संसार में जितने भी आवास है, सब धर्मशाला के समान है । संसार में कितने भी घर बना लो आखिर वह ढह जाएंगे, वक्त के साथ बह जाएंगे। हमें वह घर बनाना है जो वक्त के साथ ढह नहीं और बह नहीं। वह घर है मोक्ष का घर, जो कोई छिन नहीं सकता और उसे कोई बांट नहीं सकता । ये विचार नीमचौक स्थानक पर महासती इन्दुप्रभा महाराज ने व्यक्त किए। चातुर्मासिक धर्मआराधना महासती शशिप्रभा, निपुणप्रभा, वृद्धिप्रभा, रिद्धीप्रभा आदि के सानिध्य में चली रही है।