रतलाम। आचार्यश्री विजय कुलबोधि सूरीश्वर महाराज के शिष्य मुनिराज ज्ञानबोधि विजय महाराज ने सैलाना वालों की हवेली मोहन टॉकीज में हुए प्रवचन में पांच प्रकार के परोपकार का वर्णन करते हुए कहा कि जीवन में पांच तरह के परोपकार यदि आप करते है तो उसका लाभ हमेशा मिलता है। इनमें चार परोपकार दंड, ध्वजा की तरह होते है। जबकि पांचवां परोपकार इन सबसे अलग है।
मुनिराज ने कहा कि जीवन में सबसे बड़ा कोई दान होता है तो वह अन्नदान कहलाता है। पुण्य का उदय इसी के माध्यम से होता हैं। अपने पुण्य में दूसरे का लाभ रखने की भावना सदैव जीवन में रखना चाहिए। यदि ऐसा नहीं करते है तो अगले जन्म में वह हमें वापस नहीं मिलता है।
सतकार्य करना हमारे हाथ में
मुनिराज ने पांच प्रकार के परोपकार अहंकार के कारण, आग्रह की वजह से, अधिक की उपस्थिति में, आनंद के कारण या आदरभाव की वजह से किया गया परोपकार श्रेेष्ठ होता है। भले ही कोई व्यक्ति अपने नाम को बढ़ाने के कारण परोपकार कर रहा है तो गलत नहीं है। दान करने पर बहुमान की भावना आए और नहीं होने पर परोपकार बंद कर दे यह ठीक नहीं है। सतकार्य करना हमारे हाथ में है लेकिन आदर करना या नहीं करना यह सामने वाले के हाथ में है।
दान दिया तो उसका भी लाभ मिलता
मुनिराज ने कहा कि भले ही दान देने की इच्छा नहीं है लेकिन किसी के कहने पर कर दान दिया तो उसका भी लाभ मिलता है। श्री देवसूर तपागच्छ चारथुई जैन श्रीसंघ गुजराती उपाश्रय, श्री ऋषभदेव केशरीमल जैन श्वेताम्बर तीर्थ पेढ़ी की ओर से आयोजित प्रवचन में बड़ी संख्या में धर्मालुजन उपस्थित रहे।