समवेतशिखर
गिरीडीह जिले में समवेत शिखर या शिखरजी जैन धर्म का सबसे बड़ा तीर्थ है। झारखंड के सबसे ऊंचे पर्वत पर अनेक शीर्ष और मंदिर हैं। यहां जैन धर्म के 24 में से 20 तीर्थंकरों ने निर्वाण या मोक्ष को प्राप्त किया था। इस तपोभूमि का कण-कण पवित्र माना जाता है। इसकी जीवन में एक बार यात्रा अनिवार्य बताई गई है। इसे पाश्र्वनाथ या पारसनाथ पर्वत भी कहा जाता है, इसकी ऊंचाई 1350 मीटर है। यहां लगभग 29 किलोमीटर पैदल यात्रा का विधान है।
छिन्नमस्तिका
झारखंड की राजधानी रांची से 80 किलोमीटर दूर मां छिन्नमस्तिका का मंदिर स्थित है। रजरप्पा का यह मंदिर अपनी विशालता के लिए प्रसिद्ध है। इसकी गणना भी शक्ति पीठ में होती है और यह तंत्र क्रिया के लिए कामाख्या मंदिर के बाद सबसे उत्तम स्थान माना जाता है। देवी की प्रतिमा भी अद्भुत है, जिसमें अपना ही सिर काट कर रक्तपान कराती देवी दर्शनीय हैं। यहां दामोदर और भैरवी नदी का संगम भी है। यहां दर्शन के लिए अनेक प्राचीन मंदिर हैं।
जगन्नाथ मंदिर
झारखंड की राजधानी रांची में ही स्थित यह विशाल मंदिर १७वीं सदी में तत्कालीन राजा ठाकुर अणिनाथ शाहदेव ने निर्मित करवाया था, बिल्कुल जगन्नाथ पुरी के जगन्नाथ मंदिर की शैली में। ऊंचे स्थान पर स्थित यह मंदिर अत्यंत मनोरम है। रांची ही नहीं, बल्कि पूरे झारखंड में यह एक बहुत महत्वपूर्ण यादगार स्थान है, जहां प्रतिवर्ष लाखों लोग भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा जी के दर्शन के लिए आते हैं। हर धर्म के लोग यहां दर्शन कर सकते हैं।
पहाड़ी मंदिर
घने जंगलों, पठारों और दुर्गम पहाड़ों के प्रदेश झारखंड में सबसे ऊंचे स्थान पर निर्मित यह मंदिर पहाड़ी मंदिर के नाम से ख्यात है। 2140 फीट की ऊंचाई पर स्थित इस मंदिर से रांची शहर दिखाई पड़ता है। यह अत्यंत मनोरम और पवित्रता का अहसास कराने वाला स्थान है। यह मंदिर मूलत: भगवान शिव को समर्पित है और पूजा-दर्शन करने वालों का यहां तांता लगा रहता है। यहां मंदिर के पास ही देश के सबसे ऊंचे राष्ट्रीय ध्वज के भी दुर्लभ दर्शन होते हैं।