स्टोन की खाने हैं और यहां आर्थिक गतिविधियों के विकास के लिए बहुत गुंजाइश है। जिले की मुख्य अर्थव्यवस्था कृषि, वन उत्पाद, पशु विकास, खनन गतिविधियों और अन्य वाणिज्यिक गतिविधियों पर निर्भर करती है। कृषि क्षेत्र में सिंचाई सुविधाओं का विस्तार अब भी यहां की मांग है।
बिशुनपुर में झामुमो के चमरा लिंडा हैट्रिक लगाने के प्रयास में
पांच पांडव पहाड़ जो पर्यटन के हिसाब है काफी महत्ववूर्ण है वह बिशुनपुर प्रखंड मुख्यालय से महज 3 किमी पर स्थित है। इतना ही नहीं नेतरहाट, जो अपने सूर्योदय और सूर्यास्त के साथ साथ नेतरहाट आवासीय विद्यालय के लिए जाना जाता है वो सिर्फ बिशनपुर मुख्यालय से 20 किमी दूर है। बिशुनपुर की भौगोलिक बनावट ही यहां के विकास में एक बाधा भी है। यहां महत्वपूर्ण खनिज बॉक्साइट की उपलब्धता के बावजूद इलाके के लोग गरीब हैं और इन्हें विकास का इंतजार है। बिशुनपुर विधानसभा सीट पर भी पहले चरण में तीस नवंबर को मतदान होगा। बिशुनपुर निर्वाचन इलाका गुमला और लोहरदगा जिले के भंडरा और सेन्हा प्रखंड को मिलाकर बनाया गया है।
बिशुनपुर प्रखंड जिला मुख्यालय गुमला से लगभग 70 किलोमीटर दूर है। यह अपने पूर्व में घाघरा ब्लॉक, उत्तर-पश्चिम में पालमू जिला, और दक्षिण में चैनपुर ब्लॉक से घिरा हुआ है। आदिम अनुसूचित जनजातियों के आसूर, ब्रिजिया, कोर्वा और बिरहार यहां रहते हैं। गुमला जिले की बिशुनपुर विधानसभा सीट लोहरदगा लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत आती है। यह सीट अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित है। इस निर्वाचन क्षेत्र में कुल 2 लाख 34 हजार 401 मतदाता हैं जिसमें से 119332 पुरुष और 115067 महिला मतदाता है।
पहले चरण के चुनाव में आगामी तीस नवंबर को 245 मतदान केंद्रों में यहां वोट डाले जाएंगे जिसके साथ इस विधानसभा सीट के लिए कुल 12 उम्मीदवारों की किस्मत ईवीएम में कैद हो जाएगी। बिशनपुर में पिछले दो विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज करने वाले झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रत्याशी चमरा लिंडा को इस बार भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार अशोक उरांव कड़ी टक्कर दे रहे हैं।
झारखंड विकास मोर्चा के टिकट पर चमरा लिंडा के अत्यंत करीबी रहे महात्मा उरांव भी बिशनपुर से चुनाव लड़ रहे हैं जिससे यहां का चुनावी दंगल काफी दिलचस्प हो गया है।
इस इलाके का मुख्य व्यवसाय कृषि है। किसान सिंचाई के लिए मानसून पर निर्भर हैं। इसलिए केवल खरीफ फसलों की खेती की जाती है। नक्सल प्रभावित इस क्षेत्र की जनता को किसी सच्चे विकास पुरुष का इंतजार है, जो इस क्षेत्र और यहां की जनता की तस्वीर और तकदीर बदल सके।
Published on:
27 Nov 2019 08:26 pm
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