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खटिया को डोली बनाकर मरीज को अस्पताल ले जाने को मजबूर रेहराघोटू गांव के ग्रामीण

locationरांचीPublished: Jul 22, 2018 02:29:14 pm

Submitted by:

Prateek

गांव में यदि कोई भी व्यक्ति बीमार पड़ जाता है, तो यही खाटनुमा डोली ही एंबुलेंस का काम करती है…

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(पत्रिका ब्यूरो,रांची): झारखंड में सरकार की ओर से भले ही यह दावे किए जाते है कि 108 नंबर तक फोन करते हुए तत्काल गर्भवती महिला या मरीजों को एंबुलेंस की सुविधा कुछ ही मिनटों में उपलब्ध करा दी जाएगी, लेकिन राज्य के कई सुदूरवर्ती क्षेत्रों में आज भी आधारभूत सुविधाओं का घोर अभाव है, वहां न तो चार पहिए जा सकते है और ही सरकार की अन्य कल्याणकारी योजनाएं पहुंचती है।

 

गर्भवती को डोली से ले जाया गया 8 किलोमीटर दूर

पूर्वी सिंहभूम जिले के गुड़ाबांधा प्रखंड स्थिति फारेस्ट ब्लॉक पंचायत के रेहराघोटू गांव की भी यही हकीकत है। पिछले दिनों इस गांव की रानी हेंब्रम 9 माह की गर्भवती थी, अचानक उसकी तबीयत खराब हो गई। इस गांव में सड़क नहीं रहने के कारण तत्काल खाट का एंबुलेंस बनाकर गांव के लोग 8 किलोमीटर दूर रानी हेंब्रम को लेकर इलाज के लिए अस्पताल पहुंचे। यह इलाका घोर नक्सल प्रभावित इलाका भी है। लेकिन अब तक सरकारी सुविधा इस गांव तक नहीं पहुंची है। इतना ही नहीं इस गांव में आने का रास्ता तक नहीं है और यही कारण है कि एक गर्भवती महिला को खटिया का डोली बनाकर उसे ले जाकर 8 किलोमीटर दूर मुख्य सड़क पर ले जाने के लिए मजबूर है, फिर मुख्य सड़क पर उपलब्ध वाहनों से की मदद से इन्हें अस्पताल पहुंचाया गया। सबसे बड़ी विडंबना है कि राज्य सरकार और जिला प्रशासन दावा करती है कि नक्सल फोकस एरिया के तहत इस गांव का चयन कर विकास का काम किया जा चुका है।


यह सिर्फ रानी हेम्ब्रम नामक गर्भवती महिला की परेशानी नहीं है, गांव में यदि कोई भी व्यक्ति बीमार पड़ जाता है, तो यही खाटनुमा डोली ही एंबुलेंस का काम करती है। गांव के चार लोग इस एंबुलेंस को उठाकर आठ किलोमीटर मुख्य सड़क पर लाते है, उसके बाद इलाज के लिए शहर के अस्पतालों में ले जाया जाता है।

 

गांव वालों के पास नहीं हैं मूलभूत सुविधाएं

यह पूरा इलाका घोर नक्सल प्रभावित है। एक ओर नक्सलियों के डर से पुलिस-प्रशासनिक अधिकारी और सरकारी महकमा गांव नहीं पहुंच पाता, वहीं नक्सली जबरन गांव में आ धमकते है और ग्रामीणों से ही खाने-पीने की व्यवस्था करने को कहते है। ग्रामीणों का कहना है कि इस गांव के अधिकांश लोगों के पास न तो राशन कार्ड है और न ही आधार कार्ड। क्षेत्र के सांसद और विधायक को भी स्थानीय लोगों ने कभी अपने गांव में आते नहीं देखा है।

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